यौन अपराधों में आरोपियों की पहचान को सरंक्षण देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया .

Jul 31, 2019

यौन अपराधों में आरोपियों की पहचान को सरंक्षण देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया .

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका का परीक्षण करने पर अपनी सहमति जताई है, जिसमें यौन अपराधों के आरोपों की "सत्यता" की जांच पूरी होने तक आरोपियों की पहचान, प्रतिष्ठा और अखंडता को सरंक्षण देने की मांग की गई है। न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने वकील रीपक कंसल और यूथ बार एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र व अन्य को नोटिस भी जारी किया है। सोशल मीडिया के दौर में मुश्किलें याचिकाकर्ताओं का यह कहना है कि समाज के तेज़ी से बदलते स्वरूप और सोशल मीडिया तक आसान पहुंच के कारण आजकल लोग स्वतंत्र और आलोचनात्मक विश्लेषण किए बिना समाचारों के आधार पर अपने निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं। "आरोपी की अखंडता का हो संरक्षण" याचिका में आगे यह कहा गया है कि जहां तक ​​आधुनिक समय में "अखंडता" की सरंक्षण की बात है तो ये संरक्षण केवल "पीड़ित" को दिया जाता है, न कि "आरोपी" को, जिसे कई बार गलत तरीके से या दुर्भावनापूर्ण तरीके से मामले में फंसाया जाता है और यह आपराधिक न्यायशास्त्र के निर्धारित सिद्धांत के खिलाफ है कि "एक व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उचित संदेह से परे दोषी साबित न हो जाए।" "निवारक उपाय लाना है समय की मांग"

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यह बताते हुए कि झूठे आरोप किसी व्यक्ति के जीवन को कैसे बर्बाद कर सकते हैं, याचिका में यह कहा गया है कि "झूठे आरोप कभी-कभी एक निर्दोष व्यक्ति के पूरे जीवन को नष्ट कर देते हैं और ऐसे उदाहरण भी हमारे सामने आए हैं जहां झूठे तरीके से फंसाए गए व्यक्ति ने आत्महत्या भी की है। यह केवल एक व्यक्ति के जीवन को ही नष्ट नहीं करता है बल्कि परिवार के सदस्यों के लिए सामाजिक कलंक भी बना जाता है। समय की मांग है कि कुछ निवारक उपाय किए जाएं ताकि न्याय के हित में ऐसी स्थितियों से बचा जा सके और उनसे निपटा जा सके।" "धारा 228-अ कढउ के अंतर्गत केवल पीड़ित को सुरक्षा" याचिका में इन बात पर प्रकाश डाला गया है कि कैसे भारतीय दंड संहिता की धारा 228-अ पीड़ितों की पहचान का खुलासा करने के लिए दंड प्रदान करती है लेकिन झूठे आरोप के मामले में अभियुक्त की पहचान और अखंडता की सुरक्षा के लिए कोई सुरक्षा प्रदान नहीं करती है। "मुआवज़े के जरिये नहीं की जा सकती नुकसान की भरपाई" अपनी बात को साबित करने के लिए याचिका में एस. नाम्बी नारायणन (जो एक भारतीय वैज्ञानिक और एयरोस्पेस इंजीनियर हैं और भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से भी सम्मानित किए गए हैं) का उदाहरण दिया गया है जिन पर जासूसी का आरोप लगाया गया था और बाद में उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया था। उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। याचिका में यह कहा गया है कि मुआवजे की कोई भी राशि इस प्रक्रिया में जो कुछ खो जाता है, उसकी भरपाई नहीं कर सकती।

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