मातृत्व अवकाश एक मौलिक मानव अधिकार है, इससे इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 29, 39 का उल्लंघन : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया कि प्रत्येक महिला, चाहे उसकी रोजगार स्थिति कुछ भी हो, मातृत्व अवकाश की हकदार है। कोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश का उद्देश्य मातृत्व की गरिमा की रक्षा करना और महिला और उसके बच्चे दोनों की भलाई सुनिश्चित करना है। जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की पीठ ने टिप्पणी की, " वर्तमान मामले में प्रतिवादी अग्रिम गर्भावस्था के समय एक दैनिक वेतन भोगी महिला कर्मचारी है, उसे कठिन श्रम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह न केवल उसके स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए बल्कि बाल स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता। मातृत्व अवकाश प्रतिवादी का एक मौलिक मानव अधिकार है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता, इसलिए स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता की कार्रवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 29 और 39डी का उल्लंघन है।" अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा से संबंधित है। अनुच्छेद 39 (डी) सभी नागरिकों के लिए आजीविका के पर्याप्त साधनों से संबंधित है। एचपी प्रशासनिक ट्रिब्यूनल द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ राज्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये अवलोकन किए गए, जिसके तहत प्रतिवादी को 8 साल की सेवा पूरी होने पर मानित मातृत्व अवकाश और वर्कचार्ज स्टेटस के परिणामी लाभ का लाभ दिया गया था । 1996 में प्रतिवादी ने जन्म देने के बाद तीन महीने के लिए मातृत्व अवकाश लिया था और अपनी गर्भावस्था और प्रसव के कारण, उसने एक वर्ष में आवश्यक 240 दिनों के बजाय केवल 156 दिन काम किया। ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाया कि प्रतिवादी के मातृत्व अवकाश को औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25(बी)(1) के तहत निरंतर सेवा माना जाना चाहिए। व्यथित होकर राज्य ने वर्तमान याचिका दायर की और तर्क दिया कि चूंकि महिला दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को मातृत्व अवकाश देने के लिए विभाग में कोई प्रावधान नहीं है इसलिए, ट्रिब्यूनल याचिकाकर्ताओं को उक्त राहत देने का निर्देश नहीं दे सकता। अदालत ने हालांकि यह माना कि किसी भी महिला को उसके रोजगार की स्थिति की परवाह किए बिना मातृत्व लाभ से वंचित करना, समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा, जिसका संविधान इतने उत्साह से समर्थन करता है। अपने रुख को मजबूत करते हुए पीठ ने दिल्ली नगर निगम बनाम महिला श्रमिक (मस्टर रोल) और अन्य (2000) का उल्लेख किया, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा कि मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के प्रावधान आकस्मिक आधार पर या मस्टर रोल के आधार पर दैनिक वेतन पर काम करने वाली महिलाओं को भी मातृत्व अवकाश का अधिकार देते हैं, न कि केवल नियमित रोजगार में।