ग्लोबल वार्मिग के खतरों से धरती को बचाने के लिए तेज हो अभियान
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संजय श्रीवास्तव। Global Warming इस वर्ष जिन विज्ञानियों को भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा, वे भौतिकी की अलग अलग शाखाओं से जुड़े हुए हैं। परंतु जिस बिंदु पर जाकर वे मिलते हैं वह है हमारा पर्यावरण, जलवायु और उसकी गंभीरतम समस्या ग्लोबल वार्मिग। इस वर्ष के भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए चुने गए स्युकुरो मनाबे, क्लास हेसलमैन और जियोर्जियो पैरिसी ने अलग अलग काम करके जो गणितीय पैरामीटर पर आधारित भौतिकी माडल तैयार किया, उनकी सहायता से जलवायु परिवर्तन के घटनाक्रमों का पूर्वानुमान और सटीक हो गया।
अब तक इन्हें अनियमित और अनियंत्रित समझा जाता रहा था, लेकिन अब इनके तौर-तरीके पहचाने जा सकेंगे। मौसम में हो सकने वाले बदलावों का न केवल गणितीय व भौतिकीय आकलन करना संभव होगा, बल्कि बदली हुई जलवायु का मनुष्य पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अनुमान लगाया जा सकेगा। इन विज्ञानियों के शोध से यह भी साबित हुआ कि जलवायु परिवर्तन के ये भौतिकीय माडल पूरी तरह विश्वसनीय क्यों हैं। इन विज्ञानियों ने विगत दो वर्षो में ही कोई शोध निष्कर्ष निकाला हो ऐसी बात नहीं, बहुत पहले ही इन्होंने जलवायु संबंधी कई माडल विकसित किए और उनके माडल से पता चला कि वातावरण में बढ़ रहे तापमान के लिए कौन से कारक कितने दोषी हैं और इसमें मानवीय कारक किस कदर है।
अब नोबेल की प्रतिष्ठा प्राप्त होने के बाद पर्यावरणवादियों के दावों को पर संदेह करने और ग्लोबल वार्मिग के संबंध में उनकी पूर्वानुमानित चेतावनियों को खारिज कर उसे भयादोहन का हथियार मानने वाले अब उतने प्रखर और प्रबल नहीं रह पाएंगे। फिलहाल हमारे ग्रह की एक सबसे महत्वपूर्ण विशेषता जो हमें यहां रहने के काबिल बनाती है, वह है यहां की जलवायु और पर्यावरण। हमारी इसी विशेषता को दुर्दशा से बचाने की दिशा में हुए शोध और खोज को नोबेल सरीखा सर्वोच्च सम्मान मिलना सुखद है।
जलवायु की गुत्थी समझना आसान नहीं। जलवायु कई गतिमान कारकों और बहुत से जटिल प्रणालियों से मिलकर बनता है। इसके चलते मौसम की सटीक भविष्यवाणी तो फिर भी कुछ मुमकिन है, पर जलवायु के व्यवहार की किसी भी भविष्यवाणी को यह स्थिति अत्यंत कठिन बना देती है। ऐसे में जिनसे यह पता चले कि प्रकृति कैसे काम करती है, ऐसे मानकों को आंकड़ों और गणितीय सूत्रों में बदलकर तैयार किए गए भौतिकीय प्रारूपों की सहायता से ही अब तक जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी समस्या से लड़ने की राह खोजी गई है। ये बेहद सूक्ष्म गणनाओं से युक्त और अत्यंत सटीक हैं। भौतिकी के आधार पर तैयार क्लाइमेट माडल से ही तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन पर नजर रखना संभव हुआ और यह जानना भी कि धरती का तापमान कितनी तेजी से बढ़ रहा है और इसकी वजह से समुद्र के जलस्तर वृद्धि के अलावा दूसरे तमाम प्राकृतिक कुप्रभाव आगामी दशकों में हमें कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं। भावी पीढ़ियों के लिए यह साफ संदेश है कि हमें इन लक्ष्यों को पाना ही होगा और इसके लिए अब काम करना ही होगा।
90 वर्ष से अधिक उम्र के जियोर्जियो पैरिसी का बयान महज अवसर विशेष पर दिया गया सामान्य उद्गार नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे निहितार्थ हैं, इसमें चेतावनी और चिंताएं छिपी हुई हैं। दशकों पहले इन विज्ञानियों ने धरती के गरमाने के कारकों के बारे में चेताया था कि इनको नियंत्रित न किया गया तो किस दर से कितने समय में किस स्तर की क्या क्या तबाही मच सकती है? मनाबे ने अपने एक सहयोगी के साथ मिलकर 1967 में यह साबित किया था कि कार्बन डाइआक्साइड के उत्सर्जन और धरती के गरमाने का सीधा संबंध है। लगभग साढ़े चार दशक पहले ग्लोबल वार्मिग की प्रक्रिया पहली बार विस्तार से प्रस्तुत हुई और जलवायु का भौतिकीय माडल बना जो आज के अति उन्नत माडलों का आधार है।
मनाबे की खोज के 10 साल बाद हेसलमैन ने भी मौसम और जलवायु को एक साथ जोड़ने वाला माडल बनाकर इस सवाल का जवाब दिया कि मौसम के अनियंत्रित होने के बावजूद जलवायु माडल विश्वसनीय कैसे हो सकते हैं। वर्ष 1979 में पैरिसी ने एक बड़ी कामयाबी पाई, जब उन्होंने मिश्रधातु स्पिन ग्लास पर प्रयोग किया। उन्होंने स्पिन ग्लास को धरती के जटिल जलवायु व्यवहार के सूक्ष्म जगत के रूप में देखा और उसकी तुलना उन्होंने परमाणु और ग्रहों के पैमाने पर की तो वहां भी अराजक और अनियंत्रित व्यवहार दिखा जो संयोग से नियंत्रित प्रतीत होता था। उन्होंने एक गहन भौतिकी और गणितीय माडल तैयार किया जिससे जटिल प्रणालियों को समझना आसान हुआ। कई साल लगाने के बाद इसे गणितीय रूप से समझाने का एक तरीका मिला। वर्ष 2015 में ब्रिटेन की ‘कार्बन ब्रीफ’ नामक एक आनलाइन प्रकाशन संस्था जो मौसम विज्ञान और उससे जुड़े पहलुओं पर रिपोर्ट प्रकाशित करती है उसने ग्लोबल वार्मिग के लिए तीन प्रमुख खलनायकों में सबसे प्रमुख कार्बन डाइआक्साइड को माना था।
उसके बाद कार्बन डाइआक्साइड या ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने और दुनिया को ग्लोबल वार्मिग के जोखिम से बचाने की खूब चर्चा हुई और खर्चा भी किया गया, लेकिन नतीजा उस लक्ष्य से कोसों दूर है जिसे हम पाना चाहते हैं। इसकी वजह है हमारे प्रयासों में समग्रता और प्राथमिकता की कमी के साथ राजनीतिक हस्तक्षेप और कारपोरेट व बाजार के दखल के चलते इरादों और प्रयत्नों में ईमानदारी का अभाव। विकास के नाम पर पर्यावरण से खेलना, कार्बन उत्सर्जन, मौसम में बदलाव तथा ग्लोबल वार्मिग को चुनौती देने वाले कृत्यों में जलवायु क्षेत्र में दिए जाने वाले इस पुरस्कार के बाद कोई बड़ी कमी आएगी, फिलहाल ऐसा मुश्किल लग रहा है।