सरकार की मंशा अच्छी है लेकिन मंशा अच्छी होने से क्या काम चलेगा? क्योंकि उस मंशा पर अमल तो इन्हीं सरकारी बाबुओं को करना है-विपिन मल्हन
सरकार की मंशा अच्छी है लेकिन मंशा अच्छी होने से क्या काम चलेगा? क्योंकि उस मंशा पर अमल तो इन्हीं सरकारी बाबुओं को करना है-विपिन मल्हन
अधिकारियों को तो पैसे लेकर काम करने की आदत है। यदि आप कुछ आॅनलाइन जमा भी कर देंगे तो उसमें आपत्ति लगाकर रिजेक्ट कर दिया जाता है।
- इस शहर को बसने में प्लानिंग ठीक से नहीं की गयी थी।
- श्रमिकों के परिवार के लिए कोई घर नहीं बनाये गए।
- किसी भी इंडस्ट्रियल एरिया के सेक्टर में फूड कोर्ट नहीं है
- ट्रांसपोर्ट के साधन भी बेहतर नहीं हैं, खासतौर से इंडस्ट्रियल एरिया के सेक्टरों में बहुत दिक्कत है
- इंस्पेक्टर राज कागजों से तो समाप्त हो गया है लेकिन वास्तव में अब पहले से बहुत अधिक बढ़ गया है।
- जो भी नए सेक्टर या नए औद्योगिक क्षेत्र (जैसे यमुना एक्सप्रेसवे के किनारे) विकसित किये जा रहे हैं उनमें यह सुविधाएँ जरूर उपलब्ध करवाई जाएँ
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विपिन मल्हन रहने वाले तो पंजाब के हैं लेकिन पैदा कानपुर में हुए हैं। इनके पिता कानपुर में रोड कांट्रेक्टर थे। फिर ये दिल्ली आ गए और दिल्ली यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल की। और नौकरी करने लगे। इन्होंने फिर अपना बिजनेस करने की ठानी और इलेक्ट्रॉनिक का बिजनेस शुरू किया ये टेलीविजन बनाते थे फिर उसकी मार्केट खत्म होने पर इन्होंनेएल सी डी और एल इ डी की फैक्ट्री शुरू की और अब मोबाइल असेसरीज का निर्माण कर रहे हैं। ये हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में भी काम करते हैं और इनका एक होटल “ऑरेंज पाई” के नाम से है। ये स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं और इनका एक अस्पताल “एनएम सी” भी है। किसी सुंदर हीरो या मॉडल की तरह दिखने वाले विपिन मल्हन को देखकर हर कोई यही कहेगा की यह तो कोई चॉकलेटी हीरो है। लेकिन इतनी बड़ी एसोसिएशन के अध्यक्ष की जिम्मेवारी संभालना मजाक नहीं है। ये शहर के विधायक और सांसद से भी अधिक सक्रिय रहते हैं और हमेशा इनके ऑफिस में फरियादियों की भीड़ लगी रहती है। इनकी चुस्ती फुर्ती के आगे अच्छे अच्छे फीके पड़ जाते हैं। किसी भी समस्या के समाधान के लिए आगे बढ़कर हमेशा ये कहीं भी अड़ जाते हैं और समस्या का समाधान करवाकर ही मानते है।
इनसे “उद्योग विहार” के “एडिटर इन चीफ” “सत्येन्द्र सिंह” से बातचीत के कुछ अंश आपके सम्मुख प्रस्तुत हैं। उन्होंने बड़ी बेबाकी के साथ सभी प्रश्नों का जवाब दिया है।
सत्येन्द्र सिंह -नोएडा कैसे बसा और इसमें क्या सुविधाएं उद्योगों को दी जा रही हैं ?
विपिन मल्हन - नोएडा सन 1976 में बना था। इसे बसाया तो गया था की यहाँ उद्योग लगेंगे लेकिन इसे पूरी प्लानिंग के साथ नहीं बसाया गया और इसे बसाते समय उद्योगों की मूलभूत सुविधाओं का भी ख्याल नहीं रखा गया। न तो उद्योगपतियों की सुविधाओं का ख्याल रखा गया और न ही श्रमिकों की समस्याओं का ध्यान रखा गया। इसे बनाया तो उद्योग लगाने के लिए लेकिन यह रेजिडेंशियल हब बन गया।
सत्येन्द्र सिंह -आप कह रहे हैं की इसे उद्योगों के लिए बसाया गया था लेकिन कोई सुविधाएँ नहीं दी गयी, तो कृपया बताये की क्या सुविधाएँ नहीं दी गयीं जो की मिलनी चाहिए थीं ?
