गलत अर्थ के साथ वायरल हो रहीं मानस की चौपाइयां

Apr 24, 2020

गलत अर्थ के साथ वायरल हो रहीं मानस की चौपाइयां

संकट काल के इन दिनों में रामचरित मानस की चौपाइयां कोरोना के संदर्भ में गलत अथोर्ं के साथ सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। रामचरित मानस के मर्मज्ञ इन दोहे और चौपाइयों के वास्तविक अर्थ कुछ अलग बता रहे हैं। वाट्सएप से लेकर सोशल मीडिया के तमाम मंचों पर इसे शेयर किया जा रहा है, जिसे लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति बन रही है।

चौपाइयों का वास्तविक भावार्थ: रामचरित मानस के मर्मज्ञ संत मैथिली शरण बताते हैं कि यहां जिन चौपाइयों का उल्लेख किया जा रहा है वह उत्तरकांड के मानस रोग का प्रसंग है। रामचरित मानस के इस मानस-रोग प्रसंग का कोरोना-संक्रमण से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है। उनके अनुसार काकभुशुंडि जी गरुड़ जी को रामायण की जब पूरी कथा सुनाते हैं तो गरुड़ जी उनसे जिज्ञासा प्रकट करते हैं कि महराज उन सात प्रश्नों के बारे में कुछ बताइए जिनसे सारा संसार अकारण दुखी है। गरुड़ जी ने उत्तर कांड के दोहा क्रम 120/ख से सातों सवाल पूछना शुरू करते हैं जिनका काकभुशुंडि महराज निराकरण करते हैं। रोग से जुड़े प्रश्न के जवाब में काकभुशुंडि महराज बताते हैं कि इनसे लोग दुख पाते हैं। मोह सारे रोगों की जड़ है। मोह के वशीभूत होने से इंसान को बहुत कष्ट होते हैं। काम (उग्र होकर) वात के समान, लोभ बढ़कर कफ के समान और क्रोध पित्त के समान छाती को जलाता है। अर्थ यह है कि मोह कष्ट का मूल है और इससे उपजे काम, लोभ और क्रोध शरीर को वात, पित्त और कफ की तरह कष्ट देते हैं। अंतिम दोहे का सार यह है कि जब एक ही रोग के कारण या चलते इंसान मर जाता है तो फिर यह कई व्याधियों या रोगों का समूह, असाध्य रोगों का ढेर है। इनसे प्राणी सदैव कष्ट में ही रहता है। ऐसी दशा में वह समाधि अवस्था अर्थात चित्त को शांति, माया से विमुख होने की अवस्था में भी विश्रंति कैसे प्राप्त कर सकता है?

क्या हो रहा वायरल?

सोशल मीडिया पर रामचरित मानस की दोहे और चौपाइयां साझा की जा रही हैं और इनके वास्तविक अर्थ से इतर व्याख्या की जा रही है।

चौपाइयां इस प्रकार हैं:

सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं,

सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा।

मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला,

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥

रामायण (जबकि लिखा जाना चाहिए था, रामचरित मानस) के दोहा नंबर 120 में लिखा है कि जब पृथ्वी पर निंदा बढ़ जाएगी, पाप बढ़ जाएंगे तब चमगादड़ अवतरित होंगे और चारों तरफ उनसे संबंधित बीमारी फैल जाएगी और लोग मरेंगे। दोहा नंबर 121 में लिखा है कि एक बीमारी जिसमें नर मरेंगे उसकी सिर्फ एक दवा है प्रभु भजन दान और समाधि में रहना यानी लाकडाउन।

रामचरित मानस के 120 व 121 नंबर दोहे की हो रही गलत व्याख्या, रामचरित मानस की जगह रामायण लिखकर की जा रहीं वायरल सब कै निंदा जे जड़ करहीं, ते चमगादड़ होई अवतरहीं..जो जड़ या मूर्ख, सभी की निंदा करेंगे या निंदा करने में किसी को नहीं छोड़ेंगे यानी निंदा करना जिनका स्थायी स्वभाव होगा, वो अगले जन्म में चमगादड़ होकर अवतरित होंगे यानी उनकी अगली योनि चमगादड़ की होगी। वायरल हो रही सामग्री में इन चौपाइयों का गलत भाव दर्शाया गया है जिनका कोरोना जैसे संक्रामक रोग से कोई लेना-देना नहीं है |

यह भी पढ़े-

निजी लैब प्रथम चरण की जांच का अधिकतम 2500 ले सकेंगी शुल्क http://uvindianews.com/news/private-labs-will-be-able-to-charge-a-maximum-of-2500-for-the-first-phase-of-testing

आपकी राय !

Gujaraat में अबकी बार किसकी सरकार?

मौसम