शादीशुदा महिला को सहानुभूति के तहत बदले में नौकरी न देना है लिंगभेद-उत्तराखंड हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

Apr 08, 2019

शादीशुदा महिला को सहानुभूति के तहत बदले में नौकरी न देना है लिंगभेद-उत्तराखंड हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

कोर्ट ने कहा-शादी होने के बाद भी बेटा,बेटा ही रहता है तो बेटी क्यों नहीं

''जैसे किसी मृतक सरकारी कर्मचारी का बेटा शादी से पहले या शादी होने के बाद भी उसका बेटा ही बना रहता है,तो बेटी क्यों नही। सिर्फ शादी होने के आधार पर किसी मृतक सरकारी कर्मचारी की बेटी से उसके बेटी होने का अधिकार नहीं लिया जा सकता।'' लिंग के अधिकारों के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट की फुलबेंच ने कहा कि किसी शादीशुदा बेटी को परिवार की परिभाषा में शामिल न करना और उसको सहानुभूति के बदले मिलने वाली नौकरी के लिए मौका न देना,जबकि वह सरकारी कर्मचारी की मौत के समय उस पर निर्भर थी,यह एक लिंगभेद है और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगानाथन,जस्टिस लोकपाल सिंह व जस्टिस आर.सी खुलबे की खंडपीठ ने कहा कि शादीशुदा बेटा व शादीशुदा बेटी,सरकारी कर्मचारी की मौत के समय पर उस पर निर्भर थे। इसलिए सरकारी कर्मचारी की मौत के बदले सहानुभूति के तौर पर दी जाने वाली नौकरी के लिए वह दोनों बराबर के हकदार है। फुलबेंच के समक्ष एक सवाल उत्तर प्रदेश रिक्रूटमेंट आॅफ डिपेंडेंट आॅफ गवर्मेंट सर्वेंट डाईंग इन हारनेस रूल 1974 के रूल 2(सी) की 'फैमिली' की परिभाषा में शादीशुदा बेटी को शामिल न करने व रेगुलेशन 104 आॅफ यूपी कॉपरेटिव कमेटी इंम्प्लायी सर्विस रेगुलेशन 1975 के तहत बने नोट पर उठाया गया था। प्रावधान के पक्ष व विपक्ष में दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के खंडपीठ ने कहा कि अगर किसी मृतक सरकारी कर्मचारी पर निर्भर रहने वाले को नौकरी देने के क्राइटेरिया की बात है तो इन दलीलों को स्वीकार किया जाना मुश्किल है,जिनमें कहा गया है कि निर्भर शादीशुदा बेटे का नियम है और निर्भर शादीशुदा बेटी अपवाद है।

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अनदेखी है आज की सामाजिक असलियत

रूल 1974 व रेगुलेशन 1975 के तहत 'फैमिली' की परिभाषा में शादीशुदा लड़की को इस आधार पर शामिल नहीं किया गया था क्योंकि यह माना जाता था कि शादी के बाद लड़की अपने पति व ससुरालवालों पर निर्भर हो जाती है। परंतु इस तरह की धारणा को सामाजिक वातावरण में आधे दशक पहले तक ठीक थे,परंतु यही आधार आज के समाज की सच्चाई को नकार रहे है। क्योंकि आज ऐसी महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है,जिनको उनके पति ने छोड़ दिया है या उनका तलाक हो गया है और उनको गुजारा भत्ता भी नहीं दिया जा रहा है। कोर्ट ने उन महिलाओं के आकड़ों का भी जिक्र किया,जिनको उनके पतियों द्वारा छोड़ दिया गया है। इन आकड़ों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि- सहानुभूति के तौर पर बदले में दी जाने वाली नौकरी के मामले में लड़की की शादी को लेकर बनाई गई पॉलिसी घातक साबित हो रही है। क्योंकि आजकल पति द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों के कारण पत्नियों के सामने ऐसी स्थिति पैदा हो रही है कि उनको अपना ससुराल छोड़ना पड़ रहा है और अपने पिता के घर वापिस आना पड़ जाता है। भारत में आजकल इस तरह की परिस्थिति असामान्य नहीं है। इस तरह अपने पिता के घर वापिस आई महिलाओं को उनके माता-पिता वित्तिय व अन्य सभी तरह से सहयोग करते है।

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इसलिए इस आधार पर राज्य सरकार द्वारा नियम व कायदे बनाना,आज की सामाजिक वास्तविकता में दोषपूर्ण साबित हो रहे हैं। खंडपीठ ने यह भी कहा कि अनुकंपा यानि सहानुभूति के तौर पर दी जाने वाली नौकरी के मामले में 'परिवार' की परिभाषा में निर्भर शादीशुदा लड़की को शामिल न करना और निर्भर शादीशुदा लड़के को शामिल करना,लिंगभेद है। जिस तरह एक मृतक सरकारी कर्मचारी का बेटा शादी होने से पहले या शादी होने के बाद भी बेटा ही रहता है तो बेटी भी उसी की तरह है। बस बेटी की शादी हो गई है,इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि वह अपने मृतक पिता की अब बेटी नहीं रही है। खंडपीठ ने कहा कि जैसे बेटा(विवाहित हो या अविवाहित) या बेटी (विधवा हो या अविवाहित) स्वयं पर निर्भर हो सकते है और वह सहानुभूति के तौर पर बदले में दी जाने वाली नौकरी पाने कके हकदार नहीं होते है क्योंकि वह मृतक सरकारी कर्मी पिता पर निर्भर नहीं थे। इसी तरह शादीशुदा बेटी,जो अपने पिता पर निर्भर नहीं थी,ऐसी नौकरी पाने की हकदार नहीं है। खंडपीठ ने कहा कि सहानुभूति के तौर पर दी जाने वाली नौकरी कौन पाने के योग्य है और कौन नहीं,इसका आधार उसकी मृतक सरकारी कर्मी पिता पर निर्भरता है।

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इसलिए एक शादीशुदा बेटी को पिता की जगह सरकारी नौकरी पाने के लिए सिर्फ इस आधार पर परिवार का सदस्य न मानना कि उसकी शादी हो गई है,जबकि वह शादी होने के बाद भी अपने पिता पर निर्भर थी,गलत है। कोर्ट ने 'रीडिंग डाउन'रूल को अप्लाई करते हुए कहा कि एक शादीशुदा बेटी भी मृतक सरकारी कर्मचारी के परिवार का हिस्सा है। ताकि वह भी अपने पिता की मौत के बाद सहानुभूति के तौर पर मिलने वाली नौकरी पाने की हकदार बन सके। कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि मृतक सरकारी कर्मचारी के 'परिवार'जिसमें अब एक शादीशुदा बेटी को भी शामिल कर दिया गया है,ऐसे में इस बेटी को भी सहानुभूति के तौर पर दी जाने वाली नौकरी के मामले में मौका दिया जाए,बशर्ते वह मृतक पिता की मौत के समय उस पर निर्भर थी। साथ ही वह रूल 1974 व रेगुलेशन 1975 की अन्य शर्तो को पूरा करती हो

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