बिक्री के क़रार के विशिष्ट प्रावधान को लागू करने के आदेश आदेश से कठिनाई होने की बात नहीं की जा सकती अगर लिखित बयान में इसका ज़िक्र नहीं है सुप्रीम कोर्ट
बिक्री के क़रार के विशिष्ट प्रावधान को लागू करने के आदेश आदेश से कठिनाई होने की बात नहीं की जा सकती अगर लिखित बयान में इसका ज़िक्र नहीं है सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी विशेष मामले में प्रतिवादी को इस बात का ज़िक्र करना चाहिए कि अगर उसको क़रार के किसी विशिष्ट प्रावधान को लागू करने को कहा गया तो उसे क्या मुश्किलें पेश आ सकती हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ है तो इस तरह की अपील की बाद में इजाज़त नहीं दी जा सकती। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने एक बिक्री की तिथि 30.12.1985 संबंधी क़रार को लागू करने के बारे में निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराया। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने बीमानेनी महा लक्ष्मी बनाम गंगुमल्ला अप्पा राव मामले में निचली अदालत के फ़ैसले को निरस्त कर दिया था। इस फ़ैसले में निचली अदालत ने प्रतिवादी को 17 एकड़ 39 सेंट ज़मीन को बेचने का क़रार करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने वादी के इस बारे में तैयारी और उसकी इच्छा के बारे में किसी तरह का हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। प्रतिवादी ने कोर्ट से कहा कि अगर क़रार के तहत किसी विशेष तरह की कार्रवाई के लिए आदेश कई सालों के बाद जारी किया जाता है तो इससे प्रतिवादी (विक्रेता) को बहुत नुक़सान होगा। इस दलील के उत्तर में पीठ ने कहा कि लिखित बयान में प्रतिवादी ने इस बात का कोई ज़िक्र नहीं किया था कि अगर प्रतिवादी विक्रेता के ख़िलाफ़ आदेश दिया गया तो इससे उसको परेशानी होगी।
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कोर्ट ने कहा,
इस समय ए मारिया अंजेलिना बनाम एजी बालकिस बी के मामले में अदालत के फ़ैसले पर ग़ौर करने की ज़रूरत है। उस मामले में विक्रेता ने मुश्किल होने की बात पहली बार अदालत को बताई थी और अदालत ने विक्रेता को इस तरह की अपील की अनुमति नहीं दी थी और कहा था कि प्रतिवादी ने इस तरह की मुश्किल होने की बात का ज़िक्र अपने लिखित बयान में नहीं किया थाऔर इसलिए विशेष अनुमति याचिका दायर कर इस तरह की अपील की इजाज़त नहीं दी जा सकती। विशेषकर, उस स्थिति में जब इस बात की जानकारी है कि प्रतिवादी क़रार में अपनी भूमिका को अंजाम देने के लिए तैयार था। इसलिए विक्रेता की ओर से मुश्किल पेश आने की जो दलील दी जा रही है उसको उठाने की अभी इजाज़त नहीं दी जा सकती है, विशेषकर उस स्थिति में जब लिखित बयान में इस तरह की बात का ज़िक्र नहीं किया गया था।
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