बच्चे को पढ़ाई के लिए विदेश भेजने से पहले माता-पिता दोनों की सहमति आवश्यक, बॉम्बे हाईकोर्ट ने भरण पोषण की अपील पर दिया फैसला
बच्चे को पढ़ाई के लिए विदेश भेजने से पहले माता-पिता दोनों की सहमति आवश्यक, बॉम्बे हाईकोर्ट ने भरण पोषण की अपील पर दिया फैसला
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा है कि माता और पिता, दोनों की सहमति के बगैर संतान को उच्च शिक्षा के लिए विदेश नहीं भेजा जा सकता। ऐसे मामलों में उस अभिभावक की सहमति विशेष रूप से आवश्यक है, जिसे संतान के विदेश में रहने और पढ़ने को खर्च उठाना है। शीतल भटिजा की ओर से बॉम्बे हाईकोर्ट में अपने पति दीपक के खिलाफ दाखिल के एक मामले में जस्टिस अकील कुरैशी और जस्टिस एसजे काठवाला की डिवीजन बेंच ने ये टिप्पणी की। शीतल भटिजा ने उच्च न्यायालय में फेमिली कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी, जिसमें कोर्ट ने शीतल के पति को अपनी दोनों बेटियों को 50 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने को निर्देश दिया था।
क्या है मामला-
फेमिली कोर्ट शीतल और दीपक की शादी, दोनों की आपसी सहमति से, हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के सेक्शन 13-B के तहत रद्द कर चुकी है। शीतल शादी रद्द करने के लिए दायर तलाक की अर्जी में अपने और दो बेटियों के रखरखाव के लिए गुजारा भत्ता, आवास और मुकदमे का खर्च मांगा था। उन्होंने कोर्ट से अपनी दोनों बेटियों सृष्टि और श्लोका के भरण पोषण का खर्च और खार जिमखाना की अपनी एसोशिएट मेंबरशिप बहाल करने की मांग भी की थी। हालांकि कोर्ट के फैसले में उनकी अधिकांश मांगे नहीं मानी गईं, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अपील दायर की। अपील ने शीतल ने खुद के लिए 50 हजार रुपए अंतरिम गुजारा भत्ता मांगा, साथ ही अपने और अपनी बेटियों के लिए 55 हजार रुपए मकान का किराया मांगा था। उन्होंने बेटी की ऑस्ट्रेलिया में हुए उच्च शिक्षा पर खर्च 1.20 करोड़ रुपए की भरपाई की भी मांग की थी। उन्होंने अपनी बड़ी बेटी के लिए पढ़ाई की बची अवधि के लिए हर महीने लगभग 2100 ऑस्ट्रेलियन डॉलर के बराबर राशि की मांग भी की थी। साथ ही छोटी बेटी श्लोक के लिए एक लाख रुपए प्रति माह का गुजारा भत्ता और मुकदमे में खर्च 20 हजार रुपए की मांग की थी।
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दोनों पक्षों की दलीलें
जस्टिस अकील कुरैशी और जस्टिस एसजे काठवाला की डिवीजन बेंच के समक्ष शीतल की ओर से एडवोकेट अभिजीत सरवटे और अजिंक्य उडाने ने पक्ष रखा, जबकि पति दीपक की ओर से आशीष कामत और रामचंद्र यादव ने दलीलें पेश कीं। वादी के वकील एडवोकेट अभिजीत सरवटे का कहना था कि शीतल के पति दीपक के पास आमदनी के कई स्रोत हैं, जिसकी जानकारी उन्होंने फेमिली कोर्ट को नहीं दी। साथ ही उच्च न्यायालय से भी छिपा रखी है। दीपक का सूद पर रुपए देने और फाइनेंसिंग का कारोबार रहा है। वो अतीत में कई पॉपुलर हिंदी फिल्मों में भी पैसा लगा चुके हैं। वो कई अचल संपत्तियों के मालिक हैं और आलीशान जिंदगी जीते हैं। एडवोकेट सरवटे ने कहा कि जब दीपक और शीतल साथ रहते थे, तब वे छुट्टियों में अक्सर विदेश जाया करते थे। वे अपने साथ बच्चों की देखभाल के लिए आया भी ले जाते, ये तथ्य दीपक की आमदनी और उनकी आलीशान जिंदगी का स्पष्ट खुलासा करते हैं। अपील के मुताबिक, शीतल