हाथ में चांद, पाँव तले जलवायु परिवर्तन
हाथ में चांद, पाँव तले जलवायु परिवर्तन
वाशिंगटन 50 साल पहले यानी 16 जुलाई 1969 को किसी धरती वासी ने पहली बार चांद पर कदम रखा था। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की इस सफलता के बाद कई देश चांद पर पहुंचने की होड़ में लग गए। कई के प्रयास असफल हुए, लेकिन रूस और चीन भी चांद पर अपना यान उतारने में सफल हुए। अब भारत भी चंद्रयान-2 के जरिये चांद पर उतरने की दिशा में आगे बढ़ गया है। इन सबसे साबित होता है कि इंसान यदि ठान ले और अपनी क्षमता का पूरा इस्तेमाल करे तो वह कोई भी मुश्किल लक्ष्य हासिल कर सकता है। लेकिन, अंतरिक्ष में जाने, दूसरे ग्रहों पर जीवन ढूंढने और नई तकनीक विकसित करने की होड़ में हम शायद अपनी धरती को ही भूल गए हैं। हमने चांद को तो अपनी मुट्ठी में कर लिया है, लेकिन पृथ्वी की समस्याएं कहीं दब गई हैं। जलवायु परिवर्तन जैसी कई समस्याओं के सिर उठाने के कारण आज धरती का अस्तित्व ही खतरे में है। लेकिन, न तो हम इसे असल समस्या मान रहे हैं न ही इसे निपटाने की कोशिश कर रहे हैं। 1961 में नासा ने चंद्रमा पर मानव भेजे जाने के मिशन की तैयारी शुरू कर दी थी। इसे लेकर तात्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने कहा था, ह्यहमने चांद को चुना है, क्योंकि वहां पहुंचना मुश्किल है। इस लक्ष्य को पाकर हम अपनी क्षमता और ऊर्जा का पता लगा सकेंगे।ह्ण केनेडी ने जब चंद्रमा पर पहुंचने के मिशन को अमेरिका ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण बताया तो उन्हें यह साबित करने की जरूरत नहीं थी कि ह्यचंद्रमा का अस्तित्व है या नहींह्ण। हालांकि जलवायु परिवर्तन के मामले में इसका उल्टा है। जलवायु परिवर्तन को लेकर नहीं है गंभीरता: वर्तमान में दिन प्रतिदिन पृथ्वी का तापमान और ग्रीन हाउस गैसों की मात्र बढ़ रही है। इससे बाढ़, सूखा, तूफान, आगजनी सुनामी जैसी आपदा विकराल रूप ले रही है। इसके बावजूद कई बार जलवायु परिवर्तन की समस्या फर्जी बता दी जाती है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भी यही मत है इसलिए उन्होंने अमेरिका को 2015 के पेरिस समझौते से अलग कर दिया है। इस समझौते के तहत 195 देशों ने पृथ्वी के तापमान में हो रही बढ़ोतरी को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने का संकल्प लिया था।
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