अभियुक्त आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत वैध लाइसेंस धारक हो, तभी दी जा सकती है अधिनियम की धारा 7 के तहत सजा बॉम्बे हाईकोर्ट

Nov 01, 2019

अभियुक्त आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत वैध लाइसेंस धारक हो, तभी दी जा सकती है अधिनियम की धारा 7 के तहत सजा बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले ही दिनों उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसके तहत एक 23 साल पुराने मामले में एक जयेंद्र तलरेजा को दोषी ठहराया गया था। इस मामले में पुलिस ने उसकी दुकान की तलाशी ली थी, जिसमें उसके पास नकली गैस रैगुलेटर पाए गए थे। इसी के परिणामस्वरूप आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 7 रिड विद धारा 3 के तहत उसे दोषी करार दिया गया था। इस मामले में उस पर द्रवित पेट्रोलियम गैस (आपूर्ति और वितरण का विनियमन) आदेश, 1988 के क्लाज के उपखंड (3) के उल्लंघन का मामला बनाया गया था। 4 नवंबर, 1997 को दिए गए फैसले में 37 वर्षीय तलरेजा को तीन माह की कैद व पांच सौ रुपये जुर्माने की सजा दी गई थी। जस्टिस एस.एस जाधव ने तलरेजा की अपील पर सुनवाई की और कहा कि चूंकि अपीलकर्ता आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत वैध लाइसेंस धारक नहीं था, इसलिए उसे इसके तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता था। इसके अलावा, अदालत ने यह भी माना कि द्रवित पेट्रोलियम गैस (आपूर्ति और वितरण का विनियमन) आदेश के तहत, राज्य सरकार द्वारा अधिकृत या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित एक अधिकारी जो कम से कम इंस्पेक्टर रैंक का होना चाहिए या तेल कंपनी का अधिकारी जो कम से कम बिक्री अधिकारी रैंक का अधिकारी होना चाहिए,वहीं तलाशी और जब्ती का संचालन कर सकता है या तलाशी ले सकता है। केस की पृष्ठभूमि शिकायतकर्ता अधिकारी के अनुसार, 19 अप्रैल, 1996 को लक्ष्मीपुर पुलिस स्टेशन, कोल्हापुर को एक ''गुप्त सूचना'' मिली थी कि उस क्षेत्र के कुछ दुकानदार फर्जी/डुप्लिकेट गैस रैगुलेटर बेच रहे हैं। इसके बाद, पुलिस ने गीता जनरल स्टोर्स का दौरा किया। अपीलकर्ता इस दुकान में मौजूद था। अपीलकर्ता को सूचित किया गया और पंचों की उपस्थिति में दुकान की तलाशी ली गई और पुलिस ने 6 नकली गैस रैगुलेटर को जब्त कर लिया था। हेड कांस्टेबल भीकाजी गोखले ने अपीलकर्ता के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 3 रिड विद धारा 7 के तहत दंडनीय अपराध में रिपोर्ट दर्ज की थी।

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ट्रायल के दौरान सभी पंच अपने बयान से मुकर गए और अभियोजन पक्ष ने केवल शिकायतकर्ता के बयान पर भरोसा किया। निर्णय ए.पी.पी वाई.एम नखवा ने तर्क दिया कि यदि मान लिया जाए कि जब्त किए गए रैगुलेटर नकली नहीं थे तो भी अभियुक्त उन्हें अपने पास रखने,वितरण या बिक्री करने के लाइसेंस के बिना ही बेच रहा था। दूसरी ओर, अपीलकर्ता के वकील एडवोकेट आनंद पाटिल ने कहा कि अभियोजन पक्ष दुकान के स्वामित्व को साबित करने में विफल रहा है और न ही उन्होंने लाइसेंस को जब्त किया था। इसलिए, अभियुक्त की सजा से उसके साथ गंभीर अन्याय हुआ है। वर्ष 1998 में दिए गए कोर्ट आदेश के साथ सभी सामग्री और आवश्यक वस्तु अधिनियम की जांच के बाद, न्यायालय ने अपील को स्वीकार कर लिया और कहा कि- ''अभियुक्त - अपीलकर्ता लाइसेंस धारक नहीं था। चूंकि अपीलकर्ता आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 3 के तहत वैध लाइसेंस धारक नहीं है, इसलिए आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 7 के तहत कोई भी सजा नहीं दी जा सकती है। इसके अलावा, 1988 के उक्त आदेश में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा अधिकृत या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित कम से कम इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी और किसी तेल कंपनी के सेल्स ऑफिसर रैंक का अधिकारी या केंद्र/ राज्य सरकार द्वारा अधिकृत व्यक्ति और इस आदेश के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने,स्वयं को संतुष्ट करने के उद्देश्य से कि इस आदेश या उसके बाद दिए गए किसी आदेश का अनुपालन हुआ है, के लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित व्यक्ति ही तलाशी और जब्ती का काम कर सकता है। इस मुद्दे या मामले को विशेष जज ने आरोप तय करते समय नजरअंदाज किया था। वास्तव में, आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 3 के तहत दंडनीय किसी भी अपराध के लिए आरोपी-अपीलकर्ता के खिलाफ कोई आरोप तय नहीं किए जाने चाहिए थे। इसलिए, आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 7 के तहत अपीलकर्ता पर कोई जुर्माना नहीं लगाया जा सकता था या कोई सजा नहीं दी जा सकती है।

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अपील दर्ज करने की सीमा की गणना उस आदेश की प्रमाणित प्रति में दर्ज तस्दीक के आधार पर होनी चाहिए सुप्रीम कोर्ट जानने के लिए लिंक पे क्लिक करे http://uvindianews.com/news/the-limit-for-filing-an-appeal-should-be-calculated-on-the-basis-of-the-evidence-filed-in-the-certified-copy-of-that-order

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