हाईकोर्ट को मामलों की ऑटोमैटिक लिस्टिंग के लिए तकनीक का उपयोग करना चाहिए; मैनुअल हस्तक्षेप से बचें: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अभय ओक
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सुप्रीम कोर्ट के जज, जस्टिस अभय ओक ने सोमवार को सभी हाईकोर्ट को मैन्युअल हस्तक्षेप से बचने और नए मामलों की ऑटोमैटिक लिस्टिंग के लिए तकनीक का उपयोग शुरू करने की सिफारिश की। जस्टिस अभय ओक ने कहा, "तकनीक का उपयोग सभी प्रकार के मानवीय हस्तक्षेप को रोकने के लिए किया जा सकता है। अगर हम अपनी संवैधानिक अदालतों में पारदर्शिता लाना चाहते हैं तो हमें अपनी तकनीक का उपयोग करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नए दायर मामलों की पहली तारीख ऑटोमैटिक हो। मामले की लिस्टिंग को स्थगित करने के लिए रजिस्ट्री के सदस्य के पास कोई विकल्प नहीं होना चाहिए। मामले को कॉज लिस्ट में प्रकट होना चाहिए, चाहे कॉज़ लिस्ट में 100 मामले हों, 150 मामले हों।"
जस्टिस ओक बॉम्बे हाईकोर्ट में 'द रोल ऑफ टेक्नोलॉजी इन कोर्ट्स: एक्सेसिबल जस्टिस, टाइमली जस्टिस' विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। इस कार्यक्रम में बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस आरडी धानुका भी शामिल हुए। यह बॉम्बे बार एसोसिएशन, एडवोकेट्स एसोसिएशन ऑफ़ वेस्टर्न इंडिया और बॉम्बे इनकॉर्पोरेटेड लॉ सोसाइटी के सहयोग से महिला वकीलो के इंटरएक्टिव सेशन द्वारा आयोजित किया गया। जस्टिस ओक ने कहा कि मामलों की लिस्टिंग में रजिस्ट्री के सदस्यों द्वारा मैन्युअल हस्तक्षेप बड़ा मुद्दा है, और रजिस्ट्री के किसी भी सदस्य के पास मामलों की लिस्टिंग को स्थगित करने का कोई विकल्प नहीं होना चाहिए।
जस्टिस ओक ने अपने व्याख्यान में तकनीक के समावेशी होने के महत्व पर भी जोर दिया। 2018 में चंद्रपुर जिले में एक जगह की यात्रा को याद करते हुए उन्होंने कहा कि इंटरनेट कनेक्टिविटी बिल्कुल नहीं थी। ऐसे में वकीलों का एक वर्ग सभी सुविधाओं से वंचित है। जस्टिस ओक ने ई-कोर्ट प्रोजेक्ट के बारे में बोलते हुए कहा कि किसी भी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए महाराष्ट्र सरकार से फंड मिलना बहुत मुश्किल है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक हाईकोर्ट ने प्रोजेक्ट को अलग तरीके से लागू किया है, क्योंकि कुछ राज्य सरकारें धन नहीं देती हैं जबकि कुछ बहुत उदार हैं।
जस्टिस ओक ने कहा, "प्रोजेक्ट को महाराष्ट्र राज्य में अलग तरीके से लागू किया गया है ... आमतौर पर किसी भी बुनियादी ढांचा परियोजना के लिए सरकार से धन प्राप्त करना बहुत मुश्किल होता है। मैं यह इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि ए़डवोकेट जनरल (बीरेंद्र सराफ) यहां मौजूद हैं। मेरे निर्णयों के रूप में मैंने ऐसा कहा है। मुझे आशा है कि आप ध्यान देंगे।" जस्टिस ओक ने COVID-19 महामारी के दौरान तकनीक को अपनाने में कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में अपने अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन अदालतों के लिए तकनीक का अधिक से अधिक उपयोग करने के लिए ट्रिगर का काम किया है।
उन्होंने कहा कि जब जूम के जरिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग शुरू की गई तो भुगतान अमेरिकी डॉलर में करना पड़ा और राज्य सरकार के नियम इसकी इजाजत नहीं देते। कई जजों ने भुगतान करने के लिए अपने स्वयं के क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल किया और 4 महीने तक प्रतिपूर्ति के लिए इंतजार करना पड़ा। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तकनीक का छोटा-सा उपयोग है, जस्टिस ओक ने कहा कि तकनीक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य प्रणाली को अधिक कुशल और सुलभ बनाना है, साथ ही न्यायपालिका के बारे में खुला डेटा उपलब्ध कराना है। उन्होंने कहा कि तकनीक का उपयोग अदालतों के कामकाज का अनुकूलन करता है और पारदर्शिता लाता है। जस्टिस ओक ने न्याय प्रणाली में मानवीय तत्व के महत्व पर बल देते हुए निष्कर्ष निकाला। उन्होंने कहा कि न्याय की गुणवत्ता में सुधार के लिए केवल आधुनिक डिवाइस और तकनीक का उपयोग करना पर्याप्त नहीं है। जस्टिस ओक ने कहा, "आपको यह याद रखना होगा कि तकनीक के पास ये सभी फायदे हैं, लेकिन अंततः जो कानूनी बिरादरी के सदस्य हैं, उन्हें हमारी अदालतों में प्रदान किए जाने वाले न्याय की गुणवत्ता में सुधार के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।"