लोकसभा में RTI संशोधन बिल पेश जानें कानून में क्या बदलना चाहती है मोदी सरकार

Jul 22, 2019

लोकसभा में RTI संशोधन बिल पेश जानें कानून में क्या बदलना चाहती है मोदी सरकार

विपक्ष के कड़े विरोध तथा कांग्रेस एवं तृणमूल कांग्रेस के वाक आउट के बीच सरकार ने लोकसभा में शुक्रवार को सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 पेश किया. विधेयक को नौ के मुकाबले 224 मतों से पेश करने की अनुमति दी गयी. विधेयक में यह उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन , भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे. मूल कानून के अनुसार अभी मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों के बराबर है. प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने सूचना का अधिकार अधिनियम ,2005 में संशोधन करने वाले इस विधेयक को पेश किया. उन्होंने कहा कि पारदर्शिता के सवाल पर मोदी सरकार की प्रतिबद्धता पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है.  उन्होंने जोर दिया कि सरकार अधिकतम सुशासन , न्यूनतम सरकार के सिद्धांत के आधार पर काम करती है. विधेयक के संदर्भ में मंत्री ने कहा कि इसका मकसद आरटीआई अधिनियम को संस्थागत स्वरूप प्रदान करना , व्यवस्थित बनाना तथा परिणामोन्मुखी बनाना है.

क्यों हो रहा है विरोध
सामाजिक कार्यकर्ता आरटीआई कानून में संशोधन के प्रयासों की आलोचना कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे देश में यह पारदर्शिता पैनल कमजोर होगा. विधेयक को पेश किये जाने का विरोध करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि मसौदा विधेयक केंद्रीय सूचना आयोग की स्वतंत्रता को खतरा पैदा करता है.  कांग्रेस के ही शशि थरूर ने कहा कि यह विधेयक वास्तव में आरटीआई को समाप्त करने वाला विधेयक है जो इस संस्थान की दो महत्वपूर्ण शक्तियों को खत्म करने वाला है. एआईएमआईएम के असादुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह विधेयक संविधान और संसद को कमतर करने वाला है.  ओवैसी ने इस पर सदन में मत विभाजन कराने की मांग की. कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने इस दौरान सदन से वाकआउट किया. मत विभाजन से पहले तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने मांग की कि विधेयक को संसद की स्थायी समिति को विचार के लिये भेजा जाए. उन्होंने कहा कि 15 वीं लोकसभा में 71 प्रतिशत विधेयक समितियों को भेजे गए थे जबकि16 वीं लोकसभा में केवल 26 प्रतिशत विधेयकों को संसदीय समितियों को भेजा गया. इस नयी लोकसभा में अभी तक एक भी विधेयक किसी संसदीय समिति को नहीं भेजा गया है और कई संसदीय समितियों का अभी तक गठन भी नहीं हुआ है.

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केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार में आरटीआई आवेदन कार्यालय समय में ही दाखिल किया जा सकता था. लेकिन अब आरटीआई कभी भी और कहीं से भी दायर किया जा सकता है.उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने सीआईसी के चयन के विषय पर आगे बढ़कर काम किया है. सोलहवीं लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता नहीं था.  ऐसे में सरकार ने संशोधन करके इसमें सबसे बड़ी पार्टी के नेता को जोड़ा जो चयन समिति में शामिल किया गया. नए विधेयक की क्या हैं खास बातें विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि आरटीआई अधिनियम की धारा13 मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की पदावधि और सेवा शर्तो का उपबंध करती है. इसमें उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन , भत्ते और शर्ते क्रमश: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के समान होगी.इसमें यह भी उपबंध किया गया है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन क्रमश : निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव के समान होगी.मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन एवं भत्ते एवं सेवा शर्ते सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समतुल्य हैं. ऐसे में मुख्य सूचना आयुक्त , सूचना आयुक्तों और राज्य मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन भत्ता एवं सेवा शर्तें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समतुल्य हो जाते हैं.वहीं केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग , सूचना अधिकार अधिनियम2005 के उपबंधों के अधीन स्थापित कानूनी निकाय है. ऐसे में इनकी सेवा शर्तो को सुव्यवस्थित करने की जरूरत है.संशोधन विधेयक में यह उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन , भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय होगी.क्या है सरकार का पक्ष

    RTI से जानकारी लेना आसान होगा
    RTI से जुड़े प्रबंधन में आसानी होगी
    पारदर्शिता लाना, सरकार की प्राथमिकता
    2005 में जल्दबाज़ी में लाया गया बिल
    क़ानून बनाते वक़्त सही नियम नहीं बने
    RTI क़ानून को मज़बूत कर रही है सरकार

कौन-कौन सी पार्टियां हैं विरोध में

कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके, बीएसपी, एसपी सूचना के अधिकार की क्या हैं मूल बातें सरकारी रिकॉर्ड देखने का मौलिक अधिकार 30 दिन के अंदर देना होता है जवाब देरी पर 250 रुपये प्रति दिन जुर्माना 2005 में UPA सरकार के दौरान बना क़ानून |

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