केरल हाईकोर्ट ने माता-पिता की कस्टडी से समलैंगिक साथी की रिहाई की मांग करने वाली महिला की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को बंद किया
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केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को एक 21 वर्षीय महिला द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus) याचिका को बंद कर दिया, जिसमें उसकी समलैंगिक साथी को उसके परिवार की कस्टडी से रिहा करने की मांग की गई थी। जस्टिस पीबी सुरेशकुमार और जस्टिस शोबा अन्नम्मा एपेन की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की साथी/कथित कस्टडी में रखी गई महिला के इस बयान पर ध्यान देने के बाद कि याचिका को बंद कर दिया कि वह अपने माता-पिता के साथ जाना चाहती है। याचिकाकर्ता ने अपनी दलील में कहा था कि वह और उसकी साथी, जो मुस्लिम परिवारों से हैं, स्कूल के दिनों से ही दोस्त हैं और 12वीं कक्षा तक एक-दूसरे के प्यार में पड़ गईं। यह प्रस्तुत किया गया कि वे एक साथ रह रहे थे। उसने कहा कि एक निचली अदालत ने दो महिलाओं को एक साथ रहने की अनुमति दी थी और कहा कि कस्टडी में रखी गई महिला के माता-पिता और भाई ने 30 मई, 2023 को उसे जबरदस्ती उठा लिया। आरोप है कि शिकायत के बावजूद पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। जब 6 जून, 2023 को जस्टिस पीबी सुरेशकुमार और जस्टिस सीएस सुधा की खंडपीठ ने इस मामले को उठाया तो अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता की साथी को 19 जून को अदालत के समक्ष पेश करे। तदनुसार, जब आज मामले को उठाया गया तो अदालत ने कथित रूप से कस्टडी में रखी गई महिला से पूछा कि क्या वह किसी भी रूप में किसी की कस्टडी में है। उसी के जवाब में महिला ने अदालत को सूचित किया कि जब वह कुछ समय से याचिकाकर्ता के साथ रह रही थी और वह उसके साथ रखना नहीं चाहती और वह अब अपनी इच्छा से अपने माता-पिता के साथ रह रही है। कथित कस्टडी में रखी गई महिला ने अदालत से याचिकाकर्ता को उसके आधार कार्ड और अन्य दस्तावेजों को वापस करने का निर्देश देने की मांग की, जो उसके पास थे। कोर्ट ने आदेश दिया , "हमारे सामने दिए गए बयान और ऊपर बताए गए घटनाक्रम के आलोक में हम रिट याचिका (सीआरएल) को बंद करना उचित समझते हैं।"