वादों के पिटारे में हकीकत खोजते कॉरपोरेट सेक्टर

Apr 08, 2019

वादों के पिटारे में हकीकत खोजते कॉरपोरेट सेक्टर

उद्योग विहार (अप्रैल-2019)बदला कंपिनयों का माहौलः उद्योगविहार स्थित एक कंपनी में माहौल में बदलाव दिख रहा है। जहां काॅरपोरेट कल्चर में काम के समय काम की नीति अपनाई जाती है वहां लोग अपनी-अपनी डेस्क से डायलाॅग डिलिवर करते नजर आए। अपने-अपने सिस्टम में नजरें गड़ाए तो कभी किसी बात पर पलटकर जवाब देते युवाओं के तेवर साफ बता रहे थे कि कंपनियों में चुनावी हलचल का असर पड़ा है और युवाओं की सोच में बदलाव आ रहा है। अप्रैल की शुरूआत जहां क्लोजिंग के बाद नई शुरूआत, कंपनी की नई नीतियों और हानि लाभ पर केंद्रित चर्चा का समय होता है वहां लोग मोदी, राहुल, प्रियंका की बातें करते नजर आ रहे थे। केवल कर्मचारी ही नहीं, अधिकारी भी अपने विचार रखते। कैंटीन में पाॅलिटिकल शोरगुल है तो कंपनियों के बाहर युवतियां फैशन और डाइटिंग की जगह आने वाली सरकार से विकास, बदलाव, सुरक्षा की उम्मीद में बेहतर नेतृत्व पर चर्चा कर रही हैं। पटी सरकार और काॅरपोरेट की बीच की खाई: जेस्चर रीचर्स टेक्नोलाॅजीज के निदेशक मुनीष धीमान कहते हैं कि मौजूदा सरकार आने के बाद काॅरपोरेट सेक्टर में काफी सकारात्मक बदलाव आए जिससे बिजनेस के लिए राहें आसान हुई हैं। अब सरकार और काॅरपोरेट सेक्टर के बीच की खाई पट गई है।

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सिस्टम के आॅनलाइन हो जाने से कई औपचारिकताएं बेहद आसान और पारदर्शी हो गई हैं, लेकिन अभी बहुत काम करना बाकी है। काॅरपोरेट सेक्टर ऐसा सेक्टर है जो कि भावनाओं में बहने से ज्यादा विश्वास हकीकत की जमीन पर टिके रहने में दिखाता है। यहां का युवा किसी व्यक्ति, समाज या समुदाय के प्रभाव में न आकर केवल बेहतर नेतृत्व का चुनाव करना चाहता है। युवा महसूस कर रहे हैं कि सरकार की आलोचना बहुत हुई है लेकिन इस सेक्टर से जुड़े युवाओं को लगता है कि कई योजनाओं के लाभ भी मिले हैं। जीएसटी के विरोध में लोगों ने बहुत कुछ बोला लेकिन सच यह है कि उससे काॅरपोरेट सेक्टर की राहें बहुत आसान हो गई। अब वन मिशन वन टैक्स के साथ राज्य टैक्स की परेशान हल हो गई है। इसी तरह की छोटी कंपनियों में नवोदित उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह सरकार इस क्षेत्र में काफी अग्रेसिव सोच रख रही है उनसे पिछले तीन वर्षों का टर्नओवर मांगा जाता था जबकि अब ऐसी बाध्यताएं नहीं हैं। स्टार्टअप के लिए ऋण दिए जाएंगे। इस घोषणा का स्वरूप ऐसा बनाया गया था कि लगा जैसे किसी को भी दस लाख रूपये का ऋण मिल जाएगा लेकिन जब लोगों ने इसका लाभ लेना चाहा तो उन्हें नहीं मिल सका। इसका कारण यह था कि इस योजना के तहत ऋण पाने की इतनी शर्ते व पेपर वर्क था

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कि इसका लाभ किसी को नहीं मिल सका। इसलिए आइटी हब बना गुरूग्राम: समय के साथ-साथ स्थान की कमी व व्यवसाय के नियमों के कारण दिल्ली से कंपनियां बाहर हो गई। विकल्प के तौर पर प्रगति के सूरज की चमक ओढ़ता गुरूग्राम एक ग्लोबल हब बन गया। चूंकि भारत विश्व के सर्वश्रेष्ठ तीन इकोनाॅमी में से एक है। ऐसे में निवेशक यहां पर आकर्षित हो रहे हैं। जमीन, कीमत, इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास की छमता को देखते हुए कंपनियां यहां आने लगीं। लिकर, शूज, अपैरल, आॅटोमोबाइल जैसी कंपनियों ने पिछले दस वर्षों में गुरूग्राम में अपनी कंपनियां खोलीं जो कि शहर की बड़ी उपलब्धि है। पहले यहां केवल मर्सेडीज की कपंनी थी लेकिन गुरूग्राम बीएमडब्ल्यू, आॅडी, वाॅल्वो, एमजी मोटर्स जैसी कंपनियां आईं।

पांच साल पहले जिन लोकलुभावन वादों के साथ सरकार का आगाज हुआ था, अंजाम वैसा नहीं रहा। योजनाओं पर काम तो हुआ, पर उनकी गति इतनी धीमी
रही कि कई योजनाओं को लागू करने में पांच वर्ष भी कम पड़ गए। कोई शक नहीं है कि योजनाओं की दिशा सटीक थी, लेकिन केवल फाइलों में कागजों की
मुंह देखती इन योजनाओं का लाभ जनता को नहीं मिल सका। अब चुनावी मौसम में एक तरफ अधूरे वादों को पूरा करने की सोच है तो दूसरी तरफ नये वादों
की लंबी सूची। ऐसे में कॉरपोरेट सेक्टर दुविधा में है कि मौजूदा सरकार के साथ जाए या किसी और बेहतर विकल्प के लिए जमीन तैयार करे।

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कारपोरेट सेक्टर का स्वरूप

पांच हजार से अधिक कॉरपोरेट कंपिनयां दस लाख से अधिक लोगों को सीधा और 1.5 लाख लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मुहैया करवा रही हैं दस सालों में आइटी हब बना गुरूग्राम देश का तकरीबन पैंतालीस प्रतिशत विदेशी निवेश गुरूग्राम में.

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टैक्सेशन के नियम कानून की प्रक्रिया का सरलीकरण निजीकरण को बढ़ावा इस सेक्टर को लेकर योजजनाएं प्रक्रियाएं व्यवस्थित होना चाहिए विदेशी निवेश के नियमों को आंकलन करना चाहिए इंवेस्टर फ्रेंडली नीतियां बनाई जानी चाहिए सरकार को जल्दबाजी में फैसला नहीं लेना चाहिए |

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