हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Jun 26, 2023
Source: https://hindi.livelaw.in

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (19 जून, 2023 से 23 जून, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र। कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में एक किशोर की सजा को बरकरार रखा, जिस पर आरोप था कि उसने एक पब्लिक एरिया में एक नाबालिग लड़की पर कथित तौर पर हमला किया था। उस समय वह अपनी मां के साथ थी। जस्टिस सिद्धार्थ रॉय चौधरी की सिंगल जज बेंच ने नाबालिग की गवाही के आधार पर दोषसिद्धि को बरकरार रखा और कहा कि पुलिस द्वारा पीड़िता से पूछताछ न करने का ऐसी परिस्थितियों में कोई परिणाम नहीं होगा। कलकत्ता हाईकोर्ट ने दोहराया कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी एक्ट) की धारा 16 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र की चुनौती को खारिज करने वाले मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत उपाय केवल मध्यस्थ के अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र में गंभीर कमी, या असाधारण परिस्थितियों, या दूसरे पक्ष की ओर से 'बुरे विश्वास' के आधार पर ही लागू किया जा सकता है।जस्टिस बिवास पटनायक की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर पुनरीक्षण आवेदन को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसे मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आदेश के ‌खिलाफ दायर किया गया था, जहां उसने ए एंड सी एक्ट की धारा 16 के तहत याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया था।हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास एक्ट, 2006 (एमएसएमईडी एक्ट) के तहत सुविधा परिषद द्वारा नियुक्त मध्यस्थ का यह अनिवार्य कर्तव्य है कि वह पार्टियों को मध्यस्थ अवॉर्ड की हस्ताक्षरित प्रतियां जारी करे, इस तथ्य के बावजूद कि पार्टियों ने कार्यवाही का विरोध किया है या एकतरफा कार्यवाह की गई है। अदालत ने संबंधित पक्षों को परिषद द्वारा प्रमाणित अवॉर्ड की एक प्रति प्रदान करने की सुविधा परिषद की प्रथा की निंदा की है। अदालत ने कहा कि यह मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी एक्ट) की धारा 31(5) के साथ-साथ एमएसएमईडी एक्ट के तहत अनिवार्य प्रक्रिया के अनुरूप नहीं है। इसमें कहा गया है कि ए एंड सी एक्ट की धारा 31(5) के प्रावधानों के अनुसार मध्यस्थ अवॉर्ड स्वयं मध्यस्थ द्वारा पार्टियों को उपलब्ध कराया जाना है केरल हाईकोर्ट ने माना कि दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट पहनने से छूट पाने के लिए बीमारी कोई आधार नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि चूंकि उनका इलाज चल रहा है, इसलिए वे हेलमेट सहित अपने सिर पर भारी वस्तुएं नहीं रख सकते। याचिकाकर्ताओं ने राज्य में सड़कों पर हाल ही में एआई निगरानी कैमरों की स्थापना के आलोक में अदालत का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की प्रार्थना पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि किसी को भी दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट पहनने से छूट नहीं दी जा सकती बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि एक बार जब एक सुरक्षित लेनदार सरफेसी अधिनियम, 2002 की धारा 13(2) के तहत डिमांड नोटिस जारी करता है, तो सिविल कोर्ट का क्षेत्राधिकार वर्जित हो जाता है, और नोटिस को कोई भी चुनौती ऋण वसूली न्यायाधिकरण ( डीआरटी) के क्षेत्र में आती है। जस्टिस एमएस जावलकर ने एक उधारकर्ता के दीवानी मुकदमे को खारिज कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बैंक ने ऋण खाते को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के रूप में वर्गीकृत करते समय ऋणदाताओं और उचित ऋण अभ्यास संहिता के लिए उचित व्यवहार संहिता पर दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है, यह