विलफुल डिफॉल्टर्स पर फर्स्ट कमेटी अपने आदेश में इसकी संरचना का उल्लेख करने के लिए बाध्य नहीं: तेलंगाना हाईकोर्ट

Oct 19, 2022
Source: https://hindi.livelaw.in/

तेलंगाना हाईकोर्ट की जस्टिस के लक्ष्मण की बेंच ने कनुमुरु रमा देवी बनाम मेसर्स आरईसी लिमिटेड के मामले में दायर रिट याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि आरबीआई मास्टर सर्कुलर के खंड 3 (ए) के अनुसार विलफुल डिफॉल्टर्स दिनांक 01.07.2015 पर फर्स्ट कमेटी अपने आदेश में इसके गठन और संरचना का खुलासा करने के लिए बाध्य नहीं। इसके अलावा, सीजीएम (कानून) को लोन देने बैंक की ओर से फर्स्ट कमेटी की ओर से हस्ताक्षर करने और आदेश जारी करने के लिए अधिकृत किया जा सकता है।
पृष्ठभूमि तथ्य एमएस. इंड भारत पावर (मद्रास) लिमिटेड ("इंड भारत") ने आरईसी लिमिटेड ("प्रतिवादी"), एक्सिस बैंक और पीएफएल से सस्थावनल्लूर और पल्लक्कुरिची गांवों, सत्तनकुलम तालुक में 660 मेगावाट कोयला आधारित थर्मल पावर प्रोजेक्ट, तमिलनाडु राज्य के तूतीकोरिन जिला के कार्यान्वयन के लिए क्रेडिट सुविधाओं का लाभ उठाया। प्रासंगिक समय में याचिकाकर्ता भारत के निदेशक है। इसके बाद प्रतिवादी ने इंड भारत द्वारा अपने धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया। तदनुसार प्रतिवादी ने विलफुल डिफॉल्टरों पर आरबीआई मास्टर सर्कुलर दिनांक 01.07.2015 (आरबीआई सर्कुलर) के अनुसार दिनांक 09.01.2019 को कारण बताओ नोटिस (एससीएन) जारी किया कि याचिकाकर्ताओं को 'विलफुल डिफॉल्टर्स' के रूप में क्यों घोषित नहीं किया जाना चाहिए। एससीएन ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ताओं ने समूह की अन्य कंपनियों की देनदारी/दायित्वों को पूरा करने के लिए उधार ली गई धनराशि को डायवर्ट किया और उसका दुरुपयोग किया। 03.05.2022 को याचिकाकर्ताओं ने एससीएन को अपनी प्रतिक्रिया दी।
फर्स्ट कमेटी ने 08.06.2022 और 14.06.2022 को बैठक की और निष्कर्ष निकाला कि 660 मेगावाट कोयला आधारित ताप विद्युत परियोजना के कार्यान्वयन के उद्देश्य से लोन स्वीकृत किया गया। याचिकाकर्ताओं ने लोन की अदायगी में चूक की और अकाउंट को 31.12.2016 को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति घोषित कर दिया गया। याचिकाकर्ता सीधे तौर पर समूह की कंपनियों को धन के डायवर्जन और हेराफेरी के लिए जिम्मेदार है। जिसके कारण परियोजना का निर्माण नहीं हो सका और ऋणदाताओं द्वारा दिया गया लोन एनपीए हो गया। डिफ़ॉल्ट जानबूझकर पाया गया। इस प्रकार फर्स्ट कमेटी ने अपने आदेश दिनांक 16.06.2022 द्वारा याचिकाकर्ताओं को इरादतन चूककर्ता घोषित किया।
याचिकाकर्ताओं ने दिनांक 16.06.2022 के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं की दलीलें याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि आरबीआई सर्कुलर के खंड (3) (ए) के अनुसार, फर्स्ट कमेटी का नेतृत्व कार्यकारी निदेशक या समकक्ष होना चाहिए। इसमें जीएम/डीजीएम रैंक के दो अन्य सीनियर अधिकारी शामिल हों। हालांकि, आदेश दिनांक 16.06.2022 ने ऐसी कमेटी के गठन का खुलासा नहीं किया। आरईसी लिमिटेड के लिए और उसकी ओर से सीजीएम (कानून) द्वारा आदेश पर हस्ताक्षर किए गए। सीजीएम उक्त आदेश पर हस्ताक्षर करने के लिए अधिकृत नहीं है और फर्स्ट कमेटी के पास सीजीएम (कानून) सहित किसी भी अधिकारी को शक्ति सौंपने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए आदेश अवैध है और रद्द किए जाने योग्य है।
