सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट ने सुनवाई से जस्टिस एमआर शाह को अलग करने की मांग की

Jan 03, 2023
Source: https://hindi.livelaw.in/

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने आवेदन दायर कर जस्टिस एमआर शाह को उनकी याचिका पर सुनवाई से अलग करने की मांग की। इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट में दोषसिद्धि के खिलाफ सुनवाई तब तक टालने की मांग की गई है, जब तक कि अतिरिक्त सबूत पेश करने की याचिका पर फैसला नहीं हो जाता। आवेदन में कहा गया कि वर्तमान याचिका की विषय वस्तु पर पहले जस्टिस शाह ने फैसला किया था, जब वह गुजरात हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे।
आवेदन में कहा गया, "... कुछ मुद्दे जो इस विशेष अनुमति याचिका की विषय वस्तु हैं, उसका निर्णय इस माननीय न्यायालय के न्यायाधीशों में से एक ने पहले अवसर पर किया गया, जब वह माननीय गुजरात हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहे थे। चूंकि वर्तमान विशेष अनुमति याचिका भी उसी एफआईआर से संबंधित है, याचिकाकर्ता को आशंका है कि यदि वर्तमान विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई उसी न्यायाधीश द्वारा की जा रही है तो न्याय का उद्देश्य पूरा नहीं होगा।"
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ से मामला जब सुनवाई के लिए आया तो शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकील ने मामले को स्थगित करने का अनुरोध किया, क्योंकि वह खराब स्वास्थ्य के कारण अपना जवाब दाखिल नहीं कर पाई। इस बिंदु पर भट की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामथ ने पूछा, "मेरे मित्र यहां भी क्यों हैं?" शिकायतकर्ता के वकील ने तर्क दिया, "वह मुझे कभी भी अपने एसएलपी में पक्षकार नहीं बनाते। मैं हाईकोर्ट के समक्ष पक्षकार था, वह मुझे पक्षकार बनाने के लिए बाध्य हैं।"
जस्टिस शाह के मामले से अलग होने की भट की अर्जी पर कामत ने कहा कि विचार न्यायाधीश के साथ 'पूर्वाग्रह' जोड़ने का नहीं है। उन्होंने कहा, "मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप पक्षपाती हैं या नहीं। मैं यह भी नहीं कह रहा हूं कि यह पक्षपात की आशंका है... कभी-कभी हमें कुछ अप्रिय कर्तव्य (क्लाइंट की ओर से) करने पड़ते हैं।" खंडपीठ ने पलटवार किया, "आशंका का उचित संबंध होना चाहिए। यदि आप चाहें तो हम कहने के लिए बहुत-सी बातें कह सकते हैं ... वैसे भी, राज्य के वकील को आने दें, हम विचार करेंगे।"
कामत ने उत्तर दिया, "मैं आशंका दिखा सकता हूं ... मुझे अपना मामला रखने दें, माई लॉर्ड आदेश पारित कर सकते हैं। मुझे कोई कठिनाई नहीं है।" जस्टिस शाह ने कहा कि हाईकोर्ट के समक्ष केवल मामला है, वह भी अलग विवाद के साथ। कामथ ने कहा कि यह उसी एफआईआर के तहत उत्पन्न हो रहा है। इसके बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 10 जनवरी के लिए स्थगित कर दी। जुलाई, 2019 में गुजरात के जामनगर में सत्र न्यायालय ने 1990 में प्रभुदास माधवजी वैष्णानी की हिरासत में मौत का दोषी पाते हुए भट्ट को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। ट्रायल कोर्ट के समक्ष उन्होंने अपने समर्थन के लिए डॉक्टर के विशेषज्ञ साक्ष्य पेश करने के लिए आवेदन किया। तर्क दिया कि प्रभुदास की मौत कथित उठक-बैठक के कारण नहीं हुई थी, जो कथित तौर पर पुलिस ने जबरदस्ती करवाया था। ट्रायल कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी। अप्रैल 2011 में, भट्ट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर 2002 के दंगों में मिलीभगत का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया। उन्होंने सांप्रदायिक दंगों के दिन 27 फरवरी, 2002 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी द्वारा बुलाई गई बैठक में भाग लेने का दावा किया, जब कथित तौर पर राज्य पुलिस को हिंसा के अपराधियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने के निर्देश दिए गए। कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी ने हालांकि मोदी को क्लीन चिट दे दी। 2015 में भट्ट को "अनधिकृत अनुपस्थिति" के आधार पर पुलिस सेवा से हटा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में गुजरात सरकार द्वारा उनके खिलाफ दायर मामलों के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने की भट्ट की याचिका खारिज कर दी थी। याचिका एडवोकेट अल्जो के जोसेफ ने दायर की।

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