तर्क की प्रक्रिया के जरिए जिस त्रुटि का पता लगाया जाना है, उसे रिकॉर्ड के समक्ष स्पष्ट त्रुटि नहीं कहा जा सकताः सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक त्रुटि जो खुद स्पष्ट नहीं है और तर्क की प्रक्रिया के जरिए जिसका पता लगाया जाना है, उसे रिकॉर्ड के समक्ष स्पष्ट त्रुटि नहीं कहा जा सकता। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा, रिकॉर्ड के समक्ष एक त्रुटि, ऐसी त्रुटि होनी चाहिए, जा रिकॉर्ड को देखने मात्र से ही स्पष्ट हो जाए और इसके लिए उन बिंदुओं पर तर्क की किसी लंबी प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, जहां दो राय हो सकती हैं। अदालत ने एक मध्यस्थता मामले (जेमिनी बे ट्रांसक्रिप्शन प्राइवेट लिमिटेड बनाम इंटीग्रेटेड सेल्स सर्विस लिमिटेड और अन्य) में अपने फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए यह बात कही। इसमें कहा गया है कि पुनर्विचार में लिए गए सभी आधारों पर विस्तार से चर्चा की गई है और पुनर्विचार याचिकाकर्ता के दावे को स्वीकार नहीं करते हुए निष्कर्ष दिए गए हैं। अदालत ने यह भी कहा कि पुनर्विचार करने की शक्ति का प्रयोग अपीलीय शक्ति के रूप में नहीं किया जा सकता है और इसे आदेश XLVII नियम 1 सीपीसी के दायरे तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। "इस न्यायालय ने 10.08.2021 के अपने फैसले में प्रत्येक तर्क पर विचार किया है, यदि तर्क स्वीकार किए जाते हैं तो उठाए गए और तय किए गए बिंदुओं पर एक अलग राय व्यक्त की जाएगी, जिससे हमें डर है कि वे आदेश XLVII नियम 1 सीपीसी के तहत निर्धारित रूपरेखा के अंतर्गत नहीं आते हैं, जो रिकॉर्ड पर स्पष्ट त्रुटि से संबंधित है। पुनर्विचार शक्ति लागू करने के अन्य आधार न तो मौजूद हैं और न ही वर्तमान याचिकाओं में उठाए गए हैं।"