देखते हुए कि उधारकर्ता डीआरटी के समक्ष बैंक के वसूली मुकदमे में बचाव में इन आधारों को उठा सकता है। मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि "अस्पृश्यता" केवल जाति आधारित प्रथा नहीं, बल्कि इसमें सामाजिक बहिष्कार की सभी प्रथाएं शामिल हैं, जिनका आधार पवित्रता/प्रदूषण और पदानुक्रम/अधीनता के अनुष्ठानिक विचारों में है। अदालत ने कहा, "विशिष्ट जाति-आधारित प्रथा से परे जाकर 'अस्पृश्यता' में सामाजिक बहिष्कार की सभी प्रथाएं शामिल हैं जिनका आधार पवित्रता/प्रदूषण और पदानुक्रम/अधीनता के अनुष्ठानिक विचारों में है।" मेघालय हाईकोर्ट ने नाबालिग पर यौन उत्पीड़न से संबंधित पॉक्सो एक्ट की धारा 3 और 4 के तहत अपराध के लिए दर्ज एफआईआर रद्द करते हुए माना कि 16 वर्षीय किशोर यौन संबंध के संबंध में सचेत निर्णय लेने में सक्षम है। जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह की पीठ ने कहा, "इस न्यायालय का उस आयु वर्ग (लगभग 16 वर्ष की आयु के नाबालिग का संदर्भ) के किशोर के शारीरिक और मानसिक विकास को देखते हुए यह तर्कसंगत मानेगा कि ऐसा व्यक्ति संभोग के वास्तविक कार्य में अपनी भलाई के संबंध में सचेत निर्णय लेने में सक्षम है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 (डीवी एक्ट) के तहत राहत मांग सकती है। जस्टिस जीए सनप ने घरेलू हिंसा मामले में अपनी पत्नी के लिए गुजारा भत्ता बढ़ाने के सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ व्यक्ति के पुनर्विचार आवेदन को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा, "... भले ही तर्क के लिए यह मान लिया जाए कि अनावेदक ने आवेदक को तलाक दे दिया है, डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत शुरू की गई कार्यवाही में उसे भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता है।” केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेश को बरकरार रखा जिसमें कहा गया था कि बाल देखभाल अवकाश (सीसीएल) सुविधा को केवल दो 'सबसे बड़े' जीवित बच्चों तक ही सीमित नहीं माना जा सकता, खासकर जब पहले दो बच्चों के संबंध में ऐसी सुविधा का लाभ नहीं उठाया गया हो। इलाहाबाद ‌हाईकोर्ट ने कहा है कि सेल डीड की फोटोकॉपी को सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 145 के साथ पठित प्रांतीय लघु वाद न्यायालय अधिनियम, 1887 की धारा 17 के प्रयोजनों के लिए ज़मानत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। जस्टिस नीरज तिवारी की पीठ ने कहा कि दोनों प्रावधानों के प्रयोजनों के लिए, एक ज़मानतदार ऐसी प्रकृति का होना चाहिए, जिसे आवश्यकता पड़ने पर बेचा जा सकता है और चूंकि, सेल डीड की फोटोकॉपी के आधार पर, संपत्ति की बिक्री नहीं हो सकती है, इसलिए ऐसी जमानत स्वीकार नहीं की जा सकती। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि कथित अवमाननाकर्ता के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने से इनकार करने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ एक इंट्रा-कोर्ट अपील सुनवाई योग्य नहीं है। जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस विकास बधवार की पीठ ने आगे कहा कि अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 19 के तहत अवमाननाकर्ता के खिलाफ अवमानना कार्यवाही को समाप्त करने के खिलाफ कोई अपील सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि इसका समाधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उपलब्‍ध है। जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि एक बार राज्य भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1990 की धारा 11 के तहत अवार्ड दिया गया है तो वही अंतिम है और पार्टियों पर बाध्यकारी है। इसमें स्पष्ट किया गया कि कलेक्टर के पास अवार्ड पारित होने के बाद उसे वापस लेने या उस पर पुनर्विचार करने का कोई अधिकार नहीं है। जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस