पर्यावरण की पढ़ाई से बचना विश्वविद्यालय को पड़ेगा भारी

Jul 05, 2019

पर्यावरण की पढ़ाई से बचना विश्वविद्यालय को पड़ेगा भारी

उद्योग विहार (जून 2019)-नई दिल्ली। पर्यावरण की पढ़ाई से बेरुखी अब विश्वविद्यालय सहित दूसरे सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को भारी पड़ेगी। यूजीसी ने ऐसे संस्थानों को लेकर सख्त रुख दिखाया है। साथ ही इसे अनिवार्य रूप से पढ़ाने पर जोर दिया है। यूजीसी ने विश्वविद्यालयों सहित उच्च शिक्षण संस्थानों को यह निर्देश उस समय दिया है, जब इसे अंडर-ग्रेजुएट स्तर के सभी कोर्सो के साथ अतिरिक्त विषय के रूप में पढ़ाना अनिवार्य है। यूजीसी ने इसके साथ ही उच्च शिक्षण संस्थानों में इसे पढ़ाने का मॉड्यूल (टीचिंग मॉड्यूल) भी जारी किया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्च शिक्षण संस्थानों में पर्यावरण विषय की पढ़ाई को लेकर यह जोर उस समय दिया है,जब विद्यार्थियों में पर्यावरण की जागरूकता बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनिवार्य रूप से पढ़ाने का आदेश दे रखा है। इसके बावजूद मौजूदा समय में कम संस्थानों में ही इस पर अमल हो रहा है।

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यूजीसी ने ऐसी रिपोर्ट मिलने के बाद सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को इसे अनिवार्य रूप से पढ़ाने को कहा है। साथ ही इसकी रिपोर्ट भी मांगी है। माना जा रहा है कि रिपोर्ट के बाद ऐसे संस्थानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर को छोड़कर किसी भी राज्य में पर्यावरण अध्ययन की पढ़ाई पर ठीक ढंग से अमल नहीं हो रहा है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों की स्थिति सबसे ज्यादाखराब है, जहां सभी संस्थानों में इसे पढ़ाया नहीं जा रहा है। वहीं, जिन संस्थानों में पढ़ाया भी जा रहा है, वहां इसके कोई शिक्षक नहीं हैं। दूसरे विषयों के शिक्षकों से इसे पढ़ाया जा रहा है और कॉपियों की भी जांच कराई जा रही है। यूजीसी के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत विद्यार्थियों में पर्यावरणको लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए इसे अंडर ग्रेजुएट स्तर के सभी कोर्सो के साथ एक अतिरिक्त विषय के रूप में पढ़ाया जाना अनिवार्य है। इसके लिए छह महीने का एक पाठ्यक्रम भी तैयार किया गया है। पिछले दिनों इसे लेकर पर्यावरण विषय की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों के गुट ने सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था।

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