33 फीसद कम हुआ यमुना में प्रदूषण

Apr 23, 2020

33 फीसद कम हुआ यमुना में प्रदूषण

लॉकडाउन के दौरान वायु ही नहीं, जल प्रदूषण में भी गिरावट दर्ज की गई। अकेले यमुना के प्रदूषण में 33 फीसद की कमी आई है। हालांकि इसकी वजह केवल सब कुछ बंद होना नहीं बल्कि पीछे से यमुना में पानी छोड़ना भी रहा है। हैरत की बात यह कि साफ होने के बावजूद यमुना का पानी अभी भी मानकों पर खरा नहीं उतरता। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (डीपीसीसी) ने इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर एनजीटी द्वारा नियुक्त यमुना मॉनिटरिंग कमेटी को सौंपी दी है। इस वजह से साफ हो पाई नदी डीपीसीसी के आकलन में लॉकडाउन अवधि की तुलना पिछले साल के अप्रैल महीने से की गई है। कमेटी ने यमुना की नौ जगहों के साथ-साथ 20 नालों से भी पानी का सैंपल लिया था। कमेटी के मुताबिक, औद्योगिक कचरे के बंद होने और पानी के बहाव की वजह से यमुना नदी काफी साफ हो गई है। हालांकि डीपीसीसी ने यह भी कहा है कि नदी के पानी में सुधार होने के बाद अब भी यह मानकों पर खरा नहीं उतरता क्योंकि यमुना में अब भी घरेलू नालों का पानी जाकर मिल रहा है।

वहीं अगर ओखला बैराज पर नदी की बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) के लिहाज से प्रदूषण की बात की जाए तो प्रदूषण में तकरीबन 18 फीसद की कमी आई है। इसके अलावा निजामुद्दीन ब्रिज पर 20 फीसद व ओखला बैराज पर स्थित आगरा कैनाल में 33 फीसद प्रदूषण में कमी आई है। वहीं आइटीओ पुल पर 21 फीसद और केदेसिया घाट पर 4 फीसद की कमी आंकी गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, किसी भी जगह का पानी इस श्रेणी का नहीं है। खजूरी प्लाटून पूल ही एक ऐसी जगह है, जहां पर पानी में 42 फीसद की बढ़ोतरी देखी गई है। जिन अन्य पैमानों पर यमुना के पानी को जांचा गया है, उसमें पीएच, सीओडी, डीओ और फेकल कोलिफॉर्म का स्तर है। कई जगहों पर अब भी हाई लेवल कोलिफॉर्म पाए गए हैं। यानि कि यमुना में अब भी नाले का पानी बिना साफ हुए सीधे तौर पर गिर रहा है।

एक अधिकारी के मुताबिक, इन दिनों लॉकडाउन के अलावा यमुना नदी में प्रदूषण घटने की वजह ज्यादा पानी छोड़ा जाना भी है। इस समय औद्योगिक नाले पूरी तरह से बंद हैं। उन्होंने कहा कि अगर इसी तरह नाले इसी नदियों में गिरते रहे तो हम पानी के स्तर को नहीं बढ़ा पाएंगे।इस महीने छोड़ा गया 3900 क्यूसेक पानी : रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2019 अप्रैल में नदी में 1000 क्यूसेक पानी छोड़ा गया, वहीं इस महीने में 3900 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है। नदी के साफ होने का ये एक प्रमुख कारण है।

देशव्यापी लॉकडाउन में भी दिल्ली एनसीआर का वायु प्रदूषण घटा जरूर, लेकिन सल्फर डाइऑक्साइड जैसे खतरनाक प्रदूषक तत्व की मात्र इस दौरान भी ज्यादा नीचे नहीं आई। यही नहीं, अरब देशों की तरफ से आए धूल के तूफान ने भी 5 से 15 अप्रैल के मध्य एयर इंडेक्स में इजाफा किया। यह अहम तथ्य सीपीसीबी ने खुद स्वीकार किया है।

हालांकि लॉकडाउन के बाद देश के 71 शहरों में वायु गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। दरअसल, सीपीसीबी ने 15 मार्च से 15 अप्रैल तक एक माह के वायु प्रदूषण पर अपनी अध्ययन रिपोर्ट मंगलवार देर रात जारी कर दी है। इसमें 15 से 21 मार्च के आंकड़ों के आधार पर 22 से 15 अप्रैल तक के आंकड़ों की तुलना की गई है। अध्ययन में पीएम 2.5, पीएम 10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और बेंजीन इत्यादि सभी प्रमुख प्रदूषण तत्वों में कमी देखी गई है, लेकिन बाकी प्रदूषक तत्वों में जहां 37 से 56 फीसद की कमी आई है। वहीं सल्फर डाइऑक्साइड में महज 19 फीसद की गिरावट दर्ज हुई है।

पीएम 2.5 और पीएम 10 में 24 घंटे के औसत स्तर पर भी तुलना की गई है। इसके मुताबिक लॉकडाउन-1 के दौरान पीएम 2.5 जहां न्यूनतम 39 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक गया है। वहीं पीएम 10 भी 24 फीसद रहा। ऐसी ही तुलना सुबह शाम के के प्रदूषण की भी की गई है। इसके मुताबिक पीएम 10 का अधिकतम स्तर पूर्व के 244 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के मुकाबले सिर्फ 127 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रहा। वहीं न्यूनतम स्तर पूर्व के 188 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के मुकाबले केवल 63 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया। इसी तरह पीएम 2.5 का अधिकतम स्तर पूर्व के 144 के मुकाबले महज 21 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रहा। लॉकडाउन के दौरान दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, देशभर के वायु प्रदूषण में गिरावट दर्ज की गई है। जनजागरूकता और दीर्घकालिक उपायों से यह सुधार भविष्य में जारी रखा जा सकता है।

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