किसी भी पार्टी के मैनिफेस्टो में फौजियों के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है: मृणालिनी सिंह
किसी भी पार्टी के मैनिफेस्टो में फौजियों के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है: मृणालिनी सिंह
गाजियाबाद के सांसद जनरल वी के सिंह की बड़ी सुपुत्री मृणालिनी सिंह एक ऐसी भावुक और साहसिक महिला हैं जिनको अपने जनरल पिता पर बहुत अभिमान है। और हो भी क्यों न, जनरल वी के सिंह ने देश का मान और सम्मान हमेशा बढ़ाया है चाहे जब वे देश के सर्वोच्च पद पर आसीन थे या आजकल जब वे केन्द्रीय मन्त्री हैं। उनके ऊपर तो पूरे देश को गर्व है फिर उनकी लाड़ली बेटी उनके ऊपर क्यों फख्र न करे? मृणालिनी जनरल वी के सिंह को अपना आदर्श मानती हैं। मृणालिनी की शादी भी एक फौजी परिवार में हुई है। इनके पति संग्राम सिंह फौज में कर्नल हैं। इनके एक बेटे विक्रमादित्य हैं जो अभी पढाई कर रहे हैं। मृणालिनी ने सिम्बायोसिस से एम बी ए किया हुआ है। इनसे (उद्योग विहार) के एडिटर इन चीफ (सत्येन्द्र सिंह) से बातचीत के कुछ अंश आपके सम्मुख प्रस्तुत हैं।उन्होंने बड़ी बेबाकी के साथ सभी प्रश्नों का जवाब दिया है।
- ओ आर ओ पी अभी भी वो पूरी तरह से लागू नहीं की गयी है उसे पूरी तरह से लागू करने की जरूरत है।
- जनरल साहब ने 42 साल देश की सेवा फौज में रहकर की है।
- हमें बहुत बुरा लगा जब यहाँ जनरल साहब के खिलाफ बाहरी के नारे लगाए गए।
- आज सवा सौ करोड़ की जनसंख्या वाले देश में बहस हो रही है की जन गण मन होना चाहिए या नहीं।
- आज बहुत सुन्दर हो गया है हमारा गाजियाबाद।
- अगर मोदी जी जैसे सभी हो जाएँ तो यह देश सुधर जायेगा।
- महिला सशक्त कब नहीं थी वह तो शुरू से सशक्त रही है।
- भारतीय संस्कार हम लोग भूलते जा रहे हैं।
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सत्येन्द्र सिंह - आप एक फौजी परिवार से हैं आपको कैसा महसूस होता है ?
मृणालिनी सिंह - हाँ, मुझे गर्व है की मैं एक फौजी परिवार से हूँ। मेरे दादा और परदादा भी फौजी थे। मेरा दादाजी कर्नल के पद से रिटायर हुए और मेरे परदादा जी सूबेदार मेजर के पद से रिटायर हुए थे। इसके चलते ही देश प्रेम और देश भक्ति की भावना तो हमारे खून में रच बस गयी है।मेरी शादी भी एक फौजी से ही हुई है और मेरे पति भी कर्नल हैं। हमारे परिवार में ही देश भक्ति की भावना थी वही मेरे अंदर भी आ गयी।
सत्येन्द्र सिंह - आपको अपने पिता की क्या बातें प्रभावित करती हैं ?
मृणालिनी सिंह - मेरे पिता जनरल साहब की स्कूलिंग बिरला पब्लिक स्कूल पिलानी में हुई है और उन्होंने अपनी स्कूलिंग से लेकर फौज तक में हर कोर्स में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। वे देश के पहले ऐसे आर्मी चीफ थे जिन्होंने अमेरिका से रेंजर्स की ट्रेनिंग प्राप्त की थी और उसमें भी वे अव्वल रहे थे यह दुनिया की सबसे कठिन ट्रेनिंग होती है जो भारत में होने वाली कमाण्डो ट्रेनिंग से काफी बेहतर होती है। और उनका नाम ‘‘हाल ऑफ फेम’’ में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया था। जो की हमारे देश के लिए गर्व की बात है।
सत्येन्द्र सिंह - वर्ष 2014 में जब मोदी सरकार को बने हुए कुछ ही दिन हुए थे और आप ओ आर ओ पी को लेकर जन्तर-मन्तर पर सैनिकों के साथ धरने पर बैठ गयी थी। सरकार के खिलाफ?
मृणालिनी सिंह - हाँ जी, मै उस समय बिलकुल सरकार के खिलाफ धरने पर बैठी थी क्योंकि मैं भी फौजी परिवार से हूँ और मुझे मालूम है एक फौजी का दर्द। ओ आर ओ पी एक वाजिब मांग थी जो की बाद में मोदी सरकार ने पूरी की लेकिन अभी भी वो पूरी तरह से लागू नहीं की गयी है उसे पूरी तरह से लागू करने की जरूरत है। मै सच को सच और गलत को गलत बोलने में कोई संकोच नहीं करती हूँ।
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सत्येन्द्र सिंह - आप फौजियों के लिए क्या चाहती हैं। क्या सरकार फौजियों के लिए कुछ कर रही है ?
