लिखित बयान दाख़िल करने के लिए आवश्यक 120 दिन की समय सीमा उन मामलों पर लागू नहीं होंगे जो वाणिज्यिक अदालत अधिनियम बनाए जाने के पहले दायर हुए बॉम्बे हाईकोर्ट
लिखित बयान दाख़िल करने के लिए आवश्यक 120 दिन की समय सीमा उन मामलों पर लागू नहीं होंगे जो वाणिज्यिक अदालत अधिनियम बनाए जाने के पहले दायर हुए बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि वाणिज्यिक मामलों में 120 दिनों के भीतर बयान दाख़िल करने की समय सीमा उन मामलों में लागू नहीं होगा जो वाणिज्यिक अदालत अधिनियम 2015 को बनाए जाने के पहले दायर किए गए हैं। न्यायमूर्ति एसजे कठवल्ला ने कहा कि वाणिज्यिक अदालत इस तरह के मामले में प्रबंधन की सुनवाई कर सकते हैं जिन्हें "स्थानांतरित" मामले भी कहा जाता है। केस प्रबंधन सुनवाई की इजाज़त सीपीसी के नए प्रावधान आदेश XV-A के तहत दी गई है। अदालत कलोनीयल लाइफ़ इंस्योरेंश कम्पनी लिमिटेड द्वारा दायर एक मामले की सुनवाई के दौरान यह बात कही जो रिलायंस जेनरल इंस्योरेंश कंपनी द्वारा दायर वाणिज्यिक मामले के संबंध में है। अदालत ने सिर्फ़ इस बात की जाँच की कि ट्रान्स्फ़र वाले मामले में बयान दाख़िल करने के लिए 120 दिन की समय सीमा लागू होगी या नहीं। यह मामला ट्रान्स्फ़र किए हुए मामले का है। प्रतिवादी कलोनीयल लाइफ़ इंस्योरेंश कंपनी उक्त अधिनियम के अधीन 120 दिन की निर्धारित समय सीमा में बयान दाख़िल नहीं कर पाई।
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वाणिज्यिक अदालत अधिनियम
यह अधिनियम 3 अक्टूबर 2015 को लागू हुआ जिसका प्राथमिक उद्देश्य वाणिज्यिक विवादों को शीघ्रता से सुलझाना है। इस अधिनियम का अध्याय V, धारा 15 हाईकोर्ट में लंबित किसी विशेष वैल्यू के वाणिज्यिक मामलों और आवेदनों के हाईकोर्ट के वाणिज्यिक संभाग में ट्रांसफ़र की अनुमति देता है। दलील कलोनीयल लाइफ़ इंस्योरेंश के वक़ील ने कहा कि वाणिज्यिक अदालत अधिनियम में मामलों को ट्रान्स्फ़र करने के लिए 120 दिनों की समय सीमा को मानने से छूट दी गई है और लिखित बयान दाख़िल करने के लिए नई समय सीमा निर्धारित करने का ज़रूरी अधिकार दिया गया है। रिलायंस के वक़ीलों ने कहा कि वाणिज्यिक अदालत अधिनियम की धारा 15(4) तभी लागू होता है अगर सम्मन का रिट आदेश Vनियम 1 के तहत जारी किया जाता है। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में भी 120 दिनों की समय सीमा का प्रावधान समाप्त नहीं होता है।
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फ़ैसला
अदालत ने प्रतिवादी की इस दलील को ठुकरा दिया। कोर्ट ने दोनों पक्षों द्वारा कई मामलों में आए फ़ैसलों के हवालों पर ग़ौर किया और कहा, "मेरी दृष्टि में धारा 15 (4) और उसके प्रावधान पूरी तरह से उन मामलों पर लागू होते हैं जो वाणिज्यिक अदालत अधिनियम के बनाए जाने से पहले दायर किए गए थे पर जिन्हें बाद में इस अदालत के वाणिज्यिक प्रभाग द्वारा सुने जाने के लिए ट्रान्स्फ़र कर दिया गया। इसलिए मेरे मत है कि 120 दिनों के अंदर बयान दाख़िल करने की बाध्यता उन मामलों पर लागू नहीं होते जो इस अधिनियम को बनाए जाने से पहले दायर किए गए थे और बाद में जिन्हें हाईकोर्ट के वाणिज्यिक प्रभाग द्वारा सुने जाने के लिए ट्रांसफ़र कर दिया गया।
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