'फेक' एनकाउंटर: सुप्रीम कोर्ट याचिकाकर्ताओं के साथ रिकॉर्ड साझा करने की गुजरात सरकार की आपत्ति पर विचार करेगा
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सुप्रीम कोर्ट एक मामले में जहां 2002 और 2007 के बीच गुजरात पुलिस द्वारा किए गए 22 कथित 'फेक एकनाउंटर' की निगरानी कर रहा है, उसने सोमवार को संकेत दिया कि वह तीन एनकाउंर के रिकॉर्ड याचिकाकर्ताओं के साथ साझा करने में गुजरात राज्य द्वारा व्यक्त की गई आपत्ति पर विचार करेगा। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज, जस्टिस एचएस बेदी द्वारा दायर की गई रिपोर्ट में गुजरात में कथित समय सीमा के भीतर एनकाउंटर हत्याओं के सत्रह मामलों में से तीन में प्रथम दृष्टया गड़बड़ी के सबूत पाए गए। जस्टिस बेदी द्वारा 26 फरवरी, 2018 को सीलबंद लिफाफे में सौंपी गई रिपोर्ट में उन्होंने मामलों में शामिल नौ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश की। सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च, 2012 को जस्टिस बेदी, पूर्व एससी न्यायाधीश को निगरानी समिति के अध्यक्ष के रूप में गुजरात सरकार द्वारा गठित विशेष कार्य बल (एसटीएफ) द्वारा हिरासत में की गई मौतों की जांच की निगरानी के लिए नियुक्त किया। रिपोर्ट केवल उन 17 मामलों की है, जो विशेष रूप से एसटीएफ को भेजे गए। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप पत्रकार बी जी वर्गीज (स्वर्गीय), कवि-गीतकार जावेद अख्तर और सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी द्वारा दायर याचिकाओं में आया, जिन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस एनकाउंटर फेक और राज्य-प्रायोजित थे। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमोउल्लाह की खंडपीठ ने सोमवार को यह सुनिश्चित करने के लिए मामले को सूचीबद्ध किया कि गुजरात राज्य ने अपने आदेश दिनांक 18.01.2023 का अनुपालन किया। उक्त आदेश में खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा था कि वह इन तीनों मुठभेड़ों से संबंधित रिकॉर्ड निकाल कर उसकी प्रतियां बनाकर हमारे सामने सभी पक्षों को प्रसारित करे। साथ ही सुविधा के लिए तीनों एनकाउंटर के लिए अलग-अलग पेपर बुक उपलब्ध कराने को भी कहा था। भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्य सरकार की ओर से पेश होकर खंडपीठ को सूचित किया कि उसने न्यायालय के आदेश का अनुपालन किया। हालांकि, उन्होंने याचिकाकर्ता के साथ रिकॉर्ड साझा करने पर आपत्ति जताई। 'फेक' एनकाउंटर में अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने इस संबंध में सॉलिसिटर जनरल की दलील का समर्थन किया। उसी पर विचार करते हुए खंडपीठ ने आदेश में दर्ज किया कि 'इस मुद्दे को संबोधित करना' आवश्यक होगा। ऐसा करने के लिए इसने मामले को 12 जुलाई, 2023 को नियमित बोर्ड में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। मेहता ने प्रस्तुत किया कि राज्य सरकार को सीआरपीसी के प्रावधान के तहत की गई जांच के रिकॉर्ड को याचिकाकर्ताओं के साथ साझा नहीं करने का अनुरोध करने वाले अधिकारी से पत्र प्राप्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड को संभावित अभियुक्त, कोर्ट और पब्लिक प्रोसिक्यूटर के साथ साझा किया जा सकता है। मेहता ने तर्क दिया कि किसी मकसद से अजनबी होने के कारण याचिकाकर्ताओं को इन दस्तावेजों तक पहुंच नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा, "ये दो याचिकाएं दूसरे राज्यों में रहने वाले लोगों की हैं, उन्होंने विशेष अवधि की पहचान की, कुछ एनकाउंटर की पहचान की... वे अन्य राज्यों में मुठभेड़ों से संबंधित नहीं हैं ... याचिका के पीछे के ठिकाने और मकसद के बारे में गंभीर संदेह है।" जस्टिस कौल ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा, ''जांच किसने नियुक्त की?'' मेहता ने जवाब दिया कि सीमित मुद्दा उन याचिकाओं के संबंध में है, जिन पर वह हमला करना चाहते हैं। जस्टिस कौल ने उनसे जस्टिस बेदी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के कार्यान्वयन के संबंध में राज्य सरकार के रुख के बारे में पूछा, “यह जांच इस न्यायालय द्वारा निर्देशित की गई… इस अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा जांच की गई। मैं नहीं जानता कि आपका स्टैंड यह है कि जो रिपोर्ट आई है उसे लागू किया जाना चाहिए या नहीं किया जाना चाहिए। स्टैंड क्या है?” मेहता ने जवाब दिया, "रिपोर्ट पर हमें कुछ कहना है।" जस्टिस कौल ने कहा, 'मैं मान रहा हूं कि आप रिपोर्ट को लागू करने का विरोध कर रहे हैं।' रोहतगी ने प्रस्तुत किया, "मैं भी हूं।" सॉलिसिटर जनरल ने बेंच से लोकस के मुद्दे पर पक्षकारों को बहुत ध्यान से सुनने का अनुरोध किया। उन्होंने प्रस्तुत किया, "माई लॉर्ड हम सभी को सुन सकते हैं कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री को याचिकाकर्ताओं के साथ साझा किया जाना है या नहीं। " रोहतगी ने तर्क दिया कि रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के बाद याचिकाकर्ता की कोई भूमिका नहीं है; यह अब अदालत और आरोपी अधिकारियों के बीच है। उन्होंने याचिकाकर्ताओं के साथ तीनों एनकाउंटर के रिकॉर्ड साझा करने पर कड़ा विरोध जताया। रोहतगी ने कहा, "मुझे बहुत गंभीर आपत्ति है। एक बार रिपोर्ट अब अदालत और मेरे बीच है। ऐसी स्थिति नहीं हो सकती जहां सभी दस्तावेज किसी और के साथ साझा किए जाएं जो पीपी नहीं है।" मेहता ने आगे कहा, “ऐसे निर्णय हैं जो कहते हैं कि अजनबियों की इन दस्तावेजों तक पहुंच नहीं हो सकती… यह चुनिंदा सार्वजनिक हित है। रिकॉर्ड साझा करने के लिए यह प्रासंगिक विचार होगा। याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र राज्य में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश निर्धारित किए थे कि पुलिस एनकाउंटर में हत्या के मामलों में क्या किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एफआईआर दर्ज करने की आवश्यकता होती है और उसके बाद स्वतंत्र एजेंसी को जांच करनी होती है। अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट नित्या रामकृष्णन ने पीयूसीएल के फैसले में निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करने के भूषण के तर्क का समर्थन किया। खंडपीठ की राय थी कि उसे मामले में सभी पक्षों द्वारा दी गई दलीलों को सुनना है और इसे जुलाई, 2023 में सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया गया।