अर्थव्यवस्था की रफ़्तार
अर्थव्यवस्था की रफ़्तार
सरकार की दूसरी पारी की पहली आर्थिक समीक्षा में इस साल विकास दर के सात फीसद तक रहने का अनुमान लगाया गया है। समीक्षा में बताया गया है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति बीते अप्रैल में घट कर तीन फीसद से नीचे आ गई है। पिछले पांच सालों में मुद्रास्फीति में निरंतर गिरावट आई है और यह 5.9 से घट कर 2.9 पर पहुंच गई है। इसी तरह उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक पर आधारित खाद्य महंगाई दर वित्त वर्ष 2018-19 में घट कर 0.1 फीसद के निम्न स्तर पर पहुंच गई है। आर्थिक समीक्षा के अनुसार खाद्य महंगाई की दर निम्न स्तर पर स्थिर रही है। ऐसा इसलिए हुआ कि फलों, सब्जियों, दालों और अन्य कृषि उत्पाद की कीमतों में कमी दर्ज की गई। रुपए की विनिमय दर जरूर बढ़ी है, क्योंकि कच्चे तेल की कीमतों में लगातार वृद्धि की वजह से डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है। मगर इसके संभलने का अनुमान है। इसी तरह विदेशी कर्ज लगातार घट रहा है। यह पिछले साल के 521.1 अरब डॉलर से घट कर 417.3 अरब डॉलर तक आ गया है। वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि हुई है। समीक्षा में राजकोषीय घाटे के 3.4 प्रतिश्त पर रहने का अनुमान लगाया गया है। इस तरह अब अर्थव्यवस्था में मजबूती आने के संकेत मिल रहे हैं। सरकार के पिछले कार्यकाल में अर्थव्यवस्था कमजोर स्थिति में पहुंच गई थी। इसे लेकर विपक्ष लगातार हमलावर दिखा। इसलिए सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के शुरू में ही सबसे पहले अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने की दिशा में ध्यान केंद्रित किया। राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने आह्वान किया कि हमें अर्थव्यवस्था का आकार पांच हजार अरब डॉलर तक बढ़ाना है। लक्ष्य बड़ा है, पर मुश्किल नहीं। अगर सभी राज्य सरकारें साथ मिल कर काम करें, तो अगले पांच सालों में इस लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। इसी के मद्देनजर विभिन्न विभागों के वरिष्ठ मंत्रियों की दो समितियां बनाई र्गइं, जो अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने संबंधी उपायों पर विचार करेंगी। इसमें नए रोजगार पैदा करने पर भी जोर है। इसके मद्देनजर आर्थिक समीक्षा में आकलन किया गया है कि जिन छोटे और मझोले उद्योगों में बड़े उद्योग के रूप में विकसित होने की संभावना है, उन्हें प्रोत्साहन दिया जाएगा। समीक्षा में विकास दर को आठ फीसद पर स्थिर रखने का लक्ष्य रखा गया है, तभी अर्थव्यवस्था का आकार पांच हजार अरब डॉलर का बनाने में मदद मिल सकती है। मगर सरकार के सामने कुछ बड़ी चुनौतियां भी हैं। उनमें लोगों की क्रय क्षमता बढ़ाना, निर्यात को संतोषजनक स्तर पर पहुंचाना, उत्पादन की दर बढ़ाना और घरेलू बाजार में गति लाना प्रमुख हैं। सरकार इन चुनौतियों से वाकिफ है। इसलिए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि का असर बना रहेगा, पर भारत पर बहुत असर नहीं रहेगा, क्योंकि वैश्विक उत्पादन बढ़ेगा, तो भारत का निर्यात भी बढ़ेगा। इसके साथ ही अगर विदेशी निवेश बढ़ेगा तो चालू खाते के घाटे को पाटने में मदद मिलेगी। उत्पादन की दर बढ़ेगी, तो नए रोजगार के सृजन में भी मदद मिलेगी। इस तरह लोगों की क्रय क्षमता बढ़ेगी और नतीजतन घरेलू बाजार में गति आएगी। मगर सरकार विदेशी निवेश आकर्षित करने की दिशा में क्या नई रणनीति अपनाती है, देखने की बात है। इसी तरह बैंकों की हालत सुधारने की दिशा में किए गए प्रयास भी अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर काफी कुछ असर डालेंगे।
यह भी देखे -