छत्तीसगढ़ में एक गगरी से अधिक पानी लेने पर लगता है जुमार्ना

May 23, 2019

छत्तीसगढ़ में एक गगरी से अधिक पानी लेने पर लगता है जुमार्ना

उद्योग विहार (जून 2019)-रायपुर। तेजी से गहराती पेयजल समस्या को लेकर दुनिया यूं ही चिंतित नहीं है। इसका असर दिखने लगा है। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में आलम यह है कि एक गगरी से अधिक पानी लेने पर जुर्माना लगाया जा रहा है। आज जो स्थिति प्रदेश के जगदलपुर की है, यदि नहीं चेते तो आने वाले दिनों में ऐसे हालात से समूचे देश को जूझना पड़ेगा। बस्तर जिले के दरभा ब्लाॅक में दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां ग्रामीणों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ रहा है। हालात ऐसे हैं कि एक गगरी से अधिक पानी लेने वालों पर जुर्माना लगता है। बस्तर जिले के दरभा ब्लाॅक अंतर्गत लेण्ड्रा गांव में पंचायत ने पानी का दुरूपयोग रोकने को उक्त फरमान जारी किया है| नोटिस चस्पा होने के बाद रूकी बर्बादी पंचायत ने एक नोटिस चस्पा किया गया है, जिसमें लिखा है कि एक गुण्डी (गगरी) लाओ और पानी ले जाओ। 10 गुण्डी लाओगे तो 50 रूपये प्रति गुण्डी के हिसाब से जुर्माना लगेगा। इस व्यवस्था के चलते यहां पानी की बर्बादी रूकी है। ग्राम पंचायत के सचिव और सरपंच का कहना है कि ऐसी व्यवस्था होने से गांव के हर एक परिवार को जरूरत के हिसाब से पानी मिल पा रहा है। इस व्यवस्था को कायम कर हम जल संकट के दौर से उबरने की कोशिश कर रहे हैं। पानी के लिए खोद डाला पहाड़ चत्रकोट के बदामपारा में 50 परिवार रहते हैं। यहां पानी के लिए ग्रामीणों ने पहाड़ खोद दिया है। ऐसी जगह पहाड़ को अथक मेहनत कर तोड़ा है, जहां पानी आता है। अब इस गड्ढे में जमा होने वाला पानी ग्रामीण पेयजल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। जगदलपुर क्षेत्र में आडावाल-तीरिया मार्ग पर स्थित कालागुडा के ग्रामीण गड्ढे का पानी उबाल कर पी रहे हैं।

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इस गांव में करीब 45 आदिवासी परिवार रहते हैं। गांव में बरसात के दिनों में गड्ढे में जमा पानी ग्रामीण पीने को मजबूर हैं। कुकानार क्षेत्र के दर्जनों गांवों में भी इसी तरह का हाल नजर आ रहा है। लगातार गिर रहा भूजल स्तर: बस्तर क्षेत्र मूलरूप से पठारी स्थलाकृति वाला क्षेत्र है। पठारों में वर्षा जल का बहाव तेजी से होता है। भूजल विशेषज्ञ प्रोदुर्गापद कुईती के मुताबिक बस्तर में दण्डकारण्य का पठार आर्कियन युगीय शैल समूहों से निर्मित है, जिसमें मध्य छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले धाड़वाल शैल समूह यानी चूना पत्थर वाली सरंचना के मुकाबले जल भरण क्षमता काफी कम होती है। यहां जमीन के अंदर पानी पहुंचाने वाले ज्वाइंट कम पाए जाते हैं, जिसकी वजह से जल भरण नहीं हो पाता और भूजल स्तर गिर रहा है। बस्तर में एक दशक पहले तक करीब 19 हजार हेक्टोमीटर भूजल उपलब्ध था, जो अब घटकर करीब 17 हजार हेक्टोमीटर रह गया है। यहां भूजल के दोहन की दर 13 फीसद है, जो एक दशक पहले सात फीसद थी। क्षेत्र में भूजल स्तर गर्मी के दिनों में काफी नीचे चला जाता है। विभाग पूरी तरह अलर्ट है और जिन हैंडपंप में जल स्तर नीचे चला गया है, उन्हें सुधारा जा रहा है। पंचायत पदाधिकारियों को कहा गया है कि जल संकट की स्थिति में तत्काल विभाग को सूचना दें, ताकि वैकल्पिक व्यवस्था की जा सके।

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