रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन अपने सदस्यों की तरफ से क्रियाशील लेनदार की तरह कर सकती है दिवालियापन घोषित करने की याचिका-सुप्रीम कोर्ट निर्णय

May 10, 2019

रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन अपने सदस्यों की तरफ से क्रियाशील लेनदार की तरह कर सकती है दिवालियापन घोषित करने की याचिका-सुप्रीम कोर्ट निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन अपने सदस्यों की तरफ से क्रियाशील लेनदार की तरह याचिका की देखरेख कर सकती है या याचिका दायर कर सकती है। जस्टिस रोहिंटन फलि नरिमन व जस्टिस विनित सरन की पीठ ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के खिलाफ दायर अपील को स्वीकार कर लिया है। ट्रिब्यूनल ने माना था कि एक ट्रेड यूनियन कोई क्रियाशील लेनदार नहीं हो सकती है। क्योंकि वह कॉरपोरेट लेनदार को कोई सेवा नहीं देती है। जेके जूट मिल मजदूर मोर्चा ने अपने तीन हमार मजदूरों की तरफे एक डिमांड नोटिस जारी किया था। यह नोटिस मजदूरों का बकाया न देने के चलते दिवाला एंव शोधन अक्षमता कोड यानि दिवालिया कानून ( इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड ) की धारा 8 के तहत भेजा गया था। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने इनकी अर्जी को खारिज कर दिया था। एनसीएलटी के आदेश को सही ठहराते हुए एनसीएलएटी ने कहा था कि हर मजदूर खुद से एनसीएलटी के समक्ष अर्जी दायर कर सकता है। इस दृष्टिकोण से असहमत होते हुए पीठ ने कहा कि ट्रेड यूनियन एक संस्था है,जिसका गठन ट्रेड यूनियन एक्ट के तहत हुआ है।

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इसलिए कोड की धारा 3 (23) के तहत एक 'पर्सन' की परिभाषा के दायरे में आती है। ''क्रियाशील लेनदार यानि आप्रेशनल डेब्ट'' का मतलब है कि अपनी आजीविका या काम के संबंध में मांग करना। इसलिए यह मांग उस व्यक्ति द्वारा की जा सकती है,जिसको मजदूरों की तरफ से इस तरह की मांग करने के लिए अधिकृत किया गया हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि- '' ट्रेड यूनियन एक्ट की धारा 8 के तहत एक रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन को मान्यता दी गई है। इससे साफ है कि एक्ट की धारा 13 के तहत एक संगठित निकाय के तौर पर ट्रेड यूनियन केस दायर भी कर सकती है और उसके खिलाफ केस दायर भी हो सकता है। वहीं ट्रेड यूनियन के फंड में उन मजदूरों से ही लिया गया पैसा ही जमा होता है,जो इसके सदस्य होते है। यह पैसा किसी एक सदस्य से संबंधित विवाद या उसके सदस्यों से संबंधित विवाद के मामले में खर्च किया जा सकता है। या उस कानूनी केस पर भी खर्च हो सकता है,जिसमें रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन कोई पक्षकार हो और वह केस मजदूरों के उनके मालिक से अधिकारों की रक्षा के संबंध में हो,जिसमें उनका वेतन या उनका पुराना बकाया भी शामिल हो सकता है।'' कोड के प्रावधानों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि जब कोई ट्रेड यूनियन,जैसे कोई कंपनी, ट्रस्ट,साझेदारी या सीमित जिम्मेदारी वाली साझेदारी, ट्रेड यूनियन एक्ट के तहत रजिस्टर्ड हो जाती है तो वह एक्ट के तहत इस तरह स्थापित या प्रमाणित हो जाती है कि अब वह एक्ट के अधीन होगी या एक्ट के अनुसार चलेगी। '' ट्रेड यूनियन द्वारा काफी सारे मजदूरों की तरफ से एक याचिका दायर करने की बजाय अगर हर मजदूर अपनी अलग से याचिका दायर करेगा तो इससे भार ही बढ़ेगा क्योंकि कोड के प्रावधानों व भारतीय दिवाला एंव शोधन अक्षमता बोर्ड अधिनियम 2016 ( इंसॉल्वेंसी रिजोल्यूशन प्रोसेस फॉर कॉरपरेट पर्सनस ) के रेगुलेशन 31 व 33 के तहत हर मजदूर को इसके लिए अलग से दिवाला प्रस्ताव प्रक्रिया की फीस, अंतरिम प्रस्ताव प्रोफेशनल की फीस,मूल्यांकक को नियुक्त करने की फीस आदि देनी होगी। किसी भी एंगल से देख लिया जाए,इस बात में कोई संदेह नहीं है कि एक ट्रेड यूनियन,जिसका गठन मजदूर व उनके मालिकों के बीच के संबंधों को नियंत्रित करने के लिए हुआ है

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वह अपने सदस्यों की तरफ से एक क्रियाशील लेनदार की तरफ याचिका दायर कर सकती है। हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि प्रक्रिया न्याय की दासी है या उसके अधीन आती है और न्याय देने के लिए बनाई जाती है।'' क् ट्रिब्यूनल के विचारों को रद्द करते हुए पीठ ने मामले को फिर से एनसीएलएटी के पास भेज दिया है और कहा है कि अर्जी का निपटारा मामले के तथ्यों या गुणवता के आधार पर किया जाए। पीठ ने कहा कि- ''जो साफ है वो यह है कि ट्रेड यूनियन अपने सदस्यों का प्रतिनिधित्व करती है,जो कि मजूदर है। उनका अपने मालिक के पास बकाया हो सकता है,निश्चित तौर पर यह बकाया पैसा उनकी सेवाओं का है,जो उन्होंने दी है। जबकि सभी मजदूरों को प्रतिनिधित्व ट्रेड यूनियन करती है। समानरूप से,यह बताने के लिए कि प्रत्येक मजदूर के लिए कार्रवाई का एक अलग कारण होगा,एक अलग दावा और डिफॉल्ट की एक अलग तारीख, इस तथ्य को अनदेखा करेगा कि नियम 6 के तहत व दिवाला एंव शोधन अक्षमता ( अप्लीकेशन टू अजूडिकेटिंग अ‍ॅथारिटी यानि फैसला सुनाने वाले अधिकारी के समक्ष अर्जी देना) नियम 2016 के फॉर्म 5 के साथ एक संयुक्त याचिका दायर की जा सकती है। जिसमें अधिकार के साथ कई मजूदरों की तरफ से कोई एक ऐसी याचिका दायर कर सकता है।

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