राजेश सेखरी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिन्होंने कलेक्टर भूमि अधिग्रहण (एसडीएम), गंदोह के आदेश पर सवाल उठाया, जिसके तहत अंतिम अवार्ड के संदर्भ में याचिकाकर्ताओं के पक्ष में किए गए भुगतान की मांग की गई, जो याचिकाकर्ताओं से वसूला गया। केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि अगर लोडिंग और अनलोडिंग के काम में कुशल व्यक्तियों की सहायता की आवश्यकता होती है, तो एक नियोक्ता अपेक्षित कौशल या मशीनरी वाले व्यक्तियों को नियुक्त कर सकता है और नियोक्ता का यह अधिकार केरल हेडलोड वर्कर्स अधिनियम, 1978 की धारा 9 ए के प्रावधान के तहत सुरक्षित है। सिंगल बेंच के जस्टिस एन नागरेश ने कहा, “धारा 9ए का प्रावधान यह स्पष्ट कर देगा कि ऐसे कार्यों के संबंध में जिन्हें कुशल व्यक्तियों की सहायता की आवश्यकता होती है और जिन्हें उचित परिश्रम के साथ किया जाना है या मशीनरी की सहायता की आवश्यकता है, ऐसे कार्य नियोक्ता द्वारा ऐसे व्यक्तियों को शामिल करके किए जा सकते हैं कौशल या मशीनरी द्वारा, जैसा भी मामला हो। यह याचिकाकर्ता का विशिष्ट मामला है कि प्रश्न में ट्रांसफार्मर को एक मशीनरी का उपयोग करके अनलोड किया जा रहा है। मशीनरी के परिवहन के लिए उचित परिश्रम की आवश्यकता होती है और इसे कुशल श्रमिकों द्वारा किया जाना चाहिए। धारा 9ए के प्रावधान के मद्देनजर, याचिकाकर्ता को मशीनरी और कुशल श्रमिकों का उपयोग करके काम कराने का अधिकार है बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि सिर्फ इसलिए कि ट्रक पर एक गैस कंपनी का नाम लिखा था और इसका इस्तेमाल गैस सिलेंडरों के परिवहन के लिए किया गया था, इसका मतलब यह नहीं है कि दुर्घटना के समय ट्रक वास्तव में गैस सिलेंडर ले जा रहा था। अदालत ने पाया कि नीति शर्तों का उल्लंघन साबित नहीं किया जा सका और इस तरह बीमा कंपनी को मोटर दुर्घटना में मृतक के परिवार को मुआवजा देने का निर्देश दिया। कलकत्ता हाईकोर्ट की एक पूर्ण पीठ ने मंगलवार को कहा कि गैर-सरकारी शैक्षिक संस्थान कर्मचारी (मृत्यु सह सेवानिवृत्ति लाभ) योजना, 1981, जो 1 अप्रैल, 1981 को और से प्रभावी हुई, के लागू होने से पहले सेवानिवृत्त या मृत कर्मचारी की अविवाहित/विधवा बेटी को पारिवारिक पेंशन दी जा सकती है। ज‌स्टिस रवींद्रनाथ सामंत, जस्टिस शम्पा सरकार और जस्टिस हरीश टंडन की पीठ ने (i) मृत सहायक अध्यापक की विधवा पुत्री, (ii) एक सेवानिवृत्त (अब मृतक) हाई स्कूल क्लर्क की विधवा बेटी और (iii) एक सेवानिवृत्त (अब मृतक) सहायक शिक्षक की अविवाहित और विकलांग बेटी को पारिवारिक पेंशन देने से संबंधित तीन याचिकाओं के संबंध में एक संदर्भ का जवाब देते हुए यह टिप्पणी की। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम 1956 के तहत, पिता की मृत्यु के बाद माता नाबालिग बच्चों के प्राकृतिक अभिभावक की भूमिका ग्रहण करती है। कोर्ट ने कहा कि हालांकि, मां का कस्टडी का अधिकार पूर्ण नहीं है, लेकिन बच्चों के कल्याण पर निर्भर है और यदि उचित कार्यवाही के दौरान, वह बच्चों के कल्याण को सुनिश्चित करने में अक्षम या अक्षम पाई जाती है, तो वह कस्टडी बनाए रखने का अधिकार खो सकती है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने पुलिस या शिकायतकर्ता द्वारा किए गए अनुरोध पर पुलिस को असंज्ञेय मामलों की जांच करने की अनुमति देने के आदेश जारी करते समय न्यायिक मजिस्ट्रेटों के लिए सख्ती से पालन करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। अदालत ने मजिस्ट्रेट अदालतों को चेतावनी जारी की है कि निर्देश से किसी भी विचलन को यह माना जाएगा कि मजिस्ट्रेट अनुचित आदेश पारित करने की अपनी कठोर कार्रवाई से मामलों की विशाल लंबितता में योगदान दे रहे हैं और इसे गंभीरता से देखा जाएगा। