सुप्रीम कोर्ट ने कहा, देशभर में पटाखों पर प्रतिबंध संभव नहीं, वाहनों से ज्यादा होता है प्रदूषण
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि देशभर में पटाखों पर प्रतिबंध लगाना संभव नहीं है। जस्टिस एस. ए बोबड़े और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने टिप्पणी की लोग पटाखों पर बैन के पीछे क्यों पड़े हैं जबकि ऐसा लगता है कि वाहनों द्वारा वायु को ज्यादा प्रदूषित किया जाता है।
पीठ ने केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया है कि वो पटाखों और वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर एक तुलनात्मक रिपोर्ट तैयार कर कोर्ट में दाखिल करे।
सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता को कहा कि अदालत पटाखे और इसकी इकाइयों को बंद करके बेरोजगारी पैदा नहीं कर सकती। प्रदूषण का स्तर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होता है और पूरे देश में पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के लिए समूर्ण देश में समान मानदंड लागू नहीं किए जा सकते।
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जस्टिस एस. ए. बोबड़े ने कहा कि यदि पटाखा व्यापार वैध है और उनके पास एक वैध लाइसेंस है तो अदालत इस पर कैसे प्रतिबंध लगा सकती है? क्या अदालत ने कभी भी अनुच्छेद 19 के तहत जीने के अधिकार के दृष्टिकोण से पटाखों पर प्रतिबंध के मुद्दे का परीक्षण किया है?
उन्होंने कहा कि अन्य देशों की तुलना में भारत में पटाखे जोर-शोर से चल रहे हैं और इसलिए अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों को देश के भीतर समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।
वहीं केंद्र की ओर से पेश अरॠ आत्माराम नाडकर्णी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अब तक ढएरड और ठएएफक ने ग्रीन पटाखों का फॉर्मूला फाइनल नहीं किया है क्योंकि पटाखों में खतरनाक रसायन बेरियम नाइट्रेट के इस्तेमाल पर रोक है। ग्रीन पटाखों के लिए अभी प्रयोग जारी हैं।
सुप्रीम कोर्ट 3 अप्रैल को इस मामले की अगली सुनवाई करेगा।
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5 मार्च को राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (ठएएफक) और सेंटर फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (उरकफ) ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि पटाखा निर्माताओं के लिए पर्यावरण और वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए 'ग्रीन पटाखों' का उत्पादन संभव है।
पीठ ने पटाखा निर्माताओं के परामर्श से 2 वैज्ञानिक निकायों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लेने के बाद केंद्र और याचिकाकर्ता को 1 सप्ताह के भीतर रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया दायर करने के लिए कहा था।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में पर्यावरण प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए ग्रीन पटाखे बनाने के लिए बेरियम नाइट्रेट और पोटेशियम नाइट्रेट जैसे पारंपरिक कैमिकल की कम मात्रा के साथ कुछ अतिरिक्त योजक जोड़कर ग्रीन पटाखे बनाए जा सकते हैं।
वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील गोपाल शंकरनारायन ने बेरियम नाइट्रेट और पोटेशियम नाइट्रेट के इस्तेमाल का विरोध किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा था कि इन रसायनों का इस्तेमाल पटाखों के निर्माण में नहीं होगा। ऐसे में केंद्र सरकार इस मुद्दे पर अपनी राय दे।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्तूबर 2018 को देश भर में दिवाली के दौरान वायु और ध्वनि प्रदूषण का मुकाबला करने के लिए पटाखों की बिक्री और पटाखे चलाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इससे संबंधित कई दिशा निर्देश भी जारी किए और पटाखों की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी।
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जस्टिस ए. के. सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण ने ये फैसला सुनाते हुए केंद्र के हलफनामे को मंजूर करते हुए कहा था कि कम शोर और प्रदूषण वाले सुधार वाली क्वॉलिटी के पटाखों की बिक्री व निर्माण हो जिनमे राख और धूल 20 फीसदी तक कम हो।
इनका मानक ढएरड की विशेषज्ञ टीम तय करेगी ताकि पटाखों में चारकोल और बारूदी रसायन की मात्रा को पैरोटेक्नीक से तय करने के बाद ही उन्हें मंज़ूरी दी जाएगी।
ग्रीन फायर क्रेकर्स का इस्तेमाल किया जाए जो कम धुआं दें। साथ ही कम धुंआ और आवाज वाले ऐसे पटाखे और आतिशबाज़ी जिनसे 30-35 फीसदी पीएम (पार्टिक्युलेट मैटर) कम उत्सर्जित होता है।
इनमें खतरनाक रसायन ठड७ और रड2 कम होता है। पीठ ने कहा कि दिल्ली और ठउफ में जो पटाखे बनाए जा चुके हैं और शर्तों के मुताबिक नहीं हैं उन्हें बेचने की इजाजत नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अभी अदालत ने पटाखों के निर्माण और बिक्री पर रोक लगाने पर विचार नहीं किया है और इसके लिए व्यापक रिसर्च और शोध का इंतजार है। जब ये रिपोर्ट आ जाएंगी तो और भी कठोर कदम उठाए जा सकते हैं।
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