सुप्रीम कोर्ट ने वाहनों की पुलिस द्वारा अवैध रूप से जब्ती का आरोप लगाने वाली ऑल इंडिया ट्रांसपोर्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका खारिज की

Oct 04, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in/

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऑल इंडिया ट्रांसपोर्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जिसमें वाहनों की पुलिस द्वारा अवैध रूप से ज़ब्ती का आरोप लगाया गया था। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि ट्रांसपोर्टर पुलिस की कार्रवाई के कारण पीड़ित है, जो सीआरपीसी की धारा 102 (3) का स्पष्ट उल्लंघन है। संदर्भ के लिए सीआरपीसी की धारा 102 पुलिस अधिकारियों को संपत्ति को जब्त करने की शक्ति प्रदान करती है, जो कथित या चोरी होने का संदेह हो सकता है या जो ऐसी परिस्थितियों में पाया जा सकता है, जो किसी भी अपराध के कमीशन का संदेह पैदा करते हैं।
सीआरपीसी की धारा 102(3) में कहा गया, "उप-धारा (1) के तहत कार्य करने वाला प्रत्येक पुलिस अधिकारी अधिकार क्षेत्र वाले मजिस्ट्रेट को तुरंत जब्ती की रिपोर्ट करेगा और जहां जब्त की गई संपत्ति ऐसी है कि इसे आसानी से न्यायालय में नहीं ले जाया जा सकता है, वह अपने निष्पादन पर किसी भी व्यक्ति को उसकी हिरासत दे सकता है। जब कभी आवश्यक हो तो संपत्ति को न्यायालय के समक्ष पेश करने और उसके निपटान के संबंध में न्यायालय के अगले आदेशों को प्रभावी करने के लिए एक बंधपत्र हो।
याचिकाकर्ता द्वारा उठाई गई शिकायत यह थी कि कई मामलों में पुलिस अधिकारियों की कार्रवाई सीआरपीसी की धारा 102 के अनुरूप नहीं है और संपत्तियां पुलिस हिरासत में पड़ी रहती हैं, जिससे ट्रांसपोर्टरों को पीड़ा होती है। याचिकाकर्ताओं ने अपने निवेदनों के लिए एम.टी. एनरिका लेक्सी और अन्य बनाम डोरम्मा और अन्य के मामले में दिए गए निर्देश के पैरा नंबर 13 पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया, "जांच के दौरान पुलिस अधिकारी धारा 102 के तहत किसी भी संपत्ति को जब्त कर सकता है यदि ऐसी संपत्ति चोरी होने का आरोप है या चोरी होने का संदेह है या जांच के तहत अपराध की वस्तु है या अपराध के कमीशन के साथ सीधा संबंध है, जिसके लिए पुलिस अधिकारी जांच कर रहा है। संपत्ति, जिसे अपराध के किए जाने का संदेह नहीं है, जिसकी जांच पुलिस अधिकारी द्वारा की जा रही है, उसको जब्त नहीं किया जा सकता। संहिता की धारा 102 के तहत पुलिस अधिकारी ऐसी संपत्ति को जब्त कर सकता है, जो धारा 102(1) के अंतर्गत आती है।"
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) यू.यू. ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने पाया कि अनुच्छेद 32 के तहत जनहित याचिका मामले का सही उपाय नहीं है। सीजेआई ललित ने टिप्पणी की, "यदि ऐसे व्यक्तिगत मामले हैं, जहां व्यक्ति के अनुसार अनुपालन नहीं किया गया है तो संबंधित व्यक्ति उचित कार्यवाही के लिए फाइल करने के लिए स्वतंत्र है। याचिका में उठाई गई शिकायत कुछ ऐसा नहीं है, जिसे अनुच्छेद 32 के तहत निपटाया जाना चाहिए।" इसी के तहत याचिका खारिज कर दी गई। याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने और हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता मांगी। सीजेआई ललित ने इस पर कहा, "क्षमा करें, हम इसे बढ़ाना नहीं चाहते। यदि नकारात्मक हैं तो अदालत इस पर गौर कर सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पुलिस शक्तिहीन है और संपत्ति को जब्त भी नहीं कर सकती। व्यक्तियों द्वारा दिए गए प्रतिनिधित्व पर उचित रूप से विचार किया जाएगा। पुलिस के पास अधिकार होना चाहिए। प्रतिबंधित सामग्री को जब्त करें लेकिन जांच होनी चाहिए कि उसके अलावा कुछ भी नहीं है। इसलिए हमने यह स्पष्ट कर दिया है ... धारा 451, 457- ये उचित कार्यवाही हैं।"

आपकी राय !

Gujaraat में अबकी बार किसकी सरकार?

मौसम