क्या ट्रांस महिला घरेलू हिंसा अधिनियम का उपयोग कर सकती है? सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा
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सुप्रीम कोर्ट इस बात की जांच करने के लिए तैयार है कि क्या एक ट्रांसजेंडर महिला, जिसने सेक्स री-असाइनमेंट सर्जरी करवाई है, घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत "पीड़ित व्यक्ति" हो सकती है और उसे घरेलू हिंसा के मामले में अंतरिम भरण-पोषण मांगने का अधिकार है। मामले को 2025 में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर एक अपील में अनुमति दे दी, जिसमें कहा गया था कि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति जिसने लिंग को महिला में बदलने के लिए सर्जरी करवाई है, वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कर सकता है। मार्च 2023 में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति की अपनी पत्नी, एक ट्रांस-महिला को दिए गए गुजारा भत्ते को चुनौती देने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था - “… जिस ट्रांसजेंडर ने सर्जरी करके लिंग को महिला में बदल दिया है, उसे घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 2 (ए) के अर्थ के तहत एक पीड़ित व्यक्ति कहा जाना चाहिए।" हाईकोर्ट ने कहा था कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 2 (ए) के तहत 'पीड़ित व्यक्ति' शब्द की व्यापक व्याख्या की जानी चाहिए क्योंकि अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाना है। इस फैसले के खिलाफ शख्स ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अपीलकर्ता ने 2016 में प्रतिवादी, एक ट्रांसजेंडर महिला से शादी की, जिसने लिंग परिवर्तन सर्जरी करवाई थी। प्रतिवादी ने डीवी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया और अंतरिम भरण-पोषण की मांग की। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने उसे गुजारा भत्ता दिया और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने अपील में इसे बरकरार रखा। इसके बाद अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अपीलकर्ता ने तर्क दिया था कि प्रतिवादी 'पीड़ित व्यक्ति' की परिभाषा में नहीं आता है क्योंकि इसमें केवल घरेलू संबंधों में महिलाएं शामिल हैं। उन्होंने आगे तर्क दिया कि प्रतिवादी के पास ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 7 के तहत कोई प्रमाण पत्र नहीं है और इसलिए उसे डीवी एक्ट के तहत एक महिला के रूप में नहीं माना जा सकता है। हाईकोर्ट के समक्ष सवाल यह था कि क्या एक ट्रांसजेंडर महिला जिसने लिंग परिवर्तन सर्जरी करवाई है, उसे डीवी अधिनियम की धारा 2 (ए) के तहत "पीड़ित व्यक्ति" माना जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा कि डीवी अधिनियम की धारा 2(एफ) जो घरेलू संबंध को परिभाषित करती है, लिंग तटस्थ है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम की धारा 2(के) ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को परिभाषित करती है, भले ही उन्होंने लिंग परिवर्तन सर्जरी करवाई हो। अधिनियम की धारा 7 सर्जरी कराने वाले ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपना लिंग बदलने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दायर करने में सक्षम बनाती है। हाईकोर्ट ने कहा कि "महिला" शब्द डीवी अधिनियम की धारा 2(ए) के आयाम को नियंत्रित करता है। अदालत ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के फैसले पर भरोसा किया और कहा कि जिन ट्रांसजेंडर व्यक्तियों ने लिंग परिवर्तन सर्जरी करवाई है, वे अपनी पसंद के लिंग के हकदार हैं। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि डीवी एक्ट का उद्देश्य घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को प्रभावी सुरक्षा प्रदान करना है। इस प्रकार, पीड़ित व्यक्तियों की परिभाषा की व्याख्या यथासंभव व्यापक शब्दों में की जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 2(ए) में महिला शब्द अब महिलाओं और पुरुषों के बाइनरी तक सीमित नहीं है और इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी शामिल हैं जिन्होंने लिंग परिवर्तन सर्जरी करवाई है। अपीलकर्ता ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील की है कि प्रतिवादी की लिंग पहचान को 'महिला' में बदलने के लिए सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्रतिवादी को कोई प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया है, और इसलिए प्रतिवादी को घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत एक महिला के रूप में नहीं माना जा सकता है। अपील में यह भी तर्क दिया गया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के प्रावधान लिंग विशिष्ट हैं और विधायिका ने आज तक कानून के दायरे का विस्तार नहीं किया है।