सरकारों में आरक्षण की चुनौतियों से निपटने की इच्छा शक्ति नहीं

Apr 24, 2020

सरकारों में आरक्षण की चुनौतियों से निपटने की इच्छा शक्ति नहीं

निर्वाचित सरकारों में आरक्षण के मौजूदा स्वरूप से उपजी चुनौतियों से निपटने की इच्छाशक्ति होना बहुत मुश्किल है। यही कारण है कि अब तक न ही आरक्षण का लाभ उठा रहे वर्गो की सूची की समीक्षा हो पाई और न ही आरक्षण का प्रावधान खत्म हो पाया। अविभाजित आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा जनवरी, 2000 में किए गए फैसले को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि आरक्षण के लिए पात्रता सूची की समीक्षा होनी चाहिए, ताकि नीचे तक इसका लाभ पहुंच सके।

जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ आंध्र प्रदेश सरकार के उस फैसले पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य सरकार ने आदिवासी इलाकों के स्कूलों में शिक्षकों के 100 फीसद पद अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित करने का प्रावधान किया था। पीठ ने इस कदम को संविधान के विरुद्ध मामते हुए निरस्त कर दिया। इस पीठ में जस्टिस अरुण मिश्र के अलावा जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस भी शामिल थे। अपने फैसले में अदालत ने कई तल्ख टिप्पणियां कीं।

अदालत ने कहा, अन्य पिछड़े वगोर्ं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों के साथ हुए भेदभाव के कारण सत्ता में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था। उस समय सोचा गया था कि 10 साल के भीतर सामाजिक विसंगतियों, आर्थिक असमानता और पिछड़ेपन को समाप्त कर दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समय-समय पर संशोधन तो किए गए लेकिन लाभ ले रहे वर्गो की सूचियों की न तो समीक्षा की गई और न ही आरक्षण के प्रावधान खत्म हुए। पीठ ने कहा, अब तो आरक्षण बढ़ाने व आरक्षण के भीतर भी आरक्षण की मांग हो रही है। किसी भी निर्वाचित सरकार के पास इन चुनौतियों से निपटने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति होना मुश्किल है।

मुख्यधारा से जुड़ें आदिवासी : अपने फैसले में पीठ ने कहा कि अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने और अनुसूचित क्षेत्र गठित करने का प्रावधान इसलिए किया गया था, क्योंकि उनके जीने की शैली अलग थी। औपचारिक शिक्षा उन तक नहीं पहुंच पाई। ऐसे में राष्ट्र के विकास में उनका योगदान बढ़ाने के लिए सहयोग की जरूरत थी।

जरूरतमंद तक पहुंचे लाभ: कोर्ट ने मंडल आयोग के फैसले के नाम से चर्चित 1992 के इंदिरा साहनी फैसले का उल्लेख करते हुए कहा, ऐसा नहीं कि सरकार द्वारा आरक्षण का लाभ पाने वाले वर्गो की सूची इतनी पवित्र है कि उसे बदला नहीं जा सकता है। पीठ ने कहा, आरक्षित वर्ग में एक तबका आरक्षण की सुविधा लेकर आर्थिक व सामाजिक रूप से संपन्न व समर्थ हो चुका है। लेकिन वह इसका लाभ नीचे अन्य जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचने दे रहा है।ह्ण पीठ ने माना कि सरकार को आरक्षण के प्रतिशत को छेड़े बिना लाभार्थियों की सूची की समीक्षा करनी चाहिए।

 आरक्षण का प्रावधान करते समय विचार था कि 10 साल में विसंगतियां मिट जाएंगी अब तक बस संशोधन होते रहे, लेकिन इस दिशा में कोई सार्थक पहल नहीं हुई लाभ के लिए पात्रता सूची की न समीक्षा हुई और न ही आरक्षण खत्म हुआ लगातार लाभ उठा रहे बहुत से लोग अपने ही वर्ग में नीचे तक लाभ नहीं पहुंचने दे रहे शीर्ष अदालत की दो टूक अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण के प्रावधान का उद्देश्य था कि उनकी जीवन पद्धति में हस्तक्षेप किए बिना उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जाए और राष्ट्र के विकास में उनका योगदान हो। आरक्षण इसलिए नहीं दिया गया था कि उन्हें मानव चिड़ियाघर की तरह देखा जाए और प्राचीन संस्कृति व नृत्य का आनंद लेने का जरिया बनाकर छोड़ दिया जाए।

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