अस्थियों और चिता की राख से पर्यावरण को सांस

Nov 14, 2019

अस्थियों और चिता की राख से पर्यावरण को सांस

हरजीत सिंह जोगा’

प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सरकार या दूसरी संस्थाओं के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती। जरूरी है कि हर व्यक्ति अपने स्तर पर भी यथासंभव प्रयास करे। पंजाब में मानसा के बुर्ज ढिल्लवां गांव के लोगों ने इस दिशा में अनुकरणीय पहल की है। अपने प्रियजन के निधन पर शोक की घड़ी में भी ये पर्यावरण की चिंता कर रहे हैं। अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां और चिता की राख को नदी में प्रवाहित करने के बजाय इन्हें जमीन में दबा या मिट्टी में मिला देते हैं और वहां पौधे लगा देते हैं। इससे न केवल नदियों में प्रदूषण रुक रहा है, बल्कि जमीन की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ रही है।

मानसा के बुर्ज ढिल्लवां गांव निवासी गुरमीत सिंह निक्का कहते हैं कि अंतिम संस्कार के समय लगाया गया पौधा पेड़ बनकर उन्हें हमेशा पिता की याद दिलाता रहेगा। दरअसल, लीक से हटकर हुई इस पहल के पीछे ‘वातावरण : द ग्रेट थिंकर्स क्लब’ का मुख्य योगदान रहा है। अब तक गांव के एक दर्जन परिवार पर्यावरण हितैषी इस परंपरा से जुड़ चुके हैं। खास बात यह कि क्लब के सदस्यों ने खुद इसकी शुरुआत की। इनमें सुखविंदर सिंह और गुरविंदर सिंह ने अपने पिता मिट्ठू सिंह और गुरजीत सिंह फौजी व दर्शन सिंह ने अपने पिता बलविंदर सिंह की अस्थियों व चिता की राख को मिट्टी में दबा दिया। क्लब के सदस्य सुखदेव सिंह ने अपने पिता जोरा सिंह, गुरबखश सिंह, सुखपाल सिंह, हरपाल सिंह व हरबंस सिंह ने अपने पिता अजमेर सिंह, कर्मजीत सिंह ने अपने पिता सुखमिंदर सिंह और गुरदीप सिंह ढिल्लों व गुरमीत सिंह निक्का ने अपने पिता गुरतेज सिंह ढिल्लों की अस्थियां और चिता की राख अपने खेत में दबाकर फलदार पौधे लगाए हैं।

गुरमीत सिंह निक्का शिरोमणि अकाली दल यूथ विंग के सर्किल प्रधान हैं। वह कहते हैं कि ऐसा करने से नदियों में जहां प्रदूषण कम होगा, वहीं हरियाली भी बढ़ेगी।

जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाती हैं अस्थियां

विज्ञान प्राध्यापक साहिल कुमार बताते हैं कि अस्थियों में पोटेशियम और फॉस्फोरस पाए जाते हैं, जो जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने में सहायता करते हैं। ‘वातावरण : द ग्रेट थिंकर्स क्लब’ के प्रधान जगसीर सिंह जग्गा और पर्यावरण प्रेमी सुखपाल सिंह जोगा कहते हैं कि अस्थियां व चिता की राख खेत में दबाकर पौधे लगाने से पर्यावरण साफ रहता है। पर्यावरण बचाने के लिए सभी लोगों को इस नई परंपरा से जुड़ना चाहिए।

एक शायर की भी थी ऐसी आरजू

सिख चिंतक और पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के पूर्व प्रोफेसर डॉ. हरपाल सिंह पन्नू कहते हैं कि सात शताब्दी पहले ईरान के फकीर शायर हाफिज शिराजी की भी इच्छा थी कि उसे उसके प्रिय पेड़ के नीचे दफनाया जाए। उन्होंने वसीयत में लिखा था कि उन्हें अपने प्रांगण में लगे सरू के पेड़ से बहुत प्यार है। उसका आलिंगन कर ही वह बड़े हुए हैं। इसलिए उन्हें उस पेड़ की जड़ों में ही दफनाया जाए, ताकि उसकी जड़ें हमेशा अपने आलिंगन में रखें।

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