ने अपनी बड़ी बेटी सृष्टि को पढ़ने के लिए ऑस्ट्रेलिया भेजा था, जिसके लिए उन्होंने एजुकेशन लोन लिया था और पैरामाउंट टॉवर स्थित फ्लैट को गिरवी रखा। सृष्टि ने 2014 में ऑस्ट्रेलिया की एडिथ कॉवन यूनिवर्सिटी में स्नातक में दाखिला लिया था। शीतल के मुताबिक, 5 साल के कोर्स का अनुमानित खर्च 1.20 करोड़ है। वहीं, वादी की दलीलों के जवाब में प्रतिवादी दीपक के वकील आशीष कामत ने कहा कि उनके मुवक्किल दिल के मरीज हैं और अब उनके पास कोई सक्रिय बिजनेस नहीं रह गया है। दो अचल संपत्तियों, जिनमें एक उनका आवास है और दूसरी लीज पर दी गई है, उनके पास कोई अचल संपत्ति भी नहीं है। एडवोकेट कामत का कहना था कि वादी शीतल अपने कारोबार में लगी हुई हैं. वो मकान से भी पैसे कमाती हैं. दोनों बेटियों के नाम फ्लैट है, जिससे लीज के एवज में हर महीने 1.30 लाख की आमदनी होती है। हाल ही में वो मेसर्स लेरीज इम्पेक्स नाम की फर्म से भी जुड़ी हुईं थीं, जिसके एवज में उन्होंने हर महीने 75 हजार रुपए की कमाई होती थी।
अदालत का फैसला
जस्टिस अकील कुरैशी और जस्टिस एसजे काठवाला की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले के आरंभ में कहा कि दोनो पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलों में अपनी आर्थिक हालत बहुत ही कमजोर बताने की कोशिश की है, जबकि दूसरे पक्ष को बहुत ही रंगीन तस्वीर पेश की है। कोर्ट को मुकदमें में पेश दस्तावेजों के आधार पर ही नतीजे पर पहुंचना होगा। दोनों जजों की बेंच ने वादी शीतल भटिजा की माली हालत का आंकलन करने के बाद कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि शीतल के पति दीपक के पास अतीत में आमदनी के पर्याप्त स्रोत रहे हैं, फिर भी फिलहाल उनकी आमदनी के बारे में कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है। कोर्ट ने माना कि अतीत में दीपक के कई कारोबार रहे हैं, जिसमें फिल्मों की फाइनेंसिंग और प्राइवेट फाइनेंसिंग भी शामिल है। ऐसे निवेश रातों-रात खत्म नहीं हो जाते, इसलिए अदालत पति की ओर से पेश की दलीलों पर पूरी तरह यकीन नहीं करती। हालांकि उन्हीं पर बेटियों की शिक्षा का पूरा खर्च डालना भी उचित नहीं है, क्योंकि-
1. वादी शीतल अपनी पति के आर्थिक हालात के बारे में ठोस दस्तावेज पेश नहीं कर पाईं हैं.
2. साथ ही बेटी को शिक्षा के लिए विदेश भेजने का फैसला पति की सलाह के बगैर लिया गया है। पति से सलाह न लेने का कारण जो भी रहा हो।
3. यदि संतान को, अपेक्षाकृत कम उम्र में, उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजा जा रहा, जिस पर काफी पैसे खर्च हो सकते हैं तो ऐसी स्थिति में दोनों अभिभवाकों यानी माता और पिता का एकराय होना आवश्यक है। विशेष रूप से उस अभिभावक की सहमति अवाश्यक है, जिसे पढ़ाई का खर्च उठाना है।
अदालत ने कहा कि पति को निश्चित रूप से पूरा अधिकार है कि वो विदेश में पढ़ने जा रही संतान के विश्वविद्यालय, कोर्स और उस कोर्स में संतान के रुझान के बारें में पूछताछ करे। वादी ऐसे मामलों में एकतरफा फैसला लेकर पिता को पढ़ाई का बिल नहीं पकड़ा सकता। मामले में पति की आर्थिक हालत और ये देखते हुए कि उनकी बड़ी बेटी सृष्टि ऑस्ट्रेलिया में अच्छा कर रही हैं, कोर्ट दीपक को वादी शीतल भतीजा को चार हफ्तों के भीतर 25 लाख रुपए देने का निर्देश देती है।
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