सीआरपीसी की धारा 482 - आपराधिक कार्यवाही महज इसलिए रद्द नहीं की जा सकती कि शिकायत राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी द्वारा दर्ज की गई थी: सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आपराधिक कार्यवाही महज इसलिए रद्द नहीं की जा सकती कि शिकायत एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी द्वारा दर्ज कराई गई थी।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि यह तथ्य कि राजनीतिक प्रतिशोध के कारण शिकायत शुरू की गई हो सकती है, आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का आधार नहीं है। पीठ ने रामवीर उपाध्याय द्वारा दायर याचिका को खारिज करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। आरोपी ने अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश, हाथरस के आदेश को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 की धारा 365 के साथ पठित धारा 511 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम), 1989 की धारा 3(1)(डीएचए) के तहत दायर शिकायत का संज्ञान लेते हुए चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील में, आरोपी ने दलील दी कि यह मामला राजनीतिक दुश्मनी के कारण दुर्भावनापूर्ण अभियोजन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह दलील दी गयी थी कि सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत शिकायत आरोपी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी देवेंद्र अग्रवाल, पूर्व विधायक, के कहने पर दर्ज की गई थी। कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट की शक्तियों के दायरे से संबंधित विभिन्न निर्णयों का जिक्र करते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कहने मात्र से नहीं किया जाता।
"यह तथ्य कि शिकायत राजनीतिक प्रतिशोध के कारण शुरू की गई हो सकती है, आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का आधार नहीं होता, जैसा कि मुख्य न्यायाधीश भगवती ने 'शिवनंदन पासवान बनाम बिहार सरकार एवं अन्य' में देखा है। यह कानून का एक सुस्थापित तथ्य है कि एक आपराधिक अभियोजन, यदि उचित और पर्याप्त सबूतों पर आधारित है, तो पहले सूचनाकर्ता या शिकायतकर्ता की दुर्भावना या राजनीतिक प्रतिशोध के कारण प्रभावित नहीं होता है। यद्यपि 'शिवनंदन पासवान (सुप्रा)' मामले में मुख्य न्यायाधीश भगवती का दृष्टिकोण अल्पमत का दृष्टिकोण था, लेकिन इस निष्कर्ष के संबंध में कोई मतभेद नहीं था। कोर्ट ने 'पंजाब सरकार बनाम गुरदयाल सिंह' मामले में जस्टिस कृष्णा अय्यर को उद्धृत किया जिसमें उन्होंने कहा था, "यदि शक्ति का उपयोग एक वैध उद्देश्य की पूर्ति के लिए है, तो द्वेष द्वारा कार्रवाई या उत्प्रेरण वैध नहीं है।"
कोर्ट ने कहा कि शिकायत में लगाये गये आरोप अत्याचार अधिनियम के तहत अपराध हैं और आरोप सत्य हैं या असत्य, इस पर सुनवाई के दौरान फैसला करना होगा। कोर्ट ने कहा, "सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए, कोर्ट असाधारण दुर्लभ मामलों को छोड़कर किसी शिकायत में आरोपों की शुद्धता की जांच नहीं करता है, जहां यह पूर्णरूपेण स्पष्ट है कि आरोप मनगढंत हैं या किसी भी अपराध का खुलासा नहीं करते हैं।" अपील खारिज करते हुए पीठ ने कहा:
हमारे विचार में आपराधिक कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके शुरू में ही महज इसलिए समाप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि शिकायत एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी द्वारा दर्ज की गई है। यह संभव है कि एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के इशारे पर एक झूठी शिकायत दर्ज की गई हो। लेकिन, ऐसी आशंका आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हस्तक्षेप को उचित नहीं ठहराएगी। जैसा कि ऊपर देखा गया है, पूर्व के आपराधिक मामले बंद होने के बाद कथित कृत्यों द्वारा याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रतिशोध की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।" मामले का विवरण रामवीर उपाध्याय बनाम उत्तर प्रदेश सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 396 | एसएलपी (क्रिमिनल) 2953/2022| 20 अप्रैल 2022 कोरम: जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एएस बोपन्ना वकील: याचिकाकर्ता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार, प्रतिवादी के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे हेडनोट्सः दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 482 - आपराधिक कार्यवाही केवल इसलिए रद्द नहीं की जा सकती कि शिकायत एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी द्वारा दर्ज की गई है। संभव है कि किसी राजनीतिक विरोधी के इशारे पर झूठी शिकायत दर्ज कराई गई हो, लेकिन ऐसी संभावना आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हस्तक्षेप को उचित नहीं ठहराएगी - यह तथ्य कि शिकायत राजनीतिक प्रतिशोध के कारण शुरू की गई हो सकती है, आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का अच्छा आधार नहीं है। (पैरा 30,39) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 482 - सीआरपीसी की धारा 482 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग निवेदन के आधार पर नहीं किया जाना है - सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए, कोर्ट किसी शिकायत में आरोपों की शुद्धता की जांच नहीं करती है सिवाय अपवाद के दुर्लभ मामले, जहां यह पूर्णरूपेण स्पष्ट है कि आरोप बेबुनियाद हैं या किसी अपराध का खुलासा नहीं करते हैं - न्याय का लक्ष्य बेहतर होगा यदि कोर्ट का बहुमूल्य समय धारा 482 के तहत याचिकाओं पर विचार करने के बजाय अपीलों की सुनवाई पर खर्च किया जाता है, अन्यथा अंततः न्याय नहीं मिल पाएगा।(पैरा 26-39) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम), 1989 - यह तर्क कि केवल विशेष न्यायालय ही अत्याचार अधिनियम के तहत अपराधों का संज्ञान ले सकता है, खारिज किया जाता है। [शांताबेन भूराभाई भूरिया बनाम आनंद अथाभाई चौधरी 2021 एससीसी ऑनलाइन एससी 974 का संदर्भ भी दिया गया।] सारांश - इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एसएलपी जिसने आरोपी को तलब करने के आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया- खारिज कर दिया - शिकायत में लगाये गये आरोप अत्याचार अधिनियम के तहत अपराध का गठन करते हैं। आरोप सही है या गलत, इसका फैसला ट्रायल के दौरान होगा।