कुछ शर्तो के साथ अब सीजेआइ का दफ्तर भी आरटीआइ के दायरे में
कुछ शर्तो के साथ अब सीजेआइ का दफ्तर भी आरटीआइ के दायरे में
संविधान पीठ ने अपने फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा
नई दिल्ली, : अयोध्या मामले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अब देश की सर्वोच्च अदालत का ‘सुप्रीम’ दफ्तर (सीजेआइ कार्यालय) भी कुछ शर्तो के साथ आरटीआइ के दायरे में आएगा। शीर्ष अदालत ने सीजेआइ के कार्यालय को पब्लिक अथॉरिटी माना है। इसे सूचना के अधिकार कानून (आरटीआइ) के दायरे में रखने के दिल्ली हाई कोर्ट के 2010 व देश के मुख्य सूचना आयुक्त (सीआइसी) के 2009 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पारदर्शिता के साथ ही ‘न्यायिक आजादी’ का भी ध्यान रखा जाए।
17 नवंबर को सेवानिवृत्त होने जा रहे सीजेआइ रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बुधवार को यह अहम फैसला सुनाया। दिल्ली हाई कोर्ट का 2010 का आदेश कायम रखते हुए पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल और केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा दायर तीन अपीलें खारिज कर दीं। पीठ में सीजेआइ गोगोई के अलावा जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता व जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे। सीजेआइ गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता व जस्टिस संजीव खन्ना की ओर से एक फैसला लिखा गया। वहीं, जस्टिस रमना व जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपना फैसला अलग-अलग लिखा।
फैसले की अहम बातें
- ’ निजता का अधिकार महत्वपूर्ण पहलू है। सीजेआइ के दफ्तर से सूचनाएं देते वक्त पारदर्शिता के साथ निजता का भी संतुलन रखा जाना चाहिए।
- ’ कोलेजियम द्वारा की जाने वाली जजों की नियुक्ति की सिफारिश के साथ सिर्फ नाम ही उजागर किए जाएंगे, कारण नहीं।
- ’ जजों की संपत्ति आदि की भी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी।
जजों ने यह कहा
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़: जजों के पद संवैधानिक हैं और वे पब्लिक ड्यूटी देते हैं, इसलिए न्यायपालिका को पूरी तरह से पृथक नहीं रखा जा सकता।
जस्टिस संजीव खन्ना : न्यायपालिका की आजादी व पारदर्शिता को साथ चलना चाहिए। पारदर्शिता से न्यायिक आजादी पुख्ता होगी।
जस्टिस रमना : निजता व पारदर्शिता के अधिकार का संतुलित फॉमरूला होना चाहिए व न्यायपालिका की आजादी को सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
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