सख्ती का संदेश

Jul 05, 2019

सख्ती का संदेश

पछले कुछ दिनों के भीतर अलग-अलग राज्यों में पुलिस और प्रशासन से जुड़े अधिकारियों पर हमले की जैसी घटनाएं सामने आई हैं, उन्हें महज किसी की तात्कालिक प्रतिक्रिया मान कर दरकिनार कर देना उचित नहीं होगा। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के विधायक बेटे ने ड्यूटी पर तैनात एक अफसर पर बल्ले से हमला कर दिया था और बाद में उसे सही भी ठहराने में लगे थे। चूंकि इस घटना का वीडियो सार्वजनिक हो गया,इसलिए देश भर में इसकी तीखी आलोचना हुई। दूसरी ओर, इन आलोचनाओं की फिक्र करने के बजाय हमला करने वाले इस विधायक को जमानत मिलने पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाया। ठीक इसी तरह की दूसरी घटना मध्यप्रदेश के सतना जिले के रामनगर में हुई और वहां भी भाजपा के एक नेता ने मुख्य कार्यपालक अधिकारी को बुरी तरह पीटा, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके अलावा, तेलंगाना में भी सोमवार को सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति के एक विधायक के भाई की अगुआई में भीड़ ने एक महिला वन सेवा अधिकारी पर जानलेवा हमला कर दिया। इन सभी घटनाओं में पीड़ित अफसर महज अपने पद के दायरे में आने वाले दायित्व का निर्वहन कर रहे थे, लेकिन नेताओं या उनके रिश्तेदारों ने अपने रसूख की धौंस दिखा कर उन पर हमला किया।

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सवाल है कि किस बात का अहंकार इन नेताओं के सिर चढ़ कर बोल रहा था कि किसी बात की शिकायत होने पर कानून का सहारा लेने के बजाय इन्होंने अफसरों पर हमला करना जरूरी समझा आखिर इन्हें किस बात की आश्वस्ति थी कि ये कानून के विरुद्ध अराजक आचरण कर लेंगे और इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा? जाहिर है, ये अपने राजनीतिक रसूख के भरोसे इस तरह बेलगाम होकर हिंसा कर रहे थे। इन्हें इस बात की भी फिक्र नहीं थी कि ऐसी गुंडागर्दी से खुद इनके सहित इनकी पार्टियों की कैसी छवि बन रही है। इसलिए अगर प्रधानमंत्री ने इन घटनाओं का संज्ञान लिया और इसके मद्देनजर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है तो यह बिल्कुल उचित है। उन्होंने साफ लहजे में कहा कि बेटा किसी का हो, ऐसा व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा जो पार्टी का नाम कम करता हैय सार्वजनिक रूप से अहंकार दिखाने का हक किसी को नहीं है और जिन लोगों ने स्वागत किया है, उन्हें भी पार्टी में रहने का हक नहीं है, सभी को पार्टी से निकाल देना चाहिए। प्रधानमंत्री का यह रुख इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि आमतौर पर किसी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के नरम रवैये या फिर उसकी अनदेखी की वजह से ही निचले स्तर के कार्यकर्ताओं के भीतर बेलगाम होने का हौसला बढ़ता है। लेकिन अगर शीर्ष नेतृत्व ऐसे मामलों पर सख्ती बरते तो इसका सीधा असर पड़ता है। यों इस तरह की घटनाएं देश भर से अक्सर सामने आती रहती हैं, जिनमें सरकारी अधिकारियों को राजनीतिकों की दबंगई का शिकार होना पड़ता है। हो सकता है कि किसी मौके पर नेताओं की शिकायत का कोई आधार हो, लेकिन ज्यादातर मौकों पर वे अपने रसूख की धौंस ही जमाते देखे जाते हैं। किसी भी स्थिति में कानून अपने हाथ में लेकर अफसरों या कर्मचारियों पर हमला करना अपराध ही है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अगर ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी होती है तो न केवल कानून पर अमल सुनिश्चित कराने और व्यवस्था बहाल करने में लगे अधिकारियों का काम करना मुश्किल हो जाएगा, बल्कि इससे जिस तरह की अराजकता पैदा होगी, उसमें आम जनता का सहज जीवन दूभर हो जाएगा। इसलिए प्रधानमंत्री ने अगर इस मसले पर सख्त रवैया अख्तियार किया है तो उसका संदेश समझा जाना चाहिए।

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