सूख गए झील, जमीन के भीतर पानी नहीं, आधे भारत में सूखे जैसे हालात
सूख गए झील, जमीन के भीतर पानी नहीं, आधे भारत में सूखे जैसे हालात
देश के कई हिस्सों में झीलें सूख गई हैं, भूमिगत जल स्रोत खत्म हो चुका है, लाखों लोग पीने के पानी के एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं. मौसम विभाग के अनुसार, बारिश औसत से कम होने की वजह से आधे भारत में सूखे जैसे हालात बन गए हैं. बारिश कम होने से खरीफ की फसल की बुवाई पर विपरीत असर पड़ा है. मध्य और पश्चिमी भारत में मॉनसून की बारिश में धीमी प्रगति की वजह से सोयाबीन, धान, कपास, मक्का जैसे खरीफ फसलों की बुआई में कम से कम दो हफ्तों की देरी हो गई है. इसकी वजह से अंतत: पैदावार में कमी आ सकती है.
मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 84 फीसदी मौसम संबंधी सब-डिवीजन में बारिश औसत से कम हुई है. 22 जून तक मॉनसून की बारिश में 39 फीसदी तक कमी थी. हालांकि मध्य महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, विदर्भ, कर्नाटक, तेलंगाना, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार के गंगा वाले मैदानों, छत्तीसगढ़ तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाकों में मॉनसून पहुंच गया है.
इसके बावजूद महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश जैसे राज्य सूखे जैसे हालात से जूझ रहे हैं. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, पूर्वी, मध्य और तटीय भारत के ज्यादातर जिले अत्यंत सूखे जैसे हालात का सामना कर रहे हैं. जानकारों के मुताबिक प्री-मॉनसून की बारिश कम होने और मॉनसून देर से आने की वजह से इन राज्यों में सूखे के हालात बने हैं. देश के करीब 51 फीसदी हिस्सों में अभी तक औसत से कम बारिश हुई है. कृषि मंत्रालय के मुताबिक इसकी वजह से फसलों की बुवाई देर से हो रही है और लोग खेती में पानी लगाने की जगह अपनी घरेलू जरूरतों के लिए उनका संरक्षण कर रहे हैं.
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जलाशयों में पानी बेहद कम
देश के 91 राष्ट्रीय निगरानी वाले बेसिन और जलाशयो में पानी का स्तर पिछले साल के मुकाबले अभी कम है. ये जलाशय कृषि, बिजली उत्पादन, पेयजल के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं. तेलंगाना के जलाशयों में सामान्य से 36 फीसदी कम, आंध्र प्रदेश के जलाशयों में 83 फीसदी कम, कर्नाटक में 23 फीसदी कम, तमिलनाडु में 43 फीसदी कम और केरल में 38 फीसदी कम जल भंडार है. सबसे ज्यादा प्रभावित तमिलनाडु का शहर चेन्नई है. असल में तमिलनाडु के तीन जलाशयों पूंदी, चोलावरम और चेम्बारम्बकम से पानी गायब हो चुका है.
अर्थव्यवस्था पर असर
गौरतलब है कि भारत में होने वाली कुल बारिश का करीब 70 फीसदी हिस्सा मॉनसून सीजन में ही होता है. इसलिए मॉनसून भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार बन गया है. मॉनसून की अच्छी बारिश की वजह से कृषि पैदावार अच्छी होती है और इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी आती है. इसकी वजह से सोना-चांदी से लेकर ट्रैक्टर, कार, मोटरसाइकिल, रेफ्रिजरेटर जैसे उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री में उछाल आता है.
सोयाबीन के उत्पादन में कमी की वजह से भारत को पाम ऑयल, सोया ऑयल जैसे खाद्य तेलों के आयात को मजबूर होना पड़ेगा. दूसरी तरफ, कपास के पैदावार में कमी से इसके निर्यात में कमी आ सकती है. इसी तरह भारत चावल के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है, लेकिन पैदावार कम होने से इसके निर्यात पर विपरीत असर पड़ सकता है.
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