वादों से नहीं इरादों से साफ होगी यमुना, राजधानी को मिले जहरीले पानी से मुक्ति

May 13, 2022
Source: https://www.jagran.com

दिल्ली विधानसभा में हालिया प्रस्तुत बजट ने एक बार फिर यह उम्मीद जगाई है कि दिल्ली में यमुना के जल को आगामी दो वर्षों में पूरी तरह से स्वच्छ कर दिया जाएगा। इससे भौगोलिक क्षेत्र में 48 किमी की लंबाई में बहने वाली इस नदी के कायाकल्प होने की संभावना।

पंकज चतुर्वेदी। वर्ष 2021-22 का बजट प्रस्तुत करते हुए दिल्ली सरकार ने यह दावा किया है कि अगले दो वर्षों में यमुना नदी पूरी तरह से साफ हो जाएगी। इस संबंध में 2,074 करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। इसके साथ ही साहिबी नदी को पुनर्जीवित करने और नजफगढ़ वेट लैंड को स्वच्छ जल का भंडार बनाने के वादे भी शामिल हैं। हालांकि वास्तविकता यह है कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) वर्ष 2017 से हरियाणा और दिल्ली सरकार को ताकीद कर रहा है कि नजफगढ़ झील को अतिक्रमण और प्रदूषण से मुक्त किया जाए। दिल्ली सरकार ने तो इसकी योजना भी प्रस्तुत की, लेकिन हरियाणा सरकार अभी तक इस संबंध में कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है।

पूर्व में किए गए तमाम दावों में और वादों के बीच वर्ष 2012 में एक बार फिर यमुना को अपने जीवन के लिए सरकार से उम्मीद बंधी थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देश पर यमुना नदी विकास प्राधिकरण (वाइआरडीए) का गठन किया गया था। दिल्ली के उपराज्यपाल की अध्यक्षता में दिल्ली जल बोर्ड, प्रदूषण बोर्ड सहित कई सरकारी व गैर-सरकारी संगठनों को साथ लेकर एक तकनीकी सलाहकार समूह का गठन हुआ था। उस समय सरकार की मंशा थी कि एक कानून बनाकर यमुना में प्रदूषण को अपराध घोषित कर राज्यों व स्थानीय निकायों को इसका जिम्मेदार बना दिया जाए, लेकिन वह सबकुछ कागजों से आगे बढ़ा ही नहीं।

यदि बारीकी से देखें तो यमुना का शुद्धीकरण, साहिबी नदी का पुनर्जीवन और नजफगढ़ झील का पुनरोद्धार एक दूसरे से जुड़े हैं। इस पूरे कार्य में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हरियाणा से जब यमुना नदी दिल्ली में प्रवेश करती है तो वहां से ढेर सारा कूड़ा-कचरा लेकर आती है। दिल्ली महानगर के लिए यह आम बात है। हर साल कम से कम पांच बार अचानक घोषणा होती है कि एक दो दिन घरों में पानी की आपूर्ति बाधित रहेगी, क्योंकि यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ गई है। लगभग हर साल गर्मी आरंभ होते ही हरियाणा और दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट में खड़े मिलते हैं, ताकि यमुना से अधिक पानी पा सकें।

हरियाणा से दिल्ली में प्रवेश कर रही यमुना का पानी इतना जहरीला हो जाता है कि वजीराबाद और चंद्रावल के जल परिशोधन संयंत्र की ताकत उन्हें साफ कर पीने लायक बनाने के काबिल नहीं रह जाती। हरियाणा के पानीपत के पास ड्रेन नंबर-2 के माध्यम से यमुना में औद्योगिक कचरा गिराया जाता है। इस वजह से यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाती है। पानी में अमोनिया की मात्रा इतनी अधिक होने पर जल शोधन संयंत्रों में उसे शोधित करने की क्षमता नहीं है, इसलिए जल बोर्ड यमुना से पानी लेना बंद कर देता है और इस तरह जहरीली यमुना का जल घरों तक पहुंचने लायक नहीं रह जाता है। किसी को याद भी नहीं होगा कि फरवरी 2014 के अंतिम सप्ताह में शरद यादव की अगुवाई वाली एक संबंधित संसदीय समिति ने भी कहा था कि यमुना सफाई के नाम पर व्यय किए गए लगभग साढ़े छह हजार करोड़ रुपये बेकार ही गए हैं, क्योंकि यह नदी पहले से भी ज्यादा गंदी हो चुकी है। समिति ने इस तथ्य से भी चिंता जताई थी कि दिल्ली के तीन नालों पर इंटरसेप्टर सीवर लगाने का काम अधूरा है। गंदा पानी नदी में सीधे गिरकर उसे जहर बना रहा है। विडंबना तो यह है कि इस तरह की संसदीय और अदालती चेतावनियां और रपटें न तो सरकार को और न ही समाज को जागरूक कर पा रही हैं।