मृणालिनी सिंह - आप इस चुनाव में सभी पार्टियों के मैनिफेस्टो को ध्यान से देखिये। किसी भी पार्टी के मैनिफेस्टो में फौजियों के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है। उनके साथ यह व्यवहार क्यों हो रहा है? क्यों किसी भी पार्टी के मैनिफेस्टो पर फौजियों के लिए कुछ भी नहीं लिखा है ? क्योंकि उनको वोट देने का अधिकार नहीं है। अभी आप उनको यह अधिकार दे दीजिये फिर देखिये कैसे फौजियों के हित के लिए तमाम एजेण्डे पार्टियों के मैनिफेस्टो पर दिखने लगेंगे।
सत्येंद्र सिंह - वैसे भारत में लोग फौजियों को बड़ी श्रद्दा एवं इज्जत से देखते हैं। आपका इस विषय में क्या विचार है ?
मृणालिनी सिंह - फौजियों को लोग इज्जत की निगाह से देखते हैं आपकी बात सही है लेकिन आज भी अधिकांश लोग सिर्फ फेसबुक और व्हाट्सएप्प तक ही अपनी देश भक्ति सीमित रखते हैं। पुलवामा अटैक हुआ लोगों ने बड़ी शान से दुःख जाहिर करते हुए अपनी संवेदनाएं फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर जाहिर की लेकिन यह ट्रेंड कुछ ही दिन रहता है। जब एक फौजी ट्रेन में या बस में खड़ा होकर या अपने बक्से पर बैठ कर यात्रा करता है तो सभी अपनी अपनी सीट पर बैठे रहते हैं उस वक्त कोई भी अपनी सीट देने को क्यों नहीं आगे आता है ? तब आपकी देशभक्ति कहाँ चली जाती है ? एक तरफ तो हम देश भक्ति की बात करते हैं दूसरी तरफ फौजियों के लिए कुछ नहीं करते हैं। यह बड़े अफसोस की बात है। मेरे पिता जनरल साहब ने 42 साल देश की सेवा फौज में रहकर की है लेकिन उनके अंतिम वर्षों में कांग्रेस की भ्रस्ट सरकार ने उनकी पेंशन रोक दी थी और उनको एक साल पहले सेवानिवृत्त करने जा रही थी। जब जनरल साहब गाजियाबाद लोकसभा सीट से लड़े तो उनको तो लोगों को निर्विरोध चुनना चाहिए था। लोगों को सोचना चाहिए था की हमें एक ईमानदार आदमी मिल रहा है। मै तब जानती जब कोई भी पार्टी जनरल साहब के खिलाफ कोई उम्मीदवार न उतारती।
सत्येंद्र सिंह -देश भक्ति को आप किस नजरिये से देखती हैं ?
मृणालिनी सिंह - देखिये यदि आप देश भक्त थे तो आपने या आपकी संस्था उत्थान समिति ने गाजियाबाद सेन्ट्रल पार्क में इतना सुन्दर तिरंगा लगवाया। अब वहाँ की खूबसूरती बढ़ गयी है। मै यह सोचती हूँ की क्या इतने बड़े गाजियाबाद में किसी ने भी इस तरफ नहीं सोचा, किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं गया सिर्फ आपने ही क्यों सोचा ? आज सवा सौ करोड़ की जनसंख्या वाले देश में बहस हो रही है की जन गण मन होना चाहिए या नहीं। यह बहुत ही शर्म की बात है। देश भक्ति सिर्फ सोशल मीडिया पर नहीं होती है उसके लिए आपको कुछ करके दिखाना पड़ता है।
सत्येन्द्र सिंह - आपका इस बार गाजियाबाद का चुनाव कैसा रहा ? आपने जनरल साहब की कमी को पूरा करने की कोशिश की है ?
मृणालिनी सिंह - कोशिश, हाँ मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है की मैंने कोशिश ही की है। जनरल साहब पिछले सालों में अक्सर बाहर ही रहे हैं उनको मोदी जी ने हनुमान की पदवी दे रखी है उन्होंने विदेशों में फंसे कितने भारतीयों को अपने देश भारत सुरक्षित पहुँचाया है। इस वजह से वे बहुत अधिक समय नहीं दे पाए लेकिन वे देश सेवा ही करते रहे। देखिये इस बार मुझे बहुत दुःख हुआ, यहाँ के कुछ लोगों से। मै मानती हूँ की हम सभी की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह है होना चाहिए की आप किसी से व्यक्तिगत द्वेष करने लगें। कई बार मजबूरियां होती हैं जो की जनरल साहब की भी थी वह राजनीति में नए थे, अब हमें भी समझ में आ गया है की राजनीति में लोगों की अपेक्षाएं आपसे बहुत अधिक होती हैं और जब आप उन अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते हैं तो लोग आपसे नाराज हो जाते हैं। राजनीति में लोग अपना हित अधिक ढूंढ़ते हैं। हमें बहुत बुरा लगा जब यहाँ जनरल साहब के खिलाफ बाहरी के नारे लगाए गए उनका तो पूरा देश है फिर वो यहाँ पर कहाँ से बाहरी हो गए। हमारी दादी यहीं जेवर की ही हैं और आप हमको बाहरी कह रहे हैं, शर्म की बात है।
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सत्येन्द्र सिंह - गाजियाबाद पाँच साल पहले और आज में क्या अन्तर है ?
