वित्तीय अभाव घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत आर्थिक उत्पीड़न है : बॉम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]
वित्तीय अभाव घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत आर्थिक उत्पीड़न है : बॉम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]
एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि वित्तीय अभाव घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत आर्थिक उत्पीड़न की श्रेणी में आता है। अदालत ने कहा कि अगर संयुक्त परिवार की कोई विधवा जिसे वित्तीय संसाधनप्राप्त करने का हक़ है, और उसे इससे वंचित किया जाता है तो यह आर्थिक उत्पीड़न है। नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति एमजी गिरतकर ने एक आपराधिक समीक्षा याचिका पर सुनवाई के दौरान यह मत ज़ाहिर किया। यह याचिका 38 वर्षीय विधवा सपना पटेल ने दायर की है जिसके पति निलेश पटेल की 27 मार्च2010 को निधन हो गया.
पृष्ठभूमि
निलेश अपनी मृत्यु से पहले अपना पारिवारिक व्यवसाय पटेल मंगल कार्यालय नामक शादी हॉल की देखरेख करता था। यह उसकी आय का एकमात्र स्रोत था। परिवार में उसकी पत्नी के अलावा एक बेटा है। निलेश की मौत के बाद उसका चचेरा भाई प्रवीण इस शादी हॉल का काम देखने लगा और इस वजह से सपना को इससे होने वाली आय से वंचित होना पड़ा। इसलिए उसने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियमकी धारा 12 के तहत एक आवेदन दिया। निचली अदालत ने परिवार को गढ़चिरोली स्थित इस पटेल मंगल कार्यालय को सपना पटेल को 16 अक्टूबर 2014 को जारी आदेश के एक महीना के अंदर सपने को कहा। पर अदालत ने ₹30,000 का गुज़ारा भत्ता देने कीअपील ठुकरा दी। प्रवीण पटेल ने इस आदेश को चुनौती दी और सपना ने भी गुज़ारा भत्ता की अपील ठुकराए जाने के आदेश को चुनौती दी। अतिरिक्त सत्र जज ने दोनों ही अपील ठुकरा दी।
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फ़ैसला
प्रवीण के जज ने कहा कि पटेल मंगल कार्यालय प्रवीण का है और इसलिए यह सपना पटेल को नहीं दिया जा सकता है और समीक्षा अपील दायर किए जाने के समय सपना और प्रवीण के बीच किसी भी तरह का घरेलू रिश्तानहीं था। सपना के वक़ील ने कहा कि निलेश की मौत के बाद परिवार ने यह निर्णय लिया कि पारिवारिक सम्पत्ति के बँटवारे तक प्रवीण निलेश के परिवार का भरण-पोषण करेगा। अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा, "आवेदनकर्ता प्रतिवादी नम्बर 1 के साथ संयुक्त परिवार के सदस्य के रूप में साथ साथ रही है। इसलिए दोनों के बीच घरेलू संबंध है।" इसके बाद न्यायमूर्ति गिरतकर ने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 3 के तहत क्लाउज (iv)(a) का उल्लेख किया जिसमें कहा गया है कि अगर कोई पीड़ित व्यक्ति किसी क़ानून या रिवाज के तहत वित्तीय संसाधन काअधिकारी है पर उसे इससे वंचित किया जाता है तो यह आर्थिक उत्पीड़न है।
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"वर्तमान मामले में जब तक उसका पति जीवित था, आवेदक की आय का एकमात्र स्रोत पटेल मंगल कार्यालय था। उसके पति की मौत के बाद आवेदक नम्बर 1 ने पटेल मंगल कार्यालय को अपने क़ब्ज़े में ले लिया औरआवेदक पटेल मंगल कार्यालय से होने वाली आय से वंचित कर दिया। इसलिए यह आर्थिक उत्पीड़न जैसा है।" कोर्ट ने इस संदर्भ में जवेरिया अब्दुल मजीद पटनी बनाम आतिफ़ इक़बाल मंसूरी एवं अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का उल्लेख किया जिसमें उसने कहा था कि शारीरिक उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न, गाली गलौजऔर भावनात्मक उत्पीड़न के अलावा आर्थिक उत्पीड़न भी घरेलू हिंसा है।" "वर्तमान मामले में, आवेदनकर्ता प्रतिवादी नम्बर 1 के हाथों आर्थिक उत्पीड़न झेल रही है", न्यायमूर्ति गिरतकर ने कहा। इस तरह कोर्ट ने गढ़चिरोली के अतिरिक्त सत्र जज के फ़ैसले को निरस्त कर दिया और कहा कि जेएमएफसी, गढ़चिरोली का फ़ैसला पूरी तरह वैध और सही था। यह भी कहा गया कि उक्त शादी हॉल का क़ब्ज़ा सपनापटेल को सौंपा जा रहा है इसलिए उसे गुज़ारा राशि दिए जाने की ज़रूरत नहीं है।
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