गैंगस्टर एक्ट केस - इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोग्य सांसद अफजाल अंसारी की दोषसिद्धि पर रोक लगाने की याचिका पर आदेश सुरक्षित रखा
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को अयोग्य सांसद अफ़ज़ल अंसारी द्वारा दायर एक आवेदन पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया, जिसमें 2007 के गैंगस्टर एक्ट मामले में उनकी दोषसिद्धि (अपील की लंबित अवधि के दौरान) पर रोक लगाने की मांग की गई थी, जिसमें अफ़ज़ल अंसारी को ग़ाज़ीपुर एमपी/एमएलए कोर्ट द्वारा 4 साल जेल की सजा सुनाई गई थी। जस्टिस राज बीर सिंह की पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। गौरतलब है कि अंसारी और उनके भाई व यूपी के पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत मामला वर्ष 1996 में विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी नंदकिशोर रूंगटा के अपहरण में शामिल होने और वर्ष 2005 में भारतीय जनता पार्टी के विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद दर्ज किया गया था। गौरतलब है कि दोषी ठहराए जाने के दो दिन बाद अफजल अंसारी को संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (ई) सहपठित जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 (3) में निहित प्रावधानों के आधार पर मामले में दोषी ठहराए जाने की तारीख से लोकसभा के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया। हालांकि, इस अयोग्यता को पलटा जा सकता है अगर हाईकोर्ट उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगा देता है या यह अंसारी के पक्ष में दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अपील का निर्णय करने के लिए आगे बढ़ता है। यही वजह है कि अंसारी ने अपनी दोषसिद्धि पर रोक लगाने के लिए अलग याचिका दायर की है। हाईकोर्ट के समक्ष अपील हाईकोर्ट के समक्ष अपनी अपील में अंसारी ने कहा है कि उन्हें दोषी ठहराते समय ट्रायल कोर्ट रिकॉर्ड में उपलब्ध सबूतों की सही ढंग से सराहना नहीं कर सका और उसने बचाव पक्ष के अपीलकर्ता के बयान की भी अनदेखी की। अपील में यह भी कहा गया कि ट्रायल कोर्ट ने मुख्य पूछताछ के दौरान दर्ज किए गए गवाहों के बयानों का हवाला दिया और उसी के साक्ष्य मूल्य का विश्लेषण किए बिना इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अपीलकर्ता (अंसारी) उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एंड एंटी सोशल एक्टिविटीज (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के 3 (1) धारा के तहत दोषी था। अपील में आगे कहा गया, "ट्रायल जज ने इस तथ्य पर भी विचार नहीं किया कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध सबूतों से उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की धारा 3 (1) के तहत अपीलकर्ता और जांच अधिकारी के खिलाफ स्पष्ट रूप से कोई अपराध नहीं किया गया। क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान स्वीकार किया कि इलाके में किसी ने भी जांच से पहले या बाद में उसके खिलाफ कोई शिकायत नहीं की है।" अपील में यह भी कहा गया कि ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता के खिलाफ अन्य मुकदमे में की गई टिप्पणियों को ध्यान में रखा, जिसमें उसे मौजूदा मामले में दोषी ठहराने के लिए बरी कर दिया गया, जो कानून के तहत अस्वीकार्य है। मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए अपील में कई अन्य दलीलें भी दी गई। अपील दाखिल करने के संबंध में यूपी सरकार को नोटिस दिया गया। सीनियर एडवोकेट जीएस चतुर्वेदी, एडवोकेट उपेंद्र उपाध्याय और एडवोकेट अजय श्रीवास्तव अंसारी की ओर से पेश हुए।