विपिन मल्हन - इस शहर को बसने में प्लानिंग ठीक से नहीं की गयी थी। यहाँ पर इंडस्ट्रियल रॉ मैटेरियल की कोई मार्केट नहीं थी और लोग दिल्ली या गाजियाबाद में रॉ मैटेरियल लेने जाते थे। फिर हम लोगों ने धीरे धीरे सेक्टर 10 और सेक्टर 9 में रॉ मैटेरियल की मार्केट डेवलप कर ली है। रॉ मैटेरियल किसी भी कारखाने को चलाने के लिए सबसे जरूरी चीज है जिसके बिना कोई भी उद्योग नहीं चल सकता है। श्रमिकों के परिवार के लिए कोई घर नहीं बनाये गए। श्रमिकों के लिए कोई श्रमिक कुंज आज भी नहीं है और न ही इसेबसाते समय उनके बारे में ध्यान रखा गया की वे भी यहाँ पर रहेंगे और काम करेंगे। उनके बिना तो किसी भी उद्योग की कल्पना भी करना मुश्किल है। श्रमिकों के लिए श्रमिक कुञ्ज बनाये जाने चाहिए तथा उसमें उनके बच्चों के खेलने का मैदान और स्कूल के साथ ही अस्पताल की भी सुविधा होनी चाहिए।
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सत्येन्द्र सिंह - किसी भी इंडस्ट्रियल एरिया के सेक्टर में फूड कोर्ट नहीं है जिसकी वजह से लोगों को दूर जाना पड़ता है अथॉरिटी को चाहिए की हर इंडस्ट्रियल एरिया के सेक्टर में कियोस्क लगाने चाहिए जिससे इस समस्या का समाधान हो सकता है और ट्रांसपोर्ट के साधन भी बेहतर नहीं हैं, खासतौर से इंडस्ट्रियल एरिया के सेक्टरों में बहुत दिक्कत है जिसकी वजह से ऑटो वाले हर जगह सड़क को जाम किये रहते हैं और श्रमिकों के साथ साथ उद्योगपतियों का भी चलना दूभर हो गया है। हर जगह आपको जाम मिलेगा। आप कहीं पर समय से पहुँच ही नहीं सकते हैं। सेक्टर 83 , 84 , 85 श्रमिक कैसे पहुँचेंगे ? कोई लोकल ट्रांसपोर्ट नहीं हैं आप सेक्टर तो बनाते जा रहे हो लेकिन सुविधाएं कुछ भी नहीं दे रहे हो।
विपिन मल्हन - हम सरकार से कहना चाहते हैं की जो भी नए सेक्टर या नए औद्योगिक क्षेत्र (जैसे यमुना एक्सप्रेसवे के किनारे ) विकसित किये जा रहे हैं उनमें यह सुविधाएँ जरूर उपलब्ध करवाई जाएँ ताकि पिछली भूल को सुधारा जा सके। लेकिन अफसोस की बात है की जब नोएडा की स्थापना हुई तब भी इन समस्याओं के विषय में नहीं सोचा गया और न ही अब भी कोई इन विषयों और समस्याओं पर सोच रहा है।
सत्येन्द्र सिंह -एन इ ए की स्थापना कब हुई थी और इसकी क्या भूमिका है ?
विपिन मल्हन - 1976 में नोएडा की स्थापना हुई थी फिर यहाँ पर उद्योग लगने शुरू हुए थे तो लोगों को उद्योगों को लगाने में तमाम नियम कानूनों की वजह से दिक्कतें भी आने लगीं फिर उनकी समस्या के समाधान के लिए ही 1978 में एन इ ए (नोएडा एंटरप्रेन्योर्स एसोसिएशन ) का गठन हुआ और इसके माध्यम से उद्योगपतियों की समस्याएं सुलझायी जाने लगी। इस एसोसिएशन का काम सरकारी अधिकारियों और उद्योगपतियों के मध्य एक ब्रिज (पुल ) का काम करना है। एन इ ए पिछले 42 वर्षों से उद्योगों की समस्याओं को सुलझाती चली आ रही है।एन इ ए श्रमिकों के लिए एक छोटा सा अस्पताल भी चलाती है जहाँ पर मात्र 20 रुपये में पूरी बॉडी का चेक अप किया जाता है और तीन दिन की दवाएँ भी दी जाती हैं। हमारे पास अल्ट्रासाउण्ड मशीन, एक्सरे इत्यादि सभी सुविधाये मरीजों के लिए उपलब्ध हैं।
सत्येन्द्र सिंह -क्या वर्तमान सरकार में जो सुविधाएँ उद्योगों को मिलनी चाहिए थी वो दी जा रही है?