उत्तरदाताओं की दलीलें प्रतिवादी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता हर स्तर पर विलफुल डिफॉल्ट की कार्यवाही को रोकने के लिए होड़ में है। फर्स्ट कमेटी ने सीजीएम को हस्ताक्षर करने और आदेश जारी करने के लिए अधिकृत किया। आदेश दिनांक 16.06.2022 में कमेटी के गठन का प्रस्ताव करने की आवश्यकता नहीं है। प्रासंगिक खंड विलफुल डिफॉल्टर्स पर आरबीआई मास्टर सर्कुलर का खंड 3 (ए) दिनांक 01.07.2015 "3 (ए) प्रासंगिक समय पर उधार लेने वाली कंपनी और उसके प्रमोटर/पूर्णकालिक निदेशक की ओर से जानबूझकर चूक के साक्ष्य की जांच कार्यकारी या समकक्ष की अध्यक्षता वाली कमेटी द्वारा की जानी चाहिए और इसमें जीएम/डीजीएम का पद के दो अन्य सीनियर अधिकारी शामिल हों।" न्यायालय का निर्णय बेंच ने कहा कि आरबीआई सर्कुलर के क्लॉज (3) (ए) के अनुसार, फर्स्ट कमेटी का नेतृत्व कार्यकारी निदेशक या समकक्ष करेगा और इसमें जीएम / डीजीएम रैंक के दो अन्य सीनियर अधिकारी शामिल होंगे। यह नहीं कहता है कि फर्स्ट कमेटी के आदेश में ऐसी समिति का गठन शामिल होगा। आदेश दिनांक 16.06.2022 में फर्स्ट कमेटी द्वारा दिनांक 08.06.2022 और 14.06.2022 को हुई बैठकों का विशेष उल्लेख है। कारण विशेष रूप से आदेश दिनांक 16.06.2022 में निर्दिष्ट किए गए। कोर्ट ने कहा, "इस प्रकार, पूर्वोक्त खंड (3) (ए) में कोई उल्लेख नहीं कि आदेश उक्त कमेटी के गठन और संरचना को संदर्भित करेगा। आक्षेपित आदेश पर सीजीएम (कानून) द्वारा हस्ताक्षर किए गए। उक्त आदेश में ही यह विशेष रूप से है उल्लेख किया कि "कमेटी ने अधोहस्ताक्षरी को इस आदेश पर हस्ताक्षर करने और जारी करने के लिए अधिकृत किया। इसलिए सीजीएम (कानून) ने प्रतिवादी के लिए और उसकी ओर से आदेश पर हस्ताक्षर किए। आरबीआई के मास्टर सर्कुलर दिनांक 01.07.2015 के अनुसार कोई रोक नहीं है या प्रतिवादी के मुख्य महाप्रबंधक (कानून) को अधिकृत करने वाला निषेध है, इसलिए हस्ताक्षर करें और उक्त आदेश जारी करें।" आगे यह देखा गया कि फर्स्ट कमेटी की बैठक 08.06.2022 और 14.06.2022 को हुई और जांच के बाद याचिकाकर्ताओं को जानबूझकर चूक का दोषी पाया गया। जैसा कि आरोप लगाया गया, कमेटी द्वारा शक्तियों का कोई प्रत्यायोजन नहीं किया गया। इसके अलावा, आरबीआई सर्कुलर के खंड 3 (सी) में कहा गया कि फर्स्ट कमेटी द्वारा पारित आदेश की समीक्षा समिति द्वारा 'समीक्षा' की जानी चाहिए और उक्त समीक्षा समिति द्वारा इसकी पुष्टि के बाद ही आदेश 'अंतिम' होगा। पीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता फर्स्ट कमेटी द्वारा पारित आदेश से व्यथित हैं तो उन्हें रिट याचिका दायर करने के बजाय समीक्षा समिति से संपर्क करना चाहिए। यह माना गया कि याचिकाकर्ता विलफुल डिफॉल्ट को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया गया। याचिकाकर्ताओं को 15 दिनों के भीतर समीक्षा समिति के समक्ष प्रतिनिधित्व करने की स्वतंत्रता दी गई।