विशेष और अजीबोगरीब परिस्थितियों को छोड़कर अग्रिम जमानत आदेश ट्रायल के अंत तक जारी: इलाहाबाद हाईकोर्ट
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अग्रिम जमानत आदेश ट्रायल के अंत तक जारी रह सकता है, जब तक कि कुछ विशेष या अजीबोगरीब न हों, जो अदालत को अग्रिम जमानत की अवधि को सीमित करना जरूरी बनाती हों। । जस्टिस करुणेश सिंह पवार की पीठ ने निचली अदालत को 13 जुलाई, 2022 को पारित एक आदेश को रद्द करते हुए उक्त टिप्पणी की, जिसमें हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत को नियमित जमानत मानने के लिए एक अभियुक्त द्वारा दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया था।
अभियुक्त के आवेदन को खारिज करते हुए अपने आदेश में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) / एफटीसी- I, गौतमबुद्ध नगर ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत केवल चार्जशीट जमा करने के चरण तक जारी रहेगी। इसी आदेश को चुनौती देते हुए अभियुक्त (जिसके खिलाफ धारा 323, 308, 452, 506 आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया था) उन्होंने यह तर्क देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया कि निचली अदालत का आदेश विकृत और इस न्यायालय के आदेश के विपरीत था।
शुरुआत में, अदालत ने पाया कि आरोपी को हाईकोर्ट ने 17 मार्च, 2020 को कुछ शर्तों के साथ अग्रिम जमानत दी गई थी, यानि: - वह मामले के तथ्यों से परिचित किसी व्यक्ति को कोई प्रलोभन, धमकी नहीं देगा या वादा नहीं करेगा, ताकि उसे ऐसे तथ्यों को अदालत या किसी पुलिस अधिकारी के सामने प्रकट करने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने से रोका जा सके। - वह अभियोजन पक्ष के गवाह पर दबाव/भयभीत नहीं करेगा। - जब तक व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट नहीं दी जाती है, तब तक वह निर्धारित प्रत्येक तिथि पर ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश होगा।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि आवेदक को अग्रिम जमानत देते समय तय की शर्तों ने यह स्पष्ट कर दिया कि हाईकोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत का उद्देश्य ट्रायल के समापन तक काम करना था। इसलिए, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि बिना कोई कारण बताए अभियुक्त के आवेदन को खारिज करने वाला आक्षेपित आदेश विकृत था और रद्द किए जाने योग्य था। इस संबंध में न्यायालय ने सुशीला अग्रवाल और अन्य बनाम राज्य (एनसीटी ऑफ दिल्ली) और अन्य (2020)5 एससीसी 1 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि अग्रिम जमानत अनिवार्य रूप से एक निश्चित अवधि तक सीमित नहीं होनी चाहिए, हालांकि, अगर कोई विशेष या अजीब स्थिति हो जो अदालत को अग्रिम जमानत के कार्यकाल को सीमित करना जरूरी बनाती हो तो ऐसा करने का विकल्प उसके पास है।
नतीजतन, विवादित आदेश को खारिज कर दिया गया और सुशीला अग्रवाल के मामले की रोशनी में एक नया आदेश पारित करने के लिए मामले को वापस निचली अदालत को भेज दिया गया।