WHO Global Air Quality: दुनिया की 99% आबादी गंदी हवा में ले रही है सांस, भारत इस मामले में खराब
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धरती पर मौजूद 797 करोड़ से ज्यादा लोगों में से 99 फीसदी लोग शुद्ध हवा में सांस नहीं ले रहे हैं. यह दावा किया है विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization - WHO) ने. संगठन ने बताया कि उसने दुनिया भर के 117 देशों के 6 हजार से ज्यादा शहरों में हवा की गुणवत्ता की जांच के बाद यह नतीजा निकाला है. पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा दिक्कत है सूक्ष्म पार्टिकुलेट मैटर और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड से. यह समस्या सबसे ज्यादा मध्यम और निम्न आय वाले देशों में है.
यह बेहद डराने वाली बात है, क्योंकि इसी तरह अगर हवा जहरीली होती चली जाएगी, तो कुछ ही सालों में इंसानों को हवा साफ करने वाला केमिकल मास्क लगाकर घूमना होगा. संयुक्त राष्ट्र (UN) की हेल्थ एजेंसी ने कहा कि जीवाश्म ईंधनों का उपयोग, उससे निकलने वाला धुआं और गर्मी ही बड़े कारण हैं गंदी हवा के. जिसकी वजह से लोगों को सांस संबंधी दिक्कतें आ रही हैं. लाखों-करोड़ों लोग समय से पहले मारे जा रहे हैं. जिसे रोका जा सकता है. (फोटोः गेटी)
WHO ने छह महीने पहले ही पूरी दुनिया में हवा की गुणवत्ता को लेकर नए और सख्त गाइडलाइंस जारी किए थे. इसके बाद भी यह हालात हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि हमारी स्टडी में सिर्फ शहर ही शामिल नहीं है. हमनें गांवों और कस्बों की भी स्टडी की है. अब छोटे कस्बों और गांवों में भी वायु गुणवत्ता के मानकों से खराब हवा बह रही है. लोग मजबूर हैं इसी हवा में सांस लेने के लिए. फेफड़ों में पार्टिकुलेट मैटर (PM) जहर की तरह घुल रही है. (फोटोः गेटी)
सबसे बुरी हालात पूर्वी भूमध्यसागर के देशों, दक्षिणपूर्व एशियाई देश और अफ्रीका की है. यानी भारत, चीन जैसे देशों में यह समस्या बहुत ज्यादा है. WHO के पर्यावरण विभाग की प्रमुख डॉ. मारिया नीरा ने कहा कि कोरोना को बर्दाश्त करने के बाद यह बात एक दम नहीं बर्दाश्त की जा सकती कि गंदी हवा की वजह से हर साल 70 लाख लोगों की मौत हो. हम इनकी मौत को रोक सकते हैं. (फोटोः एपी)
डॉ. मारिया ने कहा कि गंदी हवा की वजह से सेहत पर ही असर नहीं पड़ता. इससे लोगों का काम प्रभावित होता है. जिससे कई उनके संस्थानों पर असर पड़ता है. इसका आर्थिक नुकसान भी है. इस स्टडी में खासतौर से PM2.5 और PM10 के स्तरों की जांच की गई है. इसके अलावा पहली बार जमीनी स्तर पर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (Nitrogen Dioxide) की भी जांच की गई है. इससे पहले ऐसी स्टडी साल 2018 में आई थी. (फोटोः गेटी)