NRC : अवैध विदेशी घोषित किए गए लकवाग्रस्त व्यक्ति की याचिका पर SC ने केंद्र और असम को नोटिस जारी कर जवाब मांगा

Jul 05, 2019

NRC : अवैध विदेशी घोषित किए गए लकवाग्रस्त व्यक्ति की याचिका पर SC ने केंद्र और असम को नोटिस जारी कर जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हिरासत में लिए गए एक लकवाग्रस्त व्यक्ति की याचिका पर केंद्र और असम सरकार को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा है जिसे ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित किया है और वो बांग्लादेश निर्वासित करने की प्रक्रिया का सामना कर रहा है।

ट्रिब्यूनल के समक्ष न पेश होने के चलते विदेशी किया गया घोषित
याचिका में यह कहा गया है कि अजीजुल हक 24 मार्च, 2017 से हिरासत केंद्र में है और उसे ट्रिब्यूनल ने एक- पक्षीय आदेश के तहत विदेशी घोषित कर दिया क्योंकि लकवाग्रस्त होने की वजह से वो ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश नहीं हो सका। हालांकि उसका नाम असम के नागरिक के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) के मसौदे में एक नागरिक के रूप में था लेकिन ट्रिब्यूनल और गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने हक को इस आधार पर विदेशी घोषित किया क्योंकि न तो वह खुद और न ही उसका प्रतिनिधि ट्रिब्यूनल के सामने पेश हुआ।

3 सप्ताह का मिला समय
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा, "नोटिस जारी करते हैं। 3 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल हो।"

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हक द्वारा पेश की गई दलील
हक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े और वकील अनस तनवीर ने यह कहा कि विदेशी ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट दोनों ने यह मानने में चूक की है कि हक अवैध विदेशी है और उसे वापस भेजने की जरूरत है। "यह प्रस्तुत किया गया है कि उच्च न्यायालय ने मेडिकल सर्टिफिकेट स्वीकार करने के बावजूद कि वो लोअर लिम्ब पैरालिसिस से पीड़ित है, याचिकाकर्ता (हक) द्वारा दाखिल रिट याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता का नाम परिवार के अन्य सदस्यों के साथ NRC ड्राफ्ट में ARN नंबर के साथ रखा गया है," दलीलों में कहा गया। याचिका में यह कहा गया कि इस एकमात्र आधार पर याचिकाकर्ता की नागरिकता छीन ली गई क्योंकि वह विदेशी ट्रिब्यूनल के सामने किसी को अपनी ओर से उपस्थित कराने में असमर्थ रहा। विदेशी ट्रिब्यूनल ने हक को एक पूर्व-पक्षीय आदेश में विदेशी के रूप में घोषित किया, यहां तक ​​कि उसने ऐसे किसी भी सबूत पर विचार नहीं किया जो उसकी नागरिकता के संबंध में संदेह पैदा करता हो। पैनल ने राज्य से किसी भी सबूत की तलाश मांग नहीं की। बाद में ट्रिब्यूनल ने पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी और हाई कोर्ट ने इससे सहमति जताई। "न तो ट्रिब्यूनल और न ही उच्च न्यायालय ने इसकी सराहना की कि याचिकाकर्ता ने उपायुक्त, नागांव द्वारा वर्ष 1941-42 में जारी किए गए उसके दादा के नाम पर 'जमाबंदी' दस्तावेजों के साथ- साथ 1965 की मतदाता सूची को भी प्रस्तुत किया है जिसमें उसके दादा, दादी, पिता और माँ के नाम मौजूद हैं," यह कहा गया है।

शीर्ष अदालत कर रही है NRC को अंतिम रूप देने की निगरानी
दरअसल शीर्ष अदालत, असम में NRC को अंतिम रूप देने की निगरानी कर रही है और उसने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि वह असम ठफउ के प्रकाशन के लिए 31 जुलाई की समयसीमा का विस्तार नहीं करेगी।

30 जुलाई 2018 को प्रकाशित NRC मसौदे के कुछ आंकड़े
दरअसल असम ठफउ का मसौदा पिछले साल 30 जुलाई, को प्रकाशित किया गया था, जिसमें 3.29 करोड़ लोगों में से 2.89 करोड़ लोगों के नाम शामिल थे। 40,70,707 लोगों के नाम इस सूची में नहीं थे। इनमें से 37,59,630 नाम खारिज कर दिए गए और शेष 2,48,077 अभी होल्ड पर हैं। असम NRC का पहला मसौदा शीर्ष अदालत के निर्देश के अनुसार 31 दिसंबर, 2017 और 1 जनवरी की रात को प्रकाशित किया गया था। 3.29 करोड़ आवेदकों में से 1.9 करोड़ लोगों के नाम तब इसमें शामिल किए गए थे। 20वीं शताब्दी की शुरुआत से बांग्लादेश के लोगों की घुसपैठ का सामना करने वाला असम NRC लागू वाला एकमात्र राज्य है जिसे 1951 में तैयार किया गया था।

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