घरेलू हिंसा : तलाकशुदा पत्नी तलाक की डिक्री से पहले भरण-पोषण के आदेश को निष्पादित कराने की हकदार : कलकत्ता हाई कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Jul 01, 2019

घरेलू हिंसा : तलाकशुदा पत्नी तलाक की डिक्री से पहले भरण-पोषण के आदेश को निष्पादित कराने की हकदार : कलकत्ता हाई कोर्ट [निर्णय पढ़े]

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने यह माना है कि यदि तलाकशुदा पत्नी को घरेलू हिंसा अधिनियम [डीवी अधिनियम] के तहत भरण-पोषण और अन्य राहत का आदेश मिला है तो वो तलाक की डिक्री से पहले उसे निष्पादित करने की हकदार है अगर वह खुद के भरण-पोषण में असमर्थ है और उसने पुनर्विवाह नहीं किया है।

कृष्णेंदु दास ठाकुर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के मामले में न्यायमूर्ति मधुमती मित्रा ने इन 2 महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों पर विचार किया-

• क्या घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 में महिलाओं के संरक्षण के प्रावधान के तहत उनके पक्ष में पहले से ही दिए गए भरण-पोषण के आदेश को निष्पादित करने के लिए पत्नी को घरेलू संबंध में जारी रखने की आवश्यकता है?
• क्या तलाक की डिक्री द्वारा पत्नी की वैवाहिक स्थिति में बदलाव को अधिनियम की धारा 25 (2) में उल्लिखित परिस्थितियों में बदलाव माना जा सकता है?

मामले का मूल विवाद
इस मामले में विवाद यह था कि तलाक की डिक्री के बाद पत्नी घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 2 (ए) के प्रावधानों में एक पीड़ित व्यक्ति के रूप में परिकल्पित है। यहां दलील यह दी गई कि तलाक के डिक्री के बाद दूसरे पक्ष को एक पीड़ित व्यक्ति या 'पति' के साथ घरेलू संबंध में नहीं माना जा सकता।

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अदालत द्वारा सुनाया गया निर्णय
उक्त दलील को खारिज करते हुए अदालत ने यह कहा कि तलाक की डिक्री घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों के तहत पत्नी को उसके पक्ष में दी गई राहत से वंचित नहीं करती है। न्यायालय ने यह भी कहा कि डीवी अधिनियम की धारा 25 (2) 'परिस्थितियों में परिवर्तन' के बारे में बोलती है लेकिन अधिनियम में 'परिस्थितियों में परिवर्तन' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। इसके अलावा यह भी कहा गया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता और घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 से महिलाओं की सुरक्षा, दोनों में, शब्द 'परिस्थितियों में परिवर्तन' का उपयोग रखरखाव के आदेश के परिवर्तन के संबंध में किया जाता है।

पीठ ने कहा:
"आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (1) के स्पष्टीकरण के मद्देनजर हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पति द्वारा तलाक दी गई महिला भरण-पोषण के दावे के लिए पत्नी की स्थिति का आनंद लेना जारी रखती है और अपने पूर्व पति से भत्ते ले सकती है अगर वह खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है और यदि उसने दोबारा शादी नहीं की है।"

यह कहते हुए कि तलाक की डिक्री डीवी अधिनियम के प्रावधानों के तहत पत्नी को उसके पक्ष में दी गई राहत से वंचित नहीं करती है,

अदालत ने आगे कहा:
"इसके अलावा हमारा कानून एक तलाकशुदा पत्नी के पुनर्विवाह तक भरण-पोषण प्राप्त करने के अधिकार को मान्यता देता है। वर्ष 2005 का यह अधिनियम पीड़ित व्यक्ति को अतिरिक्त अधिकार और उपचार प्रदान करता है। यदि याचिकाकर्ता का तर्क स्वीकार किया जाता है तो पत्नी को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए मजिस्ट्रेट के पास जाने को मजबूर किया जाएगा।

अदालत ने आगे कहा, "अधिनियम में परिभाषित घरेलू संबंध का अस्तित्व एक कार्रवाई करने और वर्ष 2005 के अधिनियम के तहत राहत पाने के लिए आवश्यक है। घरेलू संबंध के आस्तित्व की वर्ष 2005 के अधिनियम की धारा 12 के तहत दिए गए आदेश को निष्पादित करने की आवश्यकता नहीं है और तलाक की डिक्री से पहले 2005 के अधिनियम के तहत भरण-पोषण और अन्य राहत का आदेश पाने वाली तलाकशुदा पत्नी, यदि वह खुद का भरण-पोषण करने व अगर उसने पुनर्विवाह नहीं किया और अन्य कारणों से वो असमर्थ है तो उसे निष्पादित करने की हकदार है।"

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