सुप्रीम कोर्ट ने एकनाथ शिंदे ग्रुप के असली शिवसेना के दावे पर चुनाव आयोग को फैसला करने से रोकने की उद्धव ग्रुप की मांग खारिज की

Oct 04, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in/

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारत के चुनाव आयोग को एकनाथ शिंदे ग्रुप के असली शिवसेना के दावे पर फैसला करने से रोकने से इनकार कर दिया। कोर्ट की एक संविधान पीठ ने एक दिन की लंबी सुनवाई के बाद उद्धव ठाकरे समूह द्वारा दायर स्टे की अर्जी खारिज कर दी। बेंच ने आदेश दिया, "हम निर्देश देते हैं कि भारत के चुनाव आयोग के समक्ष कार्यवाही पर कोई रोक नहीं होगी। तदनुसार, इंटरलोक्यूटरी एप्लिकेशन को खारिज कर दिया जाता है।"
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एम.आर. शाह, जस्टिस कृष्णा मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा की पीठ उद्धव ठाकरे ग्रुप द्वारा भारत के चुनाव आयोग को आधिकारिक शिवसेना पार्टी के रूप में मान्यता के लिए एकनाथ शिंदे ग्रुप द्वारा उठाए गए दावे पर निर्णय लेने से रोकने के लिए पेश किए गए अंतरिम आवेदन पर सुनवाई कर रहे थे। सुनवाई के मुख्य अंश शिंदे ने किस हैसियत से चुनाव आयोग का रुख किया है? बेंच ने पूछा
पीठ ने सुनवाई के दौरान उद्धव समूह के वकील सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल से पूछा कि शिंदे ने वास्तविक शिवसेना के रूप में अपने दावे के साथ भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) से किस हैसियत से संपर्क किया। सिब्बल ने जवाब दिया कि यही तो पूरा मुद्दा है, क्योंकि शिंदे अयोग्य होने के बाद चुनाव आयोग से संपर्क नहीं कर सकते। सिब्बल ने कहा, "मैंने चुनाव आयोग को स्थानांतरित करने वाले व्यक्ति के स्थिति को चुनौती दी थी।" पीठ ने आगे पूछा कि ईसीआई की कौन सी शक्तियों का इस्तेमाल किया गया है। सिब्बल ने जवाब दिया कि शिंदे का दावा चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश और सादिक अली मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर है।
उन्होंने कहा कि जब सादिक अली और अन्य बनाम भारत के चुनाव आयोग और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला जब आया तब, दसवीं अनुसूची को संविधान में पेश किया जाना बाकी था। उन्होंने दलील दी कि शिंदे को अयोग्य ठहराया गया है क्योंकि दसवीं अनुसूची के पैरा 2(1)(ए) के तहत उनके विभिन्न कृत्यों/चूक 'स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ने' की श्रेणी में आते हैं। इसके अलावा उन्होंने दसवीं अनुसूची के पैरा 2(1)(बी) के तहत पार्टी व्हिप का भी उल्लंघन किया है।
पीठ ने कहा कि यह मुद्दा दसवीं अनुसूची के तहत स्पीकर के अधिकार क्षेत्र और चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र के दायरे में चुनाव चिन्ह आदेश के संबंध में है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "राजनीतिक दल उस दल की विधायी इकाई की तुलना में बहुत व्यापक विन्यास है जिसमें निर्वाचित सदस्य होते हैं ... क्या विधायी इकाई में पूर्व के संबंध में विवाद चुनाव आयोग के अधिकार को प्रभावित करता है। यही इसका मूल मामला है।" सिब्बल ने जवाब दिया कि विधायक दल राजनीतिक दल के ढांचे के भीतर काम करता है और उन्हें जोड़ने वाली एक गर्भनाल होती है। पीठ ने पूछा कि दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता का प्रतीक आदेश पर क्या प्रभाव पड़ेगा? सिब्बल ने जवाब दिया कि अयोग्य सदस्य को चुनाव आयोग से संपर्क करने की अनुमति देना लोकतंत्र के लिए कयामत है। सिब्बल ने जवाब दिया, "तब किसी भी सरकार को बाहर किया जा सकता है और उनका अपना स्पीकर होगा जो अयोग्यता पर फैसला नहीं करेगा।" उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता उस समय से संबंधित है जब कार्य किए गए थे और यह निर्णय की तारीख से ही प्रभावी नहीं है। जब कोई निर्वाचित सदस्य अपनी ही सरकार के विरुद्ध राज्यपाल को लिखता है तो यह स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ने के समान होता है। चुनाव चिन्ह आदेश का दायरा सिब्बल ने तर्क दिया कि चुनाव चिन्ह आदेश तभी लागू किया जा सकता है जब दावेदार एक ही राजनीतिक दल से संबंधित हो और प्रतिद्वंद्वी समूह का होने का दावा करता हो। उन्होंने प्रतीक आदेश के अनुच्छेद 15 पर भरोसा किया। इसलिए, यदि किसी सदस्य ने स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है, तो वह अनुच्छेद 15 को लागू नहीं कर सकता, इसलिए अयोग्यता के निर्णय का चुनाव आयोग की शक्तियों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। सुविधा का संतुलन सिब्बल ने कहा कि सुविधा का संतुलन उद्धव समूह के पक्ष में है। उन्होंने बेंच को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को बृहन्मुंबई नगर निगम चुनाव पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। निकट भविष्य में कोई चुनाव नहीं हो रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि चुनाव आयोग को शिंदे के दावे पर फैसला करने की अनुमति देने से उद्धव समूह को "अपूरणीय क्षति" हो सकती है। सीनियर एडवोकेट डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने उद्धव समूह के लिए सिब्बल की दलीलों का समर्थन किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि दसवीं अनुसूची के तहत किसी अन्य राजनीतिक दल के साथ विलय ही एकमात्र बचाव है। दलबदल विरोधी कानून के तहत "विभाजन" की कोई अवधारणा नहीं है। सिंघवी ने कहा, "शिवसेना आज किसी भी रूप में मौजूद है, उनका यह दावा नहीं है कि उनका भाजपा में विलय हो गया है।" उन्होंने कहा, "आपने शिवसेना छोड़ दी है, लेकिन आप शिवसेना की सद्भावना चाहते हैं और इसलिए आप विलय नहीं करेंगे।"

आपकी राय !

uniform civil code से कैसे होगा बीजेपी का फायदा ?

मौसम