राज्य अनुशासनात्मक कार्यवाही और न्यायालय के समक्ष विरोधाभासी मत पेश नहीं कर सकता, कर्नाटक हाईकोर्ट ने केएसआरटीसी को एसओपी तैयार करने का निर्देश दिया

Oct 10, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in/

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य विशेषकर उसके तंत्र, अनुशासनात्मक कार्रवाइयों और कोर्ट के समक्ष विरोधाभाषी मत पेश नहीं कर सकते। कोर्ट ने उक्त ‌टिप्पणी के साथ प्रबंध ‌निदेशक, राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) को मोटर दुर्घटना दावा मामलों में उचित मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) स्थापित करने का निर्देश दिया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी और/या अधिकारी मोटर दुर्घटना दावा कार्यवाही में लिखित बयान दाखिल करते हुए कोई विरोधाभासी मत ना पेश करें।
जस्टिस सूरज गोविंदराज की सिंगल बेंच ने कहा, "यदि ऐसी कोई घटना होती है तो ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ लागू नियमों का पालन करते हुए आवश्यक अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की जाए।" उन्होंने कहा, "यह भी निर्देश जारी किया जाए कि मोटर वाहन दुर्घटना दावा याचिका में दायर किसी भी लिखित बयान में यह बताया जाए कि क्या मामले में कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई है या नहीं।" तुमकुर प्रधान जिला जज की ओर से पारित एक आदेश के खिलाफ निगम ने याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह टिप्पणी की। आदेश में निगम को 2015 में एक सड़क दुर्घटना में शामिल ड्राइवर गंगन्ना को बहाल करने का निर्देश दिया गया था। जज ने कर्मचारी की दावा याचिका को स्वीकार किया था और बर्खास्तगी के आदेश को रद्द करते हुए प्रतिवादी-कर्मचारी को बर्खास्तगी की तारीख से सेवा की निरंतरता के साथ सेवा में बहाल करने का ‌निर्देश दिया था।
सुनवाई के दरमियान पीठ ने मोटर वाहन अधिनियम के तहत दायर मोटर वाहन दुर्घटना दावा याचिका में निगम की ओर से पेश बचाव की मांग की थी। उसे देखने के बाद पीठ ने कहा कि सड़क परिवहन निगम ने प्रतिवादी-कार्यकर्ता के ड्राइविंग को प्रमाणित किया है और स्पष्ट रूप से कहा है कि बस सड़क के बाईं ओर धीमी गति से और सावधानी से चलाई जा रही थी। आगे आरोप लगाया गया है कि मोटर साइकिल सवार विपरीत दिशा से तेज रफ्तार और लापरवाही से आया और बस के अगले हिस्से से टकरा गया।
यह तर्क दिया गया कि कि दुर्घटना की पूरी जिम्मेदारी मोटरसाइकिल सवार की थी और इस आधार पर कहा गया कि सड़क परिवहन निगम को मुआवजे के लिए जिम्मेदार नहीं बनाया जाना चाहिए। हालांकि, पीठ ने कहा कि ‌‌डिवीजनल कंट्रोलर, केबीएस डिवीजन की स्पष्ट राय थी कि बस को तेजी से और लापरवाही से चलाया जा रहा था, और इसकी सूचना प्रबंध निदेशक, केएसआरटीसी को फैक्स से दी गई थी। पीठ ने कहा कि अब यह प्रबंध निदेशक को समझाना है कि एमवी मामले में ऐसा बचाव कैसे पेश किया गया कि ड्राइवर सही तरीके से बस चला रहा था और मोटर साइकिल राइडर लापरवाही और तेजी से गाड़ी चला रहा था।
यह माना गया कि एक बार चालक उक्त लिखित बयान से दोषमुक्त हो गया, तो सड़क परिवहन निगम के लिए अनुशासनात्मक जांच शुरू करने की अनुमति नहीं है। कोर्ट ने कहा कि केएसटीआरसी को अपने को सही साबित करना होगा। कोर्ट ने कहा "मुआवजे देने से बचने की कोशिश में सड़क परिवहन निगम ने एक झूठा बयान दिया है, जो वर्तमान रिट याचिका की सामग्री के साथ-साथ एमएसीटी द्वारा 8 सितंबर 2016 को दिए आदेश से गलत साबित होता है।" कोर्ट ने कहा, "सड़क परिवहन निगम ने एमएसीटी मामले में अपने दायित्व से बचने के लिए, ऐसी दलीद पेश की है कि चालक उचित तरीके से बस चला रहा था और दोपहिया वाहन का सवार तेजी से और लापरवाही से गाड़ी चला रहा था, जबकि दूसरी ओर अनुशासनात्मक कार्यवाही में यह तर्क दिया गया है कि ड्राइवर तेजी में और लापरवाह था ... किसी भी वादी, विशेषकर राज्य के किसी तंत्र के लिए यह आवश्यक है कि तथ्यों के एक सेट को ही पेश किया जाए और सुविधा और/या आवश्यकताओं के आधार के आधार पर तथ्यों के सेट को बदला न जाए।" कोर्ट ने कहा कि लिखित बयान में जब एक बार ड्राइवर को माफ किया जा चुका है, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कैसे शुरु की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में केएसआरटीसी को अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा। साथ ही, कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि एमवी मामले में ड्राइवर की ओर से गलती की गई है और उक्त कार्यवाही में मुआवजे का भुगतान करने की पेशकश की। कोर्ट ने कहा, "यह भी ध्यान रखना प्रासंगिक है कि सड़क परिवहन निगम की ओर से पेश उक्त झूठे बचाव के कारण न केवल एमएसीटी का कीमती समय बर्बाद हुआ, बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सड़क दुर्घटना के शिकार को तत्काल राहत से वंचित किया गया है।" कोर्ट ने कहा कि सड़क परिवहन निगम की ऐसी कार्रवाइयों को हतोत्सहित करने की आवश्यकता है। इन्हीं टिप्पणियों के साथ याचिका खारिज की गई।