मृणालिनी सिंह - आज बहुत सुन्दर हो गया है हमारा गाजियाबाद। आज यहाँ पर एलिवेटेड रोड है , हवाई अड्डा है , शहर हरा भरा और खूबसूरत हो गया है।इस शहर को खूबसूरत बनाने में यहाँ की डी एम रितु माहेश्वरी, नगर आयुक्त सी पी सिंह, और जीडीए वीसी कंचन वर्मा का बहुत बड़ा योगदान है। साथ में उदिता त्यागी का भी बहुत बड़ा योगदान है शहर को पेंटिंग्स से खूबसूरत बनाने में। अभी एन एच -24 (मेरठ एक्सप्रेस-वे) का निर्माण बहुत तेजी से चल रहा है अगले साल यह भी चालू हो जायेगा। रैपिड रेल पर भी काम चालू हो चुका है। अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम भी अगले कुछ वर्षों में बन कर तैयार हो जायेगा। फिर सोचिये और कल्पना करिये की हमारा गाजियाबाद कितना खूबसूरत लगेगा।
सत्येन्द्र सिंह - मोदी जी के बारे में आपके क्या विचार हैं ?
मृणालिनी सिंह - मोदी जी को जब मै देखती हूँ तोमुझे उनके ऊपर बड़ा तरस आता है सोचती हूँ की ये बेचारे कितना संकल्प देश के लिए लेकर बैठे हुए हैं और लगातार, दिन रात देश सेवा में लगे हैं। अगर मोदी जी जैसे सभी हो जाएँ तो यह देश सुधर जायेगा। अब वक्त आ गया है की हर इंसान को बदलना होगा तभी देश बदलेगा।
सत्येन्द्र सिंह - आप महिला सशक्तिकरण् पर कुछ कहना चाहेंगी ?
मृणालिनी सिंह - मेरे हिसाब से यह सब फिजूल की बातें हैं। आप यह बताइये महिला सशक्त कब नहीं थी वह तो शुरू से सशक्त रही है। मेरी दादी चूल्हे में खाना बनाती थी। महिलाएं पानी भी भर कर लाती थीं। खाना बनाती थी, गाय को महिलायें दुहती थी और पूरा घर भी संभालती थी। तो वे कैसे सशक्त नहीं थीं मेरे हिसाब से वे बिलकुल सशक्त थीं। आज कल सिर्फ महिला सशक्तिकरण की बातें सोशल मीडिया या टी वी पर दिखाई देती हैं। वही महिलायें अपने बच्चों को दूसरे के घरों में छोड़ जाती हैं दूसरों के भरोसे क्या यह सही है मैंने तो कभी अपने बच्चे को इस तरह नहीं छोड़ा। अभी जब उनसे कहा जाये की आप अपने पर्स को किसी के भरोसे छोड़ दो तो नहीं छोड़ेंगी, कहेंगी की नहीं यह तो बहुत कीमती है। अरे क्या आपके बच्चे से अधिक कीमती है ? तो अब हमें अपनी सोच को बदलने की जरूरत है।
सत्येन्द्र सिंह - भारतीय संस्कार आज पश्चिमी सभ्यता के आगे बौने हो रहे हैं, क्या कारण है ?
मृणालिनी सिंह - भारतीय संस्कार हम लोग भूलते जा रहे हैं लेकिन आज पूरा विश्व भारत की तरफ उसके संस्कारों की वजह से ही देख रहा हैं। आज जब हमारे बच्चे का जन्मदिन होता है तो हम अपने बच्चे को केक कटवाते हैं। हमारा बच्चा बात नहीं मानता है तो कहते हैं की बात नहीं मानता है, इसका मतलब आपकी पेरेंटिंग में कुछ कमी है। बच्चा माल में जन्म दिन मनाने जाता है और हम खुशी खुशी भेजते हैं। क्या यह भारतीय संस्कार हैं। हमारे घर में अगर आज भी मेरे पिता जी ने कह दिया कि यह होना है तो मजाल है कि हम कुछ भी बोल सकें। हमारे बच्चे का जन्म दिन होता है तो हम हलवे का प्रसाद बांटते हैं। हम मंदिर जाते हैं। लेकिन अपने संस्कारों को नहीं भूलते हैं।
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