औषधीय गुणों से भरपूर वनस्पति के संरक्षण में जुटी प्रदेश सरकार
औषधीय गुणों से भरपूर वनस्पति के संरक्षण में जुटी प्रदेश सरकार
-उद्योग विहार (जून 2019)-लखनऊ।
औषधीय गुणों से भरपूर ऐसी वनस्पति प्रजातियां जिनकी तादाद प्रदेश में तेजी से कम होती जा रही है उनके संरक्षण के लिए राज्य सरकार प्रयास कर रही है। सरकार की कोशिश है कि आम आदमी को दवा मुहैया कराने वाले इन प्रजातियों के पेड़ संरक्षित किए जाएं ताकि भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति की चमक बरकरार रहे।
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राज्य जैव विविधता बोर्ड के वैज्ञानिक डॉक्टर सोमेश गुप्ता बताते हैं कि इन प्रजातियों के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कभी पराकृतिक रूप से बहुतायत में पाई जाने वाली हाथीपोला (गईती) प्रजाति भी अब लुप्तप्राय है। राज्य सरकार ने प्रयास कर केंद्र सरकार से इस प्रजाति के विदोहन को प्रतिबंधित करने के लिए अधिसूचना जारी कराई है।
हालांकि यह सिर्फ एक शुरुआत है। पर्यावरण पर मंडराता संकट भारत की परंपरागत चिकित्सा पद्धति को समृद्ध करने वाली वनस्पति प्रजातियों के लिए खतरा साबित हुआ है। कभी प्रदेश के तराई क्षेत्र में बरेली से महाराजगंज तक पाए जाने वाले वीजा साल के पेड़ अब ढूंढने पर मुश्किल से मिलते हैं। इस पेड़ की लकड़ी में छुपे औषधीय गुण मधुमेह के रोगियों के लिए बेहद प्रभावकारी माने जाते हैं। वीजा साल की लकड़ी से बने गिलास में भरे पानी के सेवन या फिर पानी की में इसकी छाल को डुबोकर उसे सुबह खाली पेट पीने से रक्त में शर्करा की मात्रा नियंत्रित होती है।
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कभी तराई के साथ उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में भी बड़ी तादाद में पाया जाने वाले बालम खीरा के पेड़ों की संख्या में काफी कमी आई है। इस पेड़ के फल से बनी दवाई पेट के रोगों के लिए रामबाण मानी जाती है। हनुमान के मुताबिक प्रदेश में अब बालम खीरा के पेड़ों की संख्या पहले की तुलना में एक चैथाई से भी कम रह गई है। कभी प्रदेश के मध्य भाग में प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली वानस्पतिक प्रजाति कलिहारी यौन रोगों के इलाज के लिए बेहद मुफीद मानी जाती है लेकिन अब इस के दर्शन दुर्लभ है। साल के वनों में प्रमुखता से पाए जाने वाले असना (वैज्ञानिक नाम र्मिनेलिया टोमनटोना) के पेड़ विलुप्त होते जा रहे हैं। असना की छाल में ऑक्जेलिक एसिड पाया जाता है जिसका औषधीय के अलावा औद्योगिक परयोजनों के लिए भी उपयोग किया जाता है। हृदय और वात रोगों के उपचार के लिए शास्त्रों में वर्णित अर्जुन के पेड़ों की संख्या में भी तेजी से कमी आई है। यह नम भूमि में पनपने वाली प्रजाति है। इसकी छाल से अर्जुनारिष्ट जैसी आयुर्वेदिक औषधियां बनाई जाती है।
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