Climate Change: बढ़ता जा रहा है कार्बन उत्सर्जन में निर्माण क्षेत्र का योगदान
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दुनिया के तमाम नेता संयुक्त राष्ट्र (United Nations) जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP) के लिए ग्लासगो में मिल रहे हैं. इस बार सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि सभी देश ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करने के लिए क्या कदम उठाने का फैसला करेंगे. इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट जलवायु कीस्थति की बुरी तस्वीर पेश कर रही है. इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में कार्बन डाइऑक्साइड संबंधी 37 प्रतिशत उत्सर्जन निर्माण क्षेत्र (Construction Sector) से आता है.
गौरतलब है कि साल 2020 में कोविड-19 (Covid-19) के वजह से लॉकडाउन (Lockdown)के कारण दुनिया भर में इमारतों से और निर्माणकार्य से निकलने वाले उत्सर्जन रुक ही सा गया था. लेकिन अब यह उत्सर्जन फिर से बढ़ने लगा है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इस क्षेत्र में बदलाव नहीं होना साफ दर्शाता है कि उत्सर्जन बढ़ते रहेंगे और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) में अपना योगदान देते रहेंगे. संयुक्त राष्ट्र के यूएन एनवायर्नमेंट प्रोग्राम द्वारा प्रकाशित साल 2021 की ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट ऑफ बिल्डिंग्स एंड कंस्ट्रक्शन के मुताबिक इमारतें और निर्माण क्षेत्र की वैश्विक अंतिम ऊर्जा खपत में योगदान 36 प्रतिशत है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2015 के पेरिस समझौते के बाद से इमारतों और निर्माण क्षेत्र से CO2 उत्सर्जन हाल के कुछ सालों में जो शीर्ष पर पहुंच गया था, साल 2020 में 2007 के स्तरों तक पहुंच गया था. यह गिरावट कोविड-19 महामारी की वजह से थी, जबकि इस क्षेत्र विकार्बनीकृत (Decarbonise) करने की लंबी प्रक्रिया में उन्नति बहुत सीमित ही रही. UNEP का कहना है कि स्तरों में गिरावट कोविड-19 लॉकडाउन की वजह से थी, लेकिन अब जब कि इस क्षेत्र में बड़ी वृद्धि होने वाली है, उत्सर्जन के स्तरों में उछाल आना तय है अगर इमारतों का विकार्बनीकरण (Decarbonisation) के प्रयास नहीं गए और उर्जा कारगरता नहीं बढ़ाई गई.
इस साल साफ दिखाई दे रहा है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पृथ्वी के लिए एक सीधा और तत्काल प्रभाव देना वाला खतरा बन गया है. इतना ही नहीं यह तीव्र भी होता जा रहा है. UNEP की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन का कहना है कि अगर हमें पेरिस समझौते के ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने वाले लक्ष्य को हासिल करने की संभावना का कायम रखना है, तो ग्रीनहाउस गैसों के एक बड़े स्रोत के तौर पर भवन और निर्माण क्षेत्र (Construction Sector) को आपात रूप से विकार्बनीकरण की जरूरत है. इसमें ऊर्जा की मांग कम करने, आपूर्ती ऊर्जा को विकार्बनीकृत करने और भवन सामग्री के कार्बन फुटप्रिंट से निपटने के त्रिस्तरीय रणनीति अपनानी होगी. (प्रतीकात्मक तस्वीर:
भवन उत्सर्जन (Building Emission) में वैश्विक और स्थानीय अंतर की ओर इशारा करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे एशिया में 2019 में भवना ऊर्जा की भागीदारी चीन (China) के 49 प्रतिशत से लेकर भारत (India) की 25 प्रतिशत और आसियान क्षेत्र की 23 प्रतिशत तक की है. फिर भी भवनों में उपयोग लाए जाने वाले ईंधन बहुत अलग अलग है. चीन में भवन ऊर्जा उपयोग में विद्युत का 35 प्रतिशत और बायोमास का 15 प्रतिशत हिस्सा है. वहीं भारत में इसमें विद्युत 19 प्रतिशत और बायोमास 55 प्रतिशत है.
CoP 26 सम्मेलन का उद्देश्य पृथ्वी (Earth) को और ज्यादा गर्म होने से बचाने के लिए उठाए जाने वाले कदमों को सुनिश्चित करना होगा जिसमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के प्रभावों को कम करने और नेट जीरो लक्ष्यों को हासिल करना शामिल होगा. भवन क्षेत्र कार्यों से कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emission) के लिहाज से नेट जीरो ऊर्जा विश्लेषण दर्शाता है कि साल 2050 तक भवन निर्माण (Building Construction) दो गुना हो जाएगा. ऊर्जा की मांग और विद्युतीकरण कम होने से उत्सर्जन भी कम हो सकते हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि साल 2050 तक भवन क्षेत्र के कार्बन उत्सर्जन को लगभग खत्म करना संभव है.