विपिन मल्हन - वर्तमान सरकार में पारदर्शिता है वह चाहती है की उद्योगों को पूरी सुविधाएँ मिलें और हर चीज ऑनलाइन कर रही है। उसका प्रयास है की हर चीज ऑनलाइन हो जाये लेकिन अभी इसमें समय लगेगा क्योंकि इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है और अधिकारियों को तो पैसे लेकर काम करने की आदत है। उनको सरकार इसी काम की तनख्वाह देती है लेकिन वे हर कार्य के पैसे चाहते हैं और बिना पैसे के कोई फाइल हिल भी नहीं सकती है। हर विभाग का यही हाल है फिर चाहे वो श्रम विभाग हो , नोएडा अथॉरिटी हो , पी एफ विभाग हो या इ एस आई विभाग हो। सरकार की मंशा अच्छी है लेकिन मंशा अच्छी होने से क्या काम चलेगा ? क्योंकि उस मंशा पर अमल तो इन्हींसरकारी बाबुओं को करना है। जब तक इनको नहीं सुधारा जायेगा तब तक कोई भी सरकारी सुविधा का लाभ जो सरकार देना चाहती है वो उद्योगों तक नहीं पहुँच पायेगा।
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सत्येन्द्र सिंह -क्या इंस्पेक्टर राज समाप्त हो गया है ? अब उद्योगों को श्रम विभाग एवं अन्य विभागों के लाइसेंस एवं अनापत्ति प्रमाणपत्र क्या आसानी से मिल रहे हैं ?
विपिन मल्हन - इंस्पेक्टर राज कागजों से तो समाप्त हो गया है लेकिन वास्तव में अब पहले से बहुत अधिक बढ़ गया है। हाँ, कागजों में इंस्पेक्टर ऑफ फैक्ट्रीज का नाम बदल कर डायरेक्टर ऑफ फैक्ट्रीज कर दिया गया है लेकिन उनके सारे कार्य वही हैं और उसी तरह कारखानों का शोषण चल रहा है। यदि आप कुछ ऑनलाइन जमा भी कर देंगे तो उसमें आपत्ति लगाकर रिजेक्ट कर दिया जाता है और कानून में इतनी चीजे है जिनको पूरा कर पाना किसी कारखाना मालिक के लिए असंभव है। हमें कानून का भी सरलीकरण करना चाहिए और धरातल पर इंस्पेक्टर राज समाप्त होना चाहिए लेकिन हकीकत यही है की धरातल पर आज भी भ्रष्टाचार से कोई मुक्ति नहीं मिल पायी है। हमारे पास बहुत शिकायतें अब भी रोज आती हैं।
सत्येन्द्र सिंह - वर्तमान सरकार में भी क्या अधिकारियों का वही रवैया है जो पहले था?
विपिन मल्हन - नहीं, अभी थोड़ा बदलाव हुआ है और उनका भी नजरिया धीरे धीरे बदल रहा है। अब अधिकारियों का रवैया थोड़ा सकारात्मक हुआ है जिसे अभी काफी बदलना होगा तभी उद्योगों को राहत मिलेगी और जब उद्योग चलेंगे तो श्रमिक भी खुशहाल होंगे और देश की अर्थव्यवस्था भी आगे बढ़ेगी। उद्योग ही देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
सत्येन्द्र सिंह - आप एन इ ए में इतना सक्रिय रहते हैं क्या आगे आने वाले चुनावों में किसी पार्टी से यदि टिकट मिलता है तो चुनाव लड़ना चाहेंगे?
विपिन मल्हन - देखिये ये औद्योगिक नगरी है और हमें इसकी नब्ज ठीक से मालूम है। मैं उद्योगपतियों की भी पीड़ा जानता हूँ और श्रमिकों की भी समस्याओं से वाकिफ हूँ। रही बात चुनाव लडने की तो मैं आपको बताना चाहता हूँ की मेरी कोई भी इच्छा चुनाव लड़ने की नहीं है। न ही मैं राजनीति में जाना चाहता हूँ। मैं बस जहाँ पर हूँ वही उद्योगों की सेवा करना चाहता हूँ।
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