कामनवेल्थ गेम्स से पहले भी बनी कार्ययोजना : उल्लेखनीय है कि अक्तूबर 2010 में दिल्ली में कामनवेल्थ खेलों का आयोजन किया गया था। उससे काफी पहले ही यह कार्ययोजना बनाई गई थी कि इस आयोजन तक लंदन की टेम्स नदी की तरह ही देश की राजधानी दिल्ली में वजीराबाद से लेकर ओखला तक शानदार लैंडस्केप, बगीचे होंगे, नीला जल कल-कल कर बहता होगा, पक्षियों और मछलियों की रिहाइश होगी। लेकिन तमाम वादों और दावों के बावजूद ऐसा हो नहीं पाया। कामनवेल्थ खेल तो बदबू मारती, कचरे व सीवर के पानी से लबरेज यमुना के तट पर ही संपन्न हो गए। याद करें 10 अप्रैल, 2001 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 31 मार्च, 2003 तक यमुना को दिल्ली में न्यूनतम जल गुणवत्ता प्राप्त कर ली जानी चाहिए, ताकि यमुना को 'मैली' न कहा जा सके, पर उस समय-सीमा के 19 वर्षों के बाद भी दिल्ली क्षेत्र में बहने वाली नदी में आक्सीजन का नामोनिशान ही नहीं रह गया है, यानी पूरा पानी जहरीला हो चुका है और यमुना मर चुकी है।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने जो समय-सीमा तय की थी, उसके सामने सरकारी दावे थक-हार गए। लेकिन अब भी नदी में आक्सीजन नहीं है। नदी को साफ करने के लिए बुनियादी ढांचे पर भी दिल्ली सरकार ने अपार धनराशि खर्च कर डाली। 'यमुना एक्शन प्लान' के माध्यम से भी योजना बनाई गई, पैसा लगाया गया, परंतु अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं हो सके। वर्ष 2006 तक संबंधित मद में कुल 1491 करोड़ रुपये का खर्च किया गया है, जबकि नदी में प्रदूषण का स्तर और ज्यादा बढ़ गया। इतना धन खर्च होने के बावजूद केवल मानसून में ही यमुना में आक्सीजन का बुनियादी स्तर देखा जा सकता है।

अधिकांश राशि सीवेज और औद्योगिक कचरे को पानी से साफ करने पर ही लगाई गई। दिल्ली जल बोर्ड का 2004-05 का बजट प्रस्ताव देखें तो इसमें 1998-2004 के दौरान 1220 करोड़ रुपये पूंजी का निवेश सीवेज संबंधी कार्यों के लिए किया था। इसके अतिरिक्त दिल्ली में जो उच्चस्तरीय तकनीकी यंत्रों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उनकी लागत के अनुपात में उनसे प्राप्ति को समझा जाए तो कहा जा सकता है कि सीवेज साफ करने के लिए व्यय की गई राशि पानी के बचाव और संरक्षण पर व्यय की गई राशि से लगभग 0.62 गुना ज्यादा है।

अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3297 एमएलडी यानी मिनिमम लिक्विड डिस्चार्ज गंदा पानी और 132 टन बीओडी यानी बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड यमुना में घुलता है। दिल्ली की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर कही जाने वाली यमुना का राजधानी में प्रवेश उत्तर में बसे पल्ला गांव से होता है। पल्ला में नदी का प्रदूषण का स्तर 'ए' होता है, लेकिन यही उच्च गुणवत्ता का पानी जब दिल्ली के दूसरे छोर बदरपुर-जैतपुर पहुंचता है तो 'ई' श्रेणी का हो जाता है। सनद रहे कि इस स्तर का पानी मवेशियों के लिए भी अनुपयुक्त कहलाता है।

हिमालय के यमुनोत्री ग्लेशियर से निर्मल जल के साथ आने वाली यमुना नदी की असली दुर्गति दिल्ली में वजीराबाद बांध को पार करते ही होने लगती है। इसका पहला सामना होता है नजफगढ़ नाले से, जो 38 शहरी और चार देहाती नालों की गंदगी अपने में समेटे वजीराबाद पुल के पास यमुना में मिलता है। इसके अलावा दिल्ली महानगर की डेढ़ करोड़ से अधिक जनसंख्या का मल-मूत्र व अन्य गंदगी लिए लगभग 21 नाले यमुना में मिलते हैं। इन्हें नियंत्रित किए बिना यमुना की सफाई संभव नहीं।

 

