इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 20 महीने की बच्ची से बलात्कार के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक ऐसे व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर 20 महीने की बच्ची के साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था। जस्टिस बृज राज सिंह की पीठ ने पीड़िता के प्राइवेट पार्ट पर गंभीर चोटें आने के तथ्य को ध्यान में रखते हुए आरोपी की दूसरी जमानत अर्जी खारिज कर दी। पीठ ने कहा, " ...यह स्पष्ट है कि मेडिकल रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि पीड़िता का प्राइवेट पार्ट फट गया था और योनि से रक्तस्राव पाया गया है, समरी डिस्चार्ज रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि पीड़िता के प्राइवेट पार्ट पर गंभीर चोटें आई थीं, इसीलिए उसे सर्जरी के लिए रेफर किया गया था। यह अपराध बहुत गंभीर प्रतीत होता है क्योंकि अकेले सो रही लगभग 20 महीने की बच्ची के साथ आवेदक ने बलात्कार किया।'' अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के 3 गवाहों के बयानों में मामूली विरोधाभास से आरोपी-आवेदक को मदद नहीं मिलेगी। आवेदक फरवरी 2020 में जेल में बंद है। अदालत के समक्ष आरोपी आवेदक के वकील ने कहा कि किसी ने भी इस घटना को नहीं देखा और शिशु के निजी अंग पर आई चोटें खाट की लोहे की कील के कारण थीं, जिस पर वह सो रही थी। यह भी तर्क दिया गया कि मेडिकल रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि डॉक्टर द्वारा यौन उत्पीड़न की कोई राय नहीं दी गई और बलात्कार की कोई निश्चित राय नहीं दी गई थी और पीड़िता के शरीर पर कोई शुक्राणु भी नहीं पाया गया, इसलिए, अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन मेडिकल रिपोर्ट द्वारा नहीं किया गया। वकील ने आगे तर्क दिया कि पीडब्लू-1 यानी पीड़िता की मां ने कहा है कि संदेह के आधार पर उसने आवेदक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई और इसी तरह के बयान पीडब्लू-2 और पीडब्लू-3 ने भी कोर्ट के सामने दिए हैं। दूसरी ओर राज्य की ओर से उपस्थित एजीए-I ने तर्क दिया कि आवेदक ने नवजात शिशु के साथ बलात्कार किया जब वह अकेली थी और जब उसने शोर मचाया तो उसके परिवार के सदस्य घटनास्थल पर पहुंचे और जैसे ही परिवार के सदस्य पहुंचे, आवेदक घटना स्थल से भाग गया और वहां, पीडब्लू-1 और उसके परिवार के सदस्यों ने देखा कि पीड़ित के निजी अंग से खून बह रहा था। इसके अलावा एजीए ने कोर्ट का ध्यान डिस्चार्ज मेडिकल समरी की ओर आकर्षित किया, जिसमें बताया गया था कि पीड़ित के प्राइवेट पार्ट पर कुछ चोटें हैं। मामले के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए और आरोपों की प्रकृति और पक्षों के वकील द्वारा दी गई दलीलों पर विचार करते हुए अदालत ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया। आवेदक के वकील: अविनाश कुमार श्रीवास्तव, सुनील कुमार यादव