तलाक का मामला लंबित रहने के दौरान पति-पत्नी का थोड़े समय के लिए मिलने से तलाक़ की प्रक्रिया पर असर नही
तलाक का मामला लंबित रहने के दौरान पति-पत्नी का थोड़े समय के लिए मिलने से तलाक़ की प्रक्रिया पर असर नही
केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि तलाक़ से संबंधित मामले के विचाराधीन रहने के दौरान पति-पत्नी के अस्थाई रूप से मिलने का कथित क्रूरता के आधार पर शादी को समाप्त करने के दायर मामले पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वैवाहिक अपील के मामले में हाईकोर्ट के समक्ष एक मामला यह उठाया गया कि पारिवारिक अदालत के समक्ष चल रही एक सुनवाई में पति पत्नी लोक अदालत द्वारा मामला सुलझाए जाने के बाद कुछ माह तक एक साथ रहे और इसलिए दोनों के दुबारा मिलने को देखते हुए पति को इस मामले को आगे बढ़ाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि उसके व्यवहार से पता चलता है कि उसने कथित क्रूरता को माफ़ कर दिया है। न्यायमूर्ति एएम शफ़ीक़ और न्यायमूर्ति टीवी अनिलकुमार ने कहा कि कथित माफ़ी तभी इस प्रक्रिया को रोक सकता है अगर शिकायतकर्ता पति-पत्नी सामान्य जीवन जीना शुरू कर देते हैं और उनके इस जीवन पर आक्रामक पक्ष का कोई प्रभाव नहीं रहता है और ऐसा लगे कि जिसके साथ क्रूरता हुई है उसने क्रूरता करनेवाले को माफ़ कर दिया है और उसे पुरानी वाली स्थिति दे दी है। अदालत ने कहा,दोनों का दुबारा मिलना अस्थाई था और वे सामान्य और सामंजस्य का जीवन नहीं जी पाए।" अदालत ने आगे कहा कि क्रूरता की किसी कार्रवाई को अगर माफ़ कर दिया जाता है तो निश्चित रूप से यह दुबारा शुरू हो सकती है और शादी को समाप्त किए जाने की ज़रूरत दुबारा उठ सकती है। अदालत ने कहा, "क्रूरता को माफ़ करना जिस पक्ष के ख़िलाफ़ अपराध हुआ है उसका सदाचारण और उदार कार्य है, जिसमें अपराध करनेवाले पक्ष के ग़लत कार्यों को माफ़ कर दिया जाता है और उसे दुबारा पुरानी स्थिति में दे दी जाती है। हर तरह के माफ़ी में एक अंतर्निहित शर्त होती है कि जिस पक्ष को माफ़ी दी गई है वह वैवाहिक संबंधों में दुबारा इस तरह का कार्य नहीं करेगा। कोई भी ग़लती माफ़ कर दिए जाने से समाप्त नहीं हो जाती है, वह सिर्फ़ शिथिल हो जाती है। एक बार जब किसी क्रूर कदम को माफ़ कर दिया जाता है तो इसके दुबारा सिर उठाने की पूरी आशंका होती है और फिर शादी को समाप्त करने की ज़रूरत पैदा हो जाती है, जब ग़लती करने वाला पक्ष माफ़ी देने वाले पक्ष की उदारता का नाजायज़ फ़ायदा उठाता हैङ्घ।" अदालत ने डॉक्टर एनजी दस्ताने बनाम श्रीमती एस दसाने [[AIR 1975 SC 1534] मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया कि "लेकिन वैवाहिक अपराधों को माफ़ कर देने की तुलना संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की पूर्ण माफ़ी से नहीं की जा सकती जिसे जब एक बार दे देने के बाद सारा दोष समाप्त हो जाता है और इसके दुबारा होने की संभावना नहीं होती है।"
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