राजधानी को मिले जहरीले पानी से मुक्ति : जल मानव जीवन का आधार है, परंतु वह दिल्ली की जनता को कैंसर, सांस की बीमारी, त्वचा रोग जैसे मौत के कारक का वितरण केंद्र बना हुआ है। दिल्ली में केवल तीन साल यानी 2018 से लेकर 2021 तक यमुना की हालत सुधारने के लिए दो सौ करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। वैसे यमुना खादर के भूजल की जांच बीते लगभग 25 वर्षों के दौरान हुई ही नहीं। यह भी जान लें कि यहां का भूजल भी बीमारी बांटने में पीछे नहीं है। यमुना के किनारे खादर का लगभग 9700 हेक्टेयर इलाका हुआ करता था, जिसमें से आज 3600 हेक्टेयर पर अवैध बस्तियां बस गई हैं, कई जगह सरकार ने भी यमुना जल ग्रहण क्षेत्र में निर्माण किए हैं।

 

दिल्ली-गुडग़ांव अरावली पर्वतमाला के तले है और अभी सौ साल पहले तक इस पर्वतमाला पर गिरने वाली हर एक बूंद 'डाबर' में जमा होती थी। 'डाबर' यानी उत्तरी-पश्चिमी दिल्ली का वह निचला इलाका जो कि पहाड़ों से घिरा था। इसमें कई अन्य झीलों और नदियों का पानी आकर भी जुड़ता था। इस झील का विस्तार एक हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हुआ करता था जो आज गुडगांव के सेक्टर 107, 108 से लेकर द्वारका के पास पप्पनकलां तक था। इसमें कई प्राकृतिक नहरें व सरिता थीं, जो दिल्ली की जमीन, आबोहवा और गले को तर रखती थीं।

आज दिल्ली के भूजल के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक बना नजफगढ़ नाला कभी जयपुर के जीतगढ़ से निकल कर अलवर, कोटपुतली, रेवाड़ी होते हुए नजफगढ़ झील और वहां से दिल्ली में यमुना से मिलने वाली साहिबी या रोहिणी नदी हुआ करती थी। इस नदी के माध्यम से नजफगढ़ झील का अतिरिक्त पानी यमुना में मिल जाया करता था। वर्ष 1912 के आसपास दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में बाढ़ आई। उस समय की ब्रिटिश सरकार ने नजफगढ़ नाले को गहरा कर उससे पानी निकासी की जुगाड़ की। उस दौर में इसे नाला नहीं बल्कि 'नजफगढ़ लेक एस्केप' कहा जाता था। इसके साथ ही नजफगढ़ झील के नाबदान और प्राकृतिक नहर के नाले में बदलने की दुखद कथा शुरू हो गई। वर्ष 2005 में ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नजफगढ़ नाले को देश के सबसे ज्यादा दूषित 12 वेट लैंड में से एक निरूपित किया था।

पहले तो नहर के माध्यम से तेजी से झील खाली होने के बाद निकली जमीन पर लोगों ने खेती करना शुरू किया, फिर जैसे-जैसे नई दिल्ली का विकास होता गया, खेत की जमीन मकानों के दरिया में बदल गई। इधर आबाद होने वाली कालोनियों व कारखानों का गंदा पानी नजफगढ़ नाले में मिलने लगा और यह जाकर यमुना में जहर घोलने लगा।

आज भी सामान्य बारिश की हालत में नजफगढ़ झील में 52 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में पानी भरता है। कभी नजफगढ़ झील से अरावली की सरिताओं से आए पानी का संकलन और यमुना में जल स्तर बढऩे-घटने पर पानी का आदान-प्रदान होता था। जब दिल्ली में यमुना ज्यादा भरी तो नजफगढ़ में उसका पानी जमा हो जाता था। जब यमुना में पानी कम हुआ तो इस वेट लैंड का पानी उसे तर रखता था। हाल ही में एनजीटी ने फिर दिल्ली व हरियाणा सरकार को नजफगढ़ के पर्यावरणीय संरक्षण की योजना पेश करने की याद दिलाई। दिल्ली ने योजना तो बनाई, लेकिन उस पर अभी तक अमल नहीं किया, वहीं हरियाणा ने योजना तक नहीं बनाई। एक तो नजफगढ़ झील के जल ग्रहण क्षेत्र से अवैध कब्जे हटाने होंगे, दूसरा इस झील को यमुना से जोडऩे वाली नहर में गंदा पानी जाने से रोकने के संयत्र लगाने होंगे। इतने में ही न केवल यह झील खिलखिला उठेगी, बल्कि लाखों लोगों के कंठ भी तर हो जाएंगे।

आपकी राय !

Gujaraat में अबकी बार किसकी सरकार?

मौसम