अल्पसंख्यक संस्थानों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ नहीं है नीट

Apr 30, 2020

अल्पसंख्यक संस्थानों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ नहीं है नीट

सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल में प्रवेश की परीक्षा नीट (नेशनल इलेजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) के प्रावधानों को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसले में कहा है कि मेडिकल के ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए समान परीक्षा का प्रावधान करने वाली नीट से सहायता प्राप्त और गैरसहायता प्राप्त निजी अल्पसंख्यक संस्थानों के किसी भी मौलिक अधिकार का हनन नहीं होता। नियमों को राष्ट्रहित, जनहित और शिक्षा का स्तर कायम रखने वाला बताते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इसकी मंशा चयन में निष्पक्षता और मेरिट सुनिश्चित करना है। यह छात्रों के हित में है।

यह अहम फैसला जस्टिस अरुण मिश्र, विनीत सरन और एमआर शाह की पीठ ने मेडिकल की समान प्रवेश परीक्षा नीट के प्रावधानों को चुनौती देने वाली विभिन्न निजी और अल्पसंख्यक कॉलेजों की याचिकाएं निपटाते हुए सुनाया है।

कोर्ट ने फैसले में कहा कि शिक्षण संस्थानों का मूलत उद्देश्य चैरिटेबल होता है, लेकिन शिक्षा आज कमोडिटी (वस्तु) बन गई है। मेडिकल प्रवेश प्रक्रिया में निष्पक्षता समाप्त करने और मेरिट को हताश करने का कोई मतलब नहीं है। सरकार को सहायता प्राप्त और गैरसहायता प्राप्त निजी अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए नियम तय करने का अधिकार है।

फैसले में नीट के प्रावधानों को राष्ट्र और जनहित में बताते हुए कहा गया है कि मान्यता प्राप्त संस्थानों में शिक्षा का स्तर बनाए रखने के लिए कानूनन नियम बनाए जा सकते हैं। कोर्ट ने सुपर स्पेशलिटी कोर्स में किसी भी तरह के आरक्षण की मनाही करने वाले प्रीति श्रीवास्तव केस के पूर्व फैसले और अनियमितताओं के बारे में मॉर्डन डेंटल कालेज के फैसले का उदाहरण देते हुए कहा कि उसमें कहा जा चुका है कि शिक्षा आर्थिक शोषण का जरिया बन गई है। शिक्षा कोई वस्तु नहीं है जिसे पैसे और ताकत से प्राप्त कर लिया जाए। मेरिट में स्थान पाने वाले को हक से वंचित नहीं किया जा सकता। सरकार (राज्य) ऐसे में मूकदर्शक नहीं बनी रह सकती। उसे शोषण रोकने के लिए हर हाल में दखल देना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल और डेंटल शिक्षा के बारे में एमसीआइ और डीसीआइ द्वारा किए गए प्रावधानों को असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता।

गैरसहायता प्राप्त निजी अल्पसंख्यक संस्थानों ने नीट से मेडिकल में प्रवेश देने को चुनौती दी थी। उनका कहना था कि इससे संविधान में भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों के शिक्षण संस्थान चलाने और प्रबंधन के अधिकार का उल्लंघन होता है। कोर्ट ने दलीलें खारिज करते हुए कहा कि संस्थानों के प्रबंधन का अनुच्छेद 30 में मिला अधिकार कानून और संविधान के अन्य प्रावधानों से ऊपर नहीं है। इस पर तर्कसंगत मानक तय किए जा सकते हैं।

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