BSNL में फिर सैलरी का संकट, जानें क्यों और कितनी खस्ता है हालत

Jun 25, 2019

BSNL में फिर सैलरी का संकट, जानें क्यों और कितनी खस्ता है हालत

आर्थिक संकट से जूझ रही सरकारी टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल (भारत संचार निगम लिमिटेड) के 1.76 लाख कर्मचारियों की जून की सैलरी मिलने में देरी हो सकती है. अगर ऐसा होता है तो करीब 6 महीने के भीतर दूसरी बार होगा जब बीएसएनएल के कर्मचारी समय पर सैलरी पाने से वंचित रहेंगे. इससे पहले कर्मचारियों को फरवरी महीने की सैलरी भी मार्च के तीसरे हफ्ते में मिली थी. बता दें कि बीएसएनल के कर्मचारियों को हर महीने के आखिरी या अगले महीने के पहले वर्किंग डे तक सैलरी मिल जाती है.

क्‍यों लग रहे हैं कयास?

टाइम्‍स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक बीएसएनएल ने सरकार से कहा है कि कंपनी के पास कामकाज जारी रखने के लिए पैसे नहीं हैं. कंपनी के मुताबिक कैश की कमी की वजह से जून के लिए लगभग 850 करोड़ रुपये की सैलरी दे पाना मुश्किल है. बीएसएनएल के कॉर्पोरेट बजट एंड बैंकिंग डिविजन के सीनियर जनरल मैनेजर पूरन चंद्र ने टेलिकॉम मंत्रालय में ज्‍वाइंट सेक्रटरी को लिखे एक पत्र में कहा, 'हर महीने के रेवेन्यू और खर्चों में अंतर की वजह से अब कंपनी का संचालन जारी रखना चिंता का विषय बन गया है.' उन्‍होंने आगे कहा कि अब यह एक ऐसे लेवल पर पहुंच चुका है जहां बिना किसी पर्याप्त इक्विटी को शामिल किए बीएसएनएल के ऑपरेशंस जारी रखना लगभग नामुमकिन होगा.' 

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इरठछ इस हालात में क्‍यों ?

अगर बीएसएनएल आज इन हालातों में है तो इसके पीछे कई वजह हैं. सबसे बड़ी वजह कंपनी का कर्मचारियों पर खर्च है. दरअसल, बीएसएनएल का कुल आमदनी का करीब 55 फीसदी कर्मचारियों के वेतन पर खर्च होता है. हर साल इस बजट में 8 फीसदी बढ़ोत्तरी हो जाती है. आसान भाषा में समझें तो वेतन पर खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है और आमदनी में गिरावट आ रही है.

डेटा वॉर और 4जी में पीछे

बीएसएनएल की कमर तोड़ने में रिलायंस जियो की टेलिकॉम इंडस्‍ट्री में एंट्री ने भी अहम भूमिका निभाई. दरअसल, साल 2016 में जियो के आने के बाद टेलिकॉम कंपनियों में सस्‍ते डेटा पैक और टैरिफ की जंग छिड़ गई. कई टेलिकॉम कंपनियां बोरिया- बिस्‍तर समेटने पर मजबूर हुईं. वहीं बीएसएनएल भी जियो, एयरटेल और वोडाफोन के मुकाबले पिछड़ती चली गई. साल 2018 में कंपनी को करीब 8,000 करोड़ रुपये तक का नुकसान हुआ है.

सार्वजनिक  क्षेत्र की कंपनी बीएसएनएल के संघर्ष के पीछे 4जी सेवा में पिछड़ना है. देश 5जी की तैयारी में जुटा है तो वहीं बीएसएनएल अब भी 4 जी के लिए संघर्ष कर रहा है. यहां बता दें कि पीएसयू टेलिकॉम कंपनी स्पेक्ट्रम हासिल करने के लिए नीलामी की बोली में हिस्सा नहीं ले सकती हैं. ऐसे में बीते दिनों दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने बीएसएनएल के स्पेक्ट्रम का प्रस्ताव परामर्श के लिए ट्राई के पास भेजा था.

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सरकार का उदासीन रवैया

बीएसएनएल को लेकर सरकार के उदासीन रवैये ने भी कंपनी के संकट को बढ़ाया है. दरअसल, बीएसएनएल बैंकों से लोन लेना चाहती है लेकिन सरकार का तर्क है कि कंपनी अपने स्रोतों से पैसे इकट्ठा कर अपने खर्च का वहन करे. हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट में ऐसी खबरें चल रही हैं कि सरकार बीएसएनएल को संकट से उबारने के नए प्रस्‍ताव पर विचार कर रही है. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद 3 महीने पहले बीएसएनएल की आर्थिक हालत का जायजा लिया था और इस दौरान कंपनी के चेयरमैन ने पीएम को एक प्रेजेंटेशन भी दी थी.

13 सालों से घाटे में

बीएसएनएल पिछले 13 सालों से घाटे में हैं, लेकिन घाटे के अपने आंकड़े नहीं दे रही है. इरठछ का तर्क है कि यह गैर-सूचीबद्ध कंपनी है, इसलिए आंकड़े सार्वजिनक करने की अनिवार्यता नहीं है. बीएसएनएल के आंकड़े तभी सामने आए जब मंत्री ने संसद में प्रश्नों के जवाब दिए. साल 2018 के दिसंबर महीने में तब के दूरसंचार मंत्री मनोज सिन्हा ने संसद को बताया था कि बीएसएनएल का सालाना घाटा वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़कर 7,992 करोड़ रुपये हो गया.

इससे पहले 2016-17 में कंपनी का घाटा 4,786 करोड़ रुपये रहा. इस हिसाब से सिर्फ 1 साल में 3,206 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. कोटक इंस्‍टीट्यूशनल इक्विटीज की रिपोर्ट के मुताबिक बीएसएनएल का ऑपरेशनल यानी परिचालन घाटा दिसंबर 2018 में बढ़कर 90,000 करोड़ रुपये के स्‍तर को पार कर चुका है.

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