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया कि प्रत्येक महिला, चाहे उसकी रोजगार स्थिति कुछ भी हो, मातृत्व अवकाश की हकदार है। कोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश का उद्देश्य मातृत्व की गरिमा की रक्षा करना और महिला और उसके बच्चे दोनों की भलाई सुनिश्चित करना है। जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की पीठ ने टिप्पणी की, " वर्तमान मामले में प्रतिवादी अग्रिम गर्भावस्था के समय एक दैनिक वेतन भोगी महिला कर्मचारी है, उसे कठिन श्रम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह न केवल उसके स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए बल्कि बाल स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता। मातृत्व अवकाश प्रतिवादी का एक मौलिक मानव अधिकार है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता, इसलिए स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता की कार्रवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 29 और 39डी का उल्लंघन है।" कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल राज्य परिवहन निगम (WBSTC) को 2007 में WBSTC बस से सड़क दुर्घटना में मारी गई एक नाबालिग लड़की के परिवार को 2 लाख का मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया। पीड़ितों के माता-पिता ने मोटर वाहन दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के एक आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें उन्हें केवल 15,000 रुपये का मुआवजा दिया गया था। उन्होंने तर्क दिया कि धारा 163ए की एक सख्त व्याख्या की आवश्यकता थी और ऐसे मामलों में आपत्तिजनक वाहन की लापरवाही महत्वहीन होगी, हालांकि, ट्रिब्यूनल ने लापरवाही के पहलू पर फैसला किया पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि अभियुक्त के पास अभियोजन पक्ष द्वारा सीआरपीसी की धारा 306 के तहत माफी देने के लिए दायर आवेदन की अस्वीकृति को चुनौती देने का अधिकार है। जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल ने कहा, "आरोपी को सीआरपीसी की धारा 306 के तहत स्वतंत्र रूप से ट्रायल कोर्ट में आवेदन करने का अधिकार है। क्षमा मांगने पर इसका अनिवार्य रूप से यह अर्थ होगा कि सीआरपीसी की धारा 306 के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित कोई भी आदेश। इससे अभियुक्त व्यथित है, ऐसे अभियुक्त द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष उचित याचिका दायर करके चुनौती दी जा सकती है।” कर्नाटक हाईकोर्ट ने पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए के तहत दायर वह आपराधिक शिकायत खारिज कर दी है, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने आध्यात्मिक वीडियो देखने के कारण शादी के बाद शारीरिक संबंध नहीं बनाए और इस तरह यह क्रूरता की श्रेणी में आता है। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने पति और उसके माता-पिता द्वारा दायर याचिका स्वीकार कर ली और शादी के 28 दिन बाद पत्नी द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गई कार्यवाही रद्द कर दी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक अभियुक्त द्वारा दायर अग्रिम जमानत आवेदन को इस आधार पर कभी भी खारिज नहीं किया जा सकता कि इस मामले में आरोप पत्र दायर किया जा चुका है या संबंधित अदालत ने इसका संज्ञान लिया है। जस्टिस नलिन कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने इस बात पर जोर देते हुए कि जब तक आवेदक को गिरफ्तार नहीं किया जाता है, तब तक किसी भी समय अग्रिम जमानत दी जा सकती है, इस प्रकार कहा, “…भले ही चार्जशीट दायर की जा चुकी हो और अभियुक्त के खिलाफ अदालत द्वारा संज्ञान लिया गया हो, जिसे जांच के दौरान गिरफ्तार होने से छूट मिली हुई है या किसी सक्षम अदालत के आदेश के माध्यम से उसे अग्रिम जमानत देकर उसे सुरक्षा दी गई हो या सीआरपीसी की धारा 41-ए के तहत जांच अधिकारी द्वारा नोटिस दिया गया हो, उसके द्वारा दी गई अग्रिम जमानत याचिका कानूनी रूप से सुनवाई